(डॉ. गोपालप्रसाद ‘वंशी’, वेतिया)
प्रत्येक चमकदार वस्तु सोना नहीं है।
दुनिया की निन्दा-स्तुति के भरोसे चलने वाले की मौत है। अपने हृदय पर हाथ रखकर चल।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है-मन, वचन और काया से समस्त इन्द्रियों का संयम।
यदि आप विवाहित हैं तो याद रखिये कि आपकी स्त्री आपकी मित्र, सहचरी और सहयोगिनी है, भोग विलास का साधन नहीं।
आत्मसंयम के जीवन के नियम भोगविलास के जीवन से अवश्य भिन्न होने चाहिये। इसलिए आपको अपना संग, अध्ययन, मनोरंजन के स्थान और भोजन को संयमित करना चाहिये।
भोगी पुरुष खाने के लिए जीता है, संयमी पुरुष जीने के लिए खाता है।
ईश्वर की महत्ता और प्रेम प्रदर्शित करने के लिए मनुष्य परमात्मा का प्रतिनिधि है। सेवा कार्य आपका एक मात्र सुख है।
मुहब्बत त्याग की माँ है, जहाँ जाती है, बेटी को साथ ले जाती है।
जब तक मेरी निन्दा और टीका होती रहती है, तब तक मैं बेखटके सोता हूँ, जब प्रशंसा के पुल बंधने लगते हैं तब मुझे चिन्ता के साथ जागना पड़ता है।
तू स्वयं अपनी परिस्थिति का स्वामी है। जिस परिस्थिति में तूने जन्म पाया है, यह भी तेरी ही कृतियों से प्राप्त हुई है।
दूसरों की शिकायत करने के बनिस्बत अपनी शिकायत करने में अधिक बल और बहादुरी की जरूरत होती है।
मानव चरित्र की एक विचित्रता यह है कि हम बहुधा ऐसा काम कर डालते हैं, जिन्हें करने की हमें इच्छा नहीं होती। कोई गुप्त प्रेरणा हमें इच्छा के विरुद्ध हो जाती है।
उन्नत हृदयों में सौंदर्य उपासना भाव को जाग्रत कर देता है, वासनाएं विशान्त हो जाती हैं।
बुद्धि का फल यह न होना चाहिये कि हम दूसरों के दोष देखते रहें, उन्हें जतन से संभाल कर रखते रहें। बल्कि यह होना चाहिये कि गुण अधिक देखे जाएं और उन्हें संग्रह किया जाए।
मेरी राय में केवल दो ही उद्देश्यों से लिखना-पढ़ना आवश्यक है। एक तो मनुष्यता को समझने और उसका विकास करने के लिए, दूसरा जीविकोपार्जन के लिए।
यदि तूने स्वार्थ को अपने हृदय में से निकाल डाला है तो फिर तुझे संसार में किसी से डरना और दबना न पड़ेगा।
यदि तेरी आत्मा निर्भय है तो तुझे तलवार बाँधने की क्या जरूरत है? और यदि तूने मृत्यु के भय को जीत लिया तो फिर संसार में कोई भय तुझे परास्त नहीं कर सकता।
तुम किताबों को नहीं, मनुष्यों को पढ़ो। दूसरों के साथ-साथ अपने को भी पढ़ो।
प्रेम उत्सुक होता है, ज्ञान विरक्त। प्रेम के लिए रस है, आनन्द है। ज्ञानी के लिये मनोरंजन है, खेल है। प्रेम डूबता रहता है, ज्ञान तैरता रहता है।
यदि तेरे जीवन का कोई आदर्श नहीं है, कोई सिद्धान्त नहीं है, कोई महत्वाकाँक्षा नहीं है, तो संभव है कि तू संसार की कड़ी परीक्षाओं से बच जाय, किन्तु याद रख तू उसकी प्रताड़नाओं से किसी प्रकार नहीं बच सकता।
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