युग पुरुष बापू का आत्मदान

February 1948

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ता. 30 जनवरी की सन्ध्या को एक अविवेकी व्यक्ति द्वारा युग पुरुष महात्मा गान्धी की हत्या कर दी गई। वे अपने रक्त की अन्तिम बून्दों से पागल दुनिया की आसुरी तृष्णा बुझाते हुए परमात्मा की अखंडज्योति में लीन हो गये।

महात्मा जी काँग्रेस के या हिन्दू ही जाति के न थे। वे भारत के पास अन्तर्राष्ट्रीय धरोहर के रूप में थे। उन्हें सूक्ष्म मानवता की स्थूल प्रतिमा कहा जा सकता है। भगवान बुद्ध के बाद भारतभूमि में ऐसी उज्ज्वल विभूति महात्मा गाँधी ही अवतीर्ण हुए थे। संसार के इतिहास में उनके जोड़ के उंगलियों पर गिनने लायक ही महापुरुष हुए हैं। कई दृष्टियों से तो वे अपने आप में अपूर्व थे। ऐसे युग पुरुष के उठ जाने से भारत की, काँग्रेसी की, हिन्दू जाति की ही नहीं- समस्त विश्व की, आध्यात्मिक और धार्मिक शक्तियों की, भारी क्षति हुई है।

भौतिक लालसाओं से व्याकुल, अनुदारता और स्वार्थ परता की मदिरा पीकर उन्मत्त दुनिया के लिए महात्मा गान्धी की आध्यात्मिक विचार धारा एक बाँध थी। वे एक ऐसे प्रकाश स्तंभ, ध्रुव तारा थे जिसे देखकर यह आशा की जाती थी कि भ्रान्त मानव उन्हें देखकर अपना कल्याण पथ ढूँढ़ सकेगा। आज वह प्रकाश स्तंभ बुझ गया, यह देखकर विश्व मानव का अन्तःकरण एक बारगी छलनी हो गया है, उसके कलेजे में रह रह कर एक हूक उठ रही है।

महा प्रभु ईसा मसीह के बाद संसार ने इतने दीर्घकाल बाद एक दूसरे महा मानव गान्धी को देखा था। अब न जाने कितनी शताब्दियाँ, सहस्राब्दियां, फिर ऐसी विभूति के दर्शन के लिए संसार को प्रतीक्षा में बितानी पड़ेंगी। जिस व्यक्ति ने उनकी हत्या की उसके पागलपन, उन्माद, अविवेक के लिए तो क्या कहा जाय। उस बेवकूफ ने तो इस बात की कल्पना भी न की होगी कि वह कितना गुरुतम कुकृत्य करने जा रहा है। उसके इस पाप से देश के मुख पर कैसी कालिख पुत जायगी वह दुनिया का नजरों में कितना गिर जायगा।

विचार भेद होने पर उसके लिए अन्य तरीके हो सकते हैं पर अविवेकी व्यक्ति जो कर डाले वही थोड़ा है। असंतुलित मस्तिष्क वाले व्यक्ति अपने लिए, अपने निकटवर्तियों के लिए, दूरस्थों के लिए, समस्त संसार के लिए कैसे अभिशाप सिद्ध होते हैं, कैसी विपत्ति, कैसी क्षति, कैसी पीड़ा उपस्थित कर देते हैं इसका एक उदाहरण इस महान दुर्घटना को भी कहा जा सकता है। छोटे मोटे रूप में ऐसी आपत्तियाँ- अविवेकी, अदूरदर्शी, आवेश ग्रस्त मनुष्यों द्वारा नित्य, हर घड़ी उपस्थित की जाती रहती हैं। इन बातों पर गंभीर विचार करते ही इस निश्चय पर पहुँचना होता है कि मनुष्यों के मानसिक धरातल को ऊंचा उठाने की कितनी अधिक आवश्यकता है। बिना इसके आजादी तो क्या साक्षात् स्वर्ग का पृथ्वी पर अवतरण भी कुछ विशेष उपयोगी नहीं हो सकता। अखंड ज्योति इस आवश्यकता को सर्व प्रथम समझती है और सबसे प्रथम जनता का आन्तरिक उत्कर्ष करने पर जोर देती है, जबकि दूसरे लोग धन की वृद्धि में देश का उत्थान देखते हैं।

हमारे बापू का शरीर आज हमारे बीच में नहीं है। यह कल्पना मन में आते ही हृदय रो पड़ता है। हमारे हृदयों में इस क्षति की मर्मान्तक व्यथा हो रही है। फिर भी हम जानते हैं कि महात्मा जी की आत्मा हम लोगों के बीच में मौजूद है और अपनी मौन वाणी से यही प्रवचन कर रही है जो बापू नित्य प्रति प्रार्थना सभा में किया करते थे। आइए, उन मौन संदेशों को सुनें और उनका पालन करके उनकी आत्मा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करें।

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