विचारों का रंग-रुचि से संबंध

February 1948

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री दौलतराम कटरहा वी. ए. दमोह)

स्वामी शिवानन्द लिखते हैं-“विचार एक सूक्ष्म पदार्थ है। प्रत्येक विचार का वजन, आकार प्रकार, नाप, रूप और रंग होता है। आध्यात्मिक विचार का रंग पीला होता है। घृणा और क्रोध मिश्रित विचार का रंग खूब लाल होता है। स्वार्थमय विचार का रंग खाकी होता है- इत्यादि। योगी अपनी अंतःदृष्टि से इन सब विचारों को देख सकता है।”

जो मनुष्य जिस प्रकृति का होता है वह उस प्रकृति से सम्बन्ध रखने वाले रंगों को पसन्द करता है। पवित्रात्मा व्यक्ति पीले रंग को पसंद करता है। शुद्ध हृदय वाला व्यक्ति स्वच्छ धवल रंग के वस्त्र पसंद करता है। उदार हृदय व्यक्ति नीले रंग के वस्त्र पसन्द करता है। क्रोधी पुरुष लाल रंग के हिंसक प्रकृति का पुरुष काले रंग के और स्वार्थी पुरुष खाकी रंग के वस्त्र पसंद करता है। मनुष्य अनेकों रंग के वस्त्र पसंद करता है किंतु उसकी रुझान जिस रंग की ओर अधिक हो उसे उस रंग से सम्बन्ध रखने वाले स्वभाव वाला व्यक्ति ही समझना चाहिए उसके चरित्र में तत्सम्बन्धी विचारों की ही प्रधानता रहती है।

कुछ व्यक्ति काले के साथ सफेद अथवा लाल के साथ सफेद रंग के कपड़े पसंद करते हैं। ऐसे पुरुषों में कोई भारी विशेषता होती है जो साधारण पुरुषों में नहीं पाई जाती। सफेद कमीज के ऊपर काला अथवा लाल कोट पहिनना अथवा इसी ढंग से अन्य वस्त्र पहिनना उन्हें बहुत रुचता है।

यदि कोई पुरुष ऐसे वस्त्र अधिक पसंद करे जिसका रंग ऐसा हो जो दो मूल रंगों के मिश्रण से बनता हो तो उसमें मिश्रित भावों की प्रधानता होगी। बैंगनी रंग लाल और नीले के मिश्रण से बनता है अतएव बैंगनी रंग अधिक पसंद करने वाले व्यक्ति में क्रोध और उदारता का मिश्रण होगा।

जिस तरह हमारे विचारों का हमारी रुचि पर प्रभाव पड़ता है उसी प्रकार हमारे वातावरण के रंग का हमारे विचारों पर भी प्रभाव पड़ता है। ऐसे वातावरण में रहने वाले व्यक्ति का मन जहाँ वृक्ष और पौधे सदा हरे भरे रहते हैं प्रसन्न और शुद्ध होता है। उसके विचार दिव्य तथा उदारता लिए हुए ही होते हैं। इस बात का पता लगाया गया है कि जब कोयले की खानों में बिजली के लाल बल्बों का प्रयोग किया जाता है तब मजदूर लोग अधिक लड़ाके हो जाते हैं। हरे नीले बल्बों का उपयोग करने पर वे शान्त और परस्पर सहयोग करने वाले होते हैं। स्वच्छ श्वेत वस्त्रों की घर में बाहुल्यता रखने से विचारों में भी स्वच्छता एवं शुभ्रता प्रवेश करती है।

हिंदुओं ने विष्णु की वेश-भूषा की जो कल्पना की है वह अत्यन्त भव्य है। वे गगन सदृश मेघ वर्ण हैं और वे पीताम्बर धारी हैं। हिन्दू उन्हें “सपीत वस्त्र सरसीरुहेक्षणम्” जानकर अपने हृदय कमल मध्य स्थापित करते हैं और इस तरह एक भव्य एवं शान्त मूर्ति की कल्पना उसके हृदय को भृंगी-कीट- न्याय के मुताबिक वैसा ही बनाती है। शान्तमूर्ति को देखकर किसका हृदय शान्त उत्फुल्ल न होगा। महात्मा पातंजलि ने “वीतराग विषय वा चित्तम्” कहकर वीतराग एवं शान्तमूर्ति के ध्यान द्वारा चित्त का शान्त होना तो बताया ही है। और षड्गुणैश्वर्य सम्पन्न भगवान् विष्णु तो वैराग्य और ऐश्वर्य दोनों गुणों से सम्पन्न हैं

भगवान के शरीर का मेघवर्ण उनकी उदारता शरणागत वत्सलता, सुहृदयता, एवं परमाश्रयता का सूचक है। वे विश्व के पालन करने वाले, सबकी गति, सबके भर्ता, प्रभु एवं निवास स्थल हैं और इन गुणों का प्रतीक उनकी दिव्य देह का मेघवर्ण है। उनकी परमोच्च आध्यात्मिकता विष्णु की कल्पना वैज्ञानिक ढंग से की गई जान पड़ती है।

इस लेख को समाप्त करने के पहले हम तनिक हिन्दुओं के इष्ट देव भगवान राम और कृष्ण की माधुरी छवि की ओर भी निहार लें। राम अपनी बाल्यावस्था में कैसे हैं इसका वर्णन करते हुए तुलसीदास जी लिखते हैं “नव नील कलेवर पीत झँगा, झलकें पुलकें नृपगोद लिए”। भगवान कृष्ण की भी हम पीताम्बर-युक्त छवि का ही वर्णन करते हैं। भगवान की वह छवि हमारे हृदय में तद्नुकूल विचारों की प्रेरणा करती है।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118