कल्पना शक्ति साक्षात् कल्पलता है?

January 1946

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(कल्पना की मनोवैज्ञानिक विश्लेषण)

मानसिक शक्तियों में कल्पना का स्थान अत्यन्त प्रमुख है। इसी अद्भुत शक्ति के बल पर संसार के इतिहास में महान कार्य हुए हैं, कलाकारों, कवियों, नाट्य कारों, दार्शनिक, तत्वज्ञानियों ने इसी के बल पर अपनी कला का निर्माण तथा सृष्टि के नाना रहस्यों का उद्घाटन किया है। इसी के द्वारा मनुष्य अपना लक्ष्य स्थिर करता तथा उज्ज्वल भविष्य को निहारता है।

कल्पना का भला बुरा उपयोग-

कल्पना के द्वारा हम अपने भविष्य का निर्माण कर सकते हैं साथ ही नाना प्रकार की व्याधियों, पाप और दुःख की आँधियों, कायरता, निरुत्साह, उदासीनता, ग्लानि, तथा रोगों की बात भी सोच सकते हैं। कुकल्पना शैतान से भी बढ़ कर है। मन की यह अशुभ वृत्ति-आयु, सामर्थ्य, मनोबल की सर्वदा हानि करने वाली है। इसके विपरीत यदि कल्पना का ठीक प्रकार से विकास एवं उपयोग किया जाये तो यह सब दुःखों, व्याधियों, अन्तरस्थ दीनता, अहं की भावना का नाश कर मुक्ति मन्दिर में प्रवेश करा सकती है। यह हमारी रक्षा करने वाली, सद्प्रेरणा, अभ्यन्तर स्वतन्त्रता देने वाली है। कल्पना शक्ति के दुरुपयोगों से पूर्ण स्वस्थ मनुष्य तक क्षय को प्राप्त हो सकता है तथा सदुपयोग से मरण शय्या पर पड़ा हुआ रोगी भी आरोग्य प्राप्त कर सकता है। मन की स्थिति सुधारने, स्थिरता कायम रखने, नवीन रचनात्मक कार्य करने में कल्पना से अत्यधिक सहायता मिलती है क्योंकि इसका राज्य भूत, भविष्य एवं वर्तमान तीनों पर समान रूप से है।

कल्पना की कार्य प्रणाली -विच्छेद।

कल्पना में बड़ी विचित्रता है। यह तमाम ज्ञान तत्व को तोड़ मरोड़ कर छिन्न-भिन्न कर देती है फिर उन छिन्न-भिन्न तत्वों को इस प्रकार प्रणाली से मिलाती है कि बिल्कुल नवीन वस्तु का निर्माण हो जाता है। नए-नए स्वरूप, वस्तुएँ, संगठन, जोड़-तोड़, मरोड़ करते रहना कल्पना का कार्य है। कविगण तथा वैज्ञानिक इसी शक्ति से कविता के चित्र, महाकाव्य, उपन्यास इत्यादि रचते तथा नया आविष्कार करते हैं। विच्छेद (Dissolution) से कार्यारम्भ कर यह पुनर्निर्माण कर कार्य करती है स्मृति इसकी प्रिय सहेली है। स्मृति में संचित ज्ञान राशि से यह नवीन ज्ञान प्राप्ति में सहायता देती है। स्मृति पर भी कल्पना अपना प्रभाव डालती है।

कल्पना के तीन स्वरूप -

कल्पना तीन रूपों में हमारे दैनिक जीवन में प्रभाव डालती है। जैसे-

1. विधायक कल्पना या ज्ञानात्मक कल्पना- इसके द्वारा जब हम कोई बात पढ़ते हैं, वैसा ही चित्र मनोजगत में खिंचता है। जब तक मन में उसका चित्र अंकित न हो, ज्ञान प्राप्त न होगा। अतः वास्तविक ज्ञान प्राप्ति में इसका प्रमुख हाथ है। जो तथ्य समझे जाय उनकी प्रतिकृति (Image) भी मस्तिष्क में खींच लिया जाय।

2. उत्पादक कल्पना या प्रायोगिक कल्पना - इसका प्रयोग नित्य हम करते हैं। पूर्व संचित स्मृति के बल पर नई चीज जानते हैं, रेल, तार, मोटर, पुस्तकें, कला, चित्रकारी इसी के चमत्कार हैं।

3. आदर्श या ललित (Acsthetic) कल्पना- इसके द्वारा हम सबसे उत्कृष्ट अत्युत्तम आदर्श खड़े करते हैं। धर्म, ईश्वर, देवी-देवता, स्वर्ग इत्यादि इसी कल्पना के उच्चतम शिखर हैं। भावों का प्रभाव कल्पना पर पड़ता है और मनोभावों के अनुसार ही आदर्शों की सृष्टि होती है। मनुष्य के अंतजगत में स्थित भलाई, सत्यता एवं सौंदर्य से हमारे आदर्श बनते हैं। सत्य, शिव, एवं सुन्दर का अति उच्च स्वरूप आदर्श है।

शरीर पर कल्पना का प्रभाव-

श्रीयुत कुन्दनलाल ने प्रो. Buell के एक प्रयोग का वर्णन अपने ग्रन्थ में इस प्रकार किया है- इससे प्रतीत होता है कि शरीर पर कल्पना का राज्य है-

“फ्रान्स में एक दोषी को प्राण दंड मिला। कारागार में डाक्टरों ने उसके नेत्रों पर पट्टी बाँध कर एक तख्ते पर लिटा दिया और कह दिया कि तुमको नसें काट कर मारा जायगा। उसकी दोनों बाजुओं पर सुइयां चुभो दी गई और जिससे कि वह समझे कि नसें काट दी गई हैं और बाजुओं पर गरम पानी की धार इस प्रकार छोड़ी गई कि वह इस भ्रम में आ गया कि मेरी नसों में से गरम रक्त निकला जा रहा है। फिर झूठ ही यह कहना प्रारंभ किया गया कि रक्त तो बहुत निकल गया-सारे में फैल रहा है- अब इतना निकला, अब इतना। कैदी ने कल्पना जगत् में देखा कि वह लहूलुहान हो गया है और मरणासन्न है। कल्पना ने इतना भयंकर स्वरूप उसे दिखाया कि वह कैदी मृत्यु को प्राप्त हुआ।”

कल्पना को ठीक पथ में रखना अति आवश्यक है क्योंकि कल्पना के विकृत स्वरूप से शक्ति का क्षय असद् विचार, मनो जनित रोग उत्पन्न होते हैं। असत् कल्पना, विचार, सामर्थ्य और संकल्प को कुँठित कर देती है। कल्पना संहारक भी है अतः निरर्थक, व्यर्थ के, प्रतिकूल विचारों को मनोमन्दिर में स्थान देना अत्यन्त बुरा है। मानव दृष्टि से केवल सर्वोत्तम चित्रों की ही सृष्टि कीजिए।

कल्पना शक्ति की वृद्धि के नियम -

जेम्स मा शेल साहब ने कल्पना के संवर्धन के लिए तथा उसकी उत्तरोत्तर ठीक दिशा में वृद्धि के लिए कई उपयोगी नियम इस प्रकार बतायें हैं- इन्हें कार्य में परिणित करने से अत्यन्त लाभ हो सकता है-

1- विचारों की एक सुनिश्चित दशा बनाइये। उन्हें अपने आदर्श पर केन्द्रीभूत कीजिए, व्यर्थ भटकने न दीजिए।

2- कई भावनाओं का एक जगह मेल कराना सीखिए। परस्पर विरोधी बातों का कल्पना द्वारा सामंजस्य हो सकता है और मनुष्य उद्वेग आन्तरिक संघर्ष से बच सकता है।

3- नोट बुक का प्रयोग कीजिए। उसमें अपने आदर्शों, चित्रों तथा मौलिक विचारों को लिख लीजिए। प्रतिदिन अन्तःकरण में उठी हुई भावनाओं को लेखबद्ध कीजिए और उनकी सहायता से नव चित्रों का निर्माण कीजिए।

4- विचारों को निश्चित स्थान पर पहुँचाकर ही छोड़िये। यह नहीं कि उन्हें उस दिशा में उन्मुख करते ही छोड़ दो।

5- अपने आप का आत्म निरीक्षण करने के पश्चात् ही अपना जीवन क्रम निश्चित कीजिए। कल्पना शक्ति द्वारा यह मालूम कीजिए कि किस प्रकार के चित्र आपके दिमाग में अधिक स्पष्टतर उठते हैं।

6- संसार में जो वस्तुएँ विद्यमान हैं उनका दर्शन कीजिए, पुस्तकें पढ़िये, लोगों के स्वभावों का अध्ययन कीजिए और अपने प्रत्यक्ष ज्ञान का एक विस्तृत खजाना तैयार कीजिए। जितना अधिक सामान आपके पास होगा। उतनी ही कल्पना नई प्रतिमाएं तैयार कर सकेंगी।

7- आदर्श बनाइये क्यों कि यही कल्पना का केन्द्र बनेगा। महापुरुषों की जीवनियों, इतिहास के पुरुषों, लेखकों के चरित्रों में देख कर यह निश्चित कीजिए कि वास्तव में आप क्या बनना चाहते हैं। आदर्श निर्माण के पश्चात कल्पना उसी केन्द्र पर छोड़ दो। रातदिन उसी का चिंतन, मनन, चित्र निर्माण करो।

कल्पना शक्ति से सम्पूर्ण मानसिक शक्यों

का विकास-

तुम अपने शरीर को पूर्ण स्वस्थ, निर्विकार, सुघर बनाना चाहते हो तो वैसे ही बलिष्ठ व्यक्ति की कल्पना करो। मानसिक दृष्टि से उच्च स्थिति की मूर्ति बनाओ। तुममें अलौकिक प्रतिमा प्रस्तुत है केवल उसकी तीव्रतर कल्पना करो। यदि तुम मानसिक शक्तियों का विकास चाहते हो तो “उन मानसिक शक्तियों का पूर्ण विकास हुआ है।” -ऐसी भावना दृढ़ करो। सभी व्यक्तियों की उच्चारित उच्च स्थिति, उच्च वैभव, उच्चतम प्रतिमा के मानस चित्र रचना में कल्पना व्यय करो। अपने चित्रों को स्पष्ट, स्पष्टतर और स्पष्टतम बनाओ। उनके लिए यत्न करो। तत्पर रहो। इन आशापूर्ण तरंगों से ही सिद्धि मिलती है। ये महत्वाकाँक्षाएं ही हमारी शक्ति की सूचक हैं, सत्य हैं, बड़ी प्रबल है हमारी कार्य-सम्पादक शक्ति के परिणाम की द्योतक हैं। हम जिसकी चाह करते हैं, जो आदर्श हमने बनाया है वह अवश्य हमारे सन्मुख प्रकट होगा। जिस दिन से हम आदर्श की प्राप्ति के लिए मन, वचन, काया से प्रयत्नवान होने की कल्पना करते हैं, उसी दिन से हम इच्छित पदार्थ से अपना सम्बन्ध जोड़ना प्रारम्भ करते हैं।

कल्पना जादू है -

संगीत, साहित्य, चित्रकारी, आत्मज्ञान, शिल्प मंत्रविद्या, लेखन या वकृत कला- जिस विषय की ओर तुम्हारी अभिरुचि हो उसी के भव्य मानस चित्र निर्माण करो, कल्पना की तूलिका से उसमें रंग भरो और अन्तःकरण से उसकी सिद्धि के लिए प्रयत्नवान हो जाओ। अभिलाषा तभी फलोत्पादक होती है जब वह दृढ़ निश्चय में परिणित कर दी जाती है।

ज्यों-ज्यों कल्पना शक्ति आदर्श के सूक्ष्म प्रदेशों में प्रवेश करती है वैसे-वैसे महत्ता जाग्रत होती है। कल्पना शक्ति जादू है। इसकी शक्ति बड़ी अद्भुत है। इसके द्वारा ही हम प्रतिक्षण प्रतिपल अपना भला बुरा, भविष्य निर्माण कर रहे हैं सुख प्राप्ति का मूल किसी बाह्य जगत की वस्तु में नहीं प्रत्युत हमारी कल्पना में है। मन में जैसी कल्पना अंकित होती है उसी प्रमाण में बाह्य जगत का अनुभव होता है। हमारा भाग्य प्रारब्ध, सुख दुख का रहस्य कल्पना देवी के ही कर कमलों में है। इच्छा हो तो कल्पना शक्ति द्वारा हम आनन्द के सर्वोच्च शिखर पर आरुढ़ होकर जीवन को आनन्दमय बना सकते हैं। कल्पना हमें सम्पूर्ण आधि−व्याधियों, दुखों, चिन्ताओं से मुक्त कर सकती है। यदि तुम खुद कल्पना में आत्मा को स्नान कराने की आदत डाल लोगे और इस बात का प्रबोध करोगे कि “मेरा अनिष्ट कदापि नहीं हो सकता” तो तुम्हारा प्रतिकूल प्रारब्ध, कठिनाइयाँ, चिन्ताएँ अनुकूल ग्रहों में परिवर्तित हो जायेंगे।


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