व्यवहारिक सफलता का रहस्य

January 1946

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(दैनिक मनोविज्ञान पर एक मनोरंजक लेख)

दूसरों में दिलचस्पी लीजिए-

दैनिक जीवन में प्रभावशाली बनने के लिए आपको दूसरों के कार्यों में, उनकी प्रिय वस्तुओं में उनके बाल बच्चों में दिलचस्पी (Interest) लेनी चाहिए। दूसरों की दुनिया में प्रवेश कीजिए एक दुनिया तो यह है जिसमें हम नित्य विचरण करते हैं, नाना प्रकार के व्यक्तियों से निज सम्बन्ध स्थापित करते हैं। सुख दुःख भोगते हैं। यह दुनिया तो सभी लोगों के लिए एक है। किन्तु इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति की एक भिन्न दुनिया होती है, जहाँ वही व्यक्ति जब चाहता है प्रवेश कर जाता है। दूसरे को प्रवेश नहीं करने देता।

प्रत्येक की दुनिया पृथक है-

यह दुनिया उस व्यक्ति की इच्छाओं, मनोकांक्षाओं एवं भावनाओं के सुनहरे तारों से विनिर्मित है। इस बाहरी दुनिया में जो इच्छाएँ अपूर्ण, अतृप्त रहती हैं वे हताश होकर इसी संसार में निवास करती हैं। ये कभी-कभी अव्यक्त रूप से स्वप्न तथा जाग्रत स्वप्न में पूर्ण होती हैं। रात्रि में स्वप्न तो देखते ही हैं किन्तु जाग्रतावस्था में भी सपना देखा करते हैं। इन कुचली हुई इच्छाओं का विस्तृत विवरण मेरी नवीन पुस्तक “हमें स्वप्न क्यों दिखते हैं?” में मिल सकता है। इन्हीं हृदय की भावना में बहकर एक भिखमंगा अपनी दुनिया का राजा बन कर आनन्द में विचरता है।

कौशल (Tactfully) से काम लीजिए-

व्यवहारिक सफलता के लिए आप दूसरों की दुनिया में प्रवेश कीजिए, किन्तु यह कार्य चुपके-चुपके हो सकेगा। यदि दूसरा यह भाँप जाय कि आप उसके गूढ़ रहस्यों को जानना चाहते हैं तो वह सतर्क हो जायेगा तथा अपनी दुनिया के किवाड़ बन्द कर लेगा। प्रशंसा तथा सहानुभूति के मरहम से आप बखूबी दूसरों की दुनिया में प्रवेश पा सकेंगे।

मैंने स्वयं ये दोनों गुर काम में लिए हैं। मैं गन्दे से गन्दे, मूर्ख, बदमाश, लंपट से लेकर बड़े से बड़े मनुष्य की दुनिया में इन्हीं दोनों सूत्रों से प्रवेश कर सका हूँ। पतितों को सुधारने के लिए इन दोनों प्रशंसा तथा सहानुभूति- से उत्तम औषधि दूसरी नहीं है।

कभी-कभी खुशामद से भी यही कार्य निकलता है। तारीफ करना, स्तुत्य वाक्य कहना, बढ़ावा देना, चाटुकारिता, बातें बनाना- ये सभी प्रशंसा के अंतर्गत आते हैं। थोड़े-थोड़े अंश में समय एवं मौका देख कर इन शस्त्रों का प्रयोग करना बुरा नहीं है।

लोगों की खूबियों का बयान करो, उनका सहानुभूति पूर्ण आदर करो, उनके दुःखों पर हार्दिक दुःख प्रकट करो, दिलासा दो, उनकी सफलताओं पर प्रसन्नता प्रकट करो। यह समझ कर चुप न रह जाओ कि हमने सुन लिया यही पर्याप्त है।

दूसरे का दृष्टिकोण समझने का प्रयत्न कीजिए-

दूसरा व्यक्ति किस बात में शौक लेता है, उसका प्रिय विषय क्या है? वह किस वस्तु को सर्वोत्तम गिनता है? उसके दृष्टिकोण से कौन चीज दुनिया में अनुपम है? यह मालूम करने की निरन्तर चेष्टा करो यह उस व्यक्ति का बटन (Pressure Point) है जैसे बिजली का बटन दबाने से चारों ओर प्रकाश होता है, वैसे ही इस विषय पर बात करने से वह व्यक्ति अधिकाधिक प्रसन्न होता है और घन्टों बातें करना चाहता है। स्मरण रक्खो, प्रत्येक स्त्री पुरुष की भिन्न-भिन्न रुचि, भिन्न-भिन्न इच्छाएँ और अपना विशेष दृष्टिकोण होता है। दूसरों के विषय में अधिक से अधिक भेदी बनो। उनकी गुप्त बातें मानसिक कथा, इच्छाएँ जितनी अधिक मालूम हो जाय, उत्तम हैं।

अपने इरादों को छिपाइये-

गुप्त मार्मिक पन एक अति आवश्यक गुण है, जिसके द्वारा अन्य व्यक्ति तुम्हें जानने के लिए उत्सुक हो उठता है। तुम अन्त में क्या करना चाहते हो, यह प्रकट मत होने दो। जो व्यक्ति अपने भेदों को खोलता फिरता है। उसमें अन्य लोगों को मजा नहीं आता। उनका महत्व कम हो जाता है और उनकी छिछोरों में गड़ना होने लगती है। दूसरों की बातें पूरी तरह सुनो किन्तु अपनी बातें उतनी ही कहो जितनी जरूरी हैं। अधिक मत खुलो। जो व्यक्ति कम बोलते हैं, सारगर्भित बोलते हैं, केवल आवश्यक वार्तालाप करते हैं, उनका दूसरों पर प्रभाव पड़ता है।

मध्यम स्थिति अपनाइये-

अपने को मध्य की स्थिति में रख कर आप दूसरे व्यक्ति के अहं भाव की रक्षा कर सकते हैं। न तो सिद्ध पुरुष बनने का ढोंग करो और न नीच होने की घोषणा ही करते फिरो। इसका आशय यह है कि न तो अपनी बल-बुद्धि विद्या की शेखी ही बखारो और न तुच्छता ही प्रकट करो। साधारणतः न तो इतना प्रेम ही प्रकट करो कि उसके गले से ही लिपट जाओ और न द्वेष, कटुता, या रुखाई का व्यवहार करो। मध्यम श्रेणी के भले, आदमियों की तरह के वस्त्र पहनो। ऐसा करने से दूसरे तुम्हारे ऊपर शक या शुबा न करेंगे और अपने भेद खोलते रहेंगे।

“नमस्ते” स्वीकार करना न भूलिये-

जब कोई आपको “नमस्ते”, “प्रणाम” या “सलाम” करता है, तो उसका अभिप्राय आपके प्रति अपना सम्मान प्रकट करना है। वह आपके बड़प्पन को अव्यक्त रूप से स्वीकार करता है और यह भी चाहता है कि आप उस पर कृपा दृष्टि रक्खें। “नमस्ते” स्वीकार करने से “नमस्ते” करने वाले को यह संतोष हो जाता है कि आपने उसके सम्मान को स्वीकार कर लिया है। “नमस्ते” का प्रत्युत्तर न देने से करने वाले के मनः प्रदेश में विक्षोभ उत्पन्न होता है और वह समझता है कि आपने उसके गर्व को कुचल डाला है। अतः सदा सर्वदा प्रसन्न मुख से “नमस्ते” स्वीकार कीजिए और यदि संभव हो सके तो करने वाले से दो चार बातें भी कीजिए।

“नमस्ते” करने से करने वाला कुछ नीचा तो बनता है किन्तु दूसरे व्यक्ति के मिथ्या गर्व को फुला देता है। यह प्रशंसा का एक हलका सा स्वरूप है अतः उत्तम प्रभाव डालने के लिए यह एक सहज उपाय है।

अपने नाम की ममता-

सम्पूर्ण भाषा में अपने-अपने नाम के अक्षर हम सबको अत्यन्त प्रिय हैं। अपने नाम से हमें असाधारण ममत्व है। नाम के आगे लगे हुए अक्षर “श्रीयुत”, “श्रीमान”, “लाल”, “बाबू” इत्यादि भी इस दशा में बड़े महत्व के हैं। हम चाहते हैं कि हमारा नाम अमर रहे, बार-बार लोगों की जबान पर नृत्य करें, लोग उसे आदर से लें, व्यापार, शिक्षा, सर्विस के क्षेत्रों में, नेताओं, एक्सपर्टों, चित्रकारों, गायकों में हम परिगणित किए जाय, हमारा नाम छापा जाय और वह बारम्बार लोगों की नजरों से गुजरे। अभिनेताओं तथा डायरेक्टरों को पूर्ण विज्ञापन में सब से आकर्षक चीज अपना नाम ही लगता है। हममें से प्रत्येक अपने नाम को सर्वोच्च स्थान प्रदान करना चाहता है। अतः दूसरों को प्रभावित करने के लिए आप दूसरे के नाम की प्रतिष्ठा कीजिए।

दूसरे को महत्ता प्रदान कीजिए-

प्रत्येक व्यक्ति आपकी बनिस्बत किसी विशेष दिशा में बढ़ा-चढ़ा है। आपका ज्ञान एक विशेष दिशा में भले ही गहरा हो किन्तु जीवन के प्रत्येक पहलू को आप उतनी गहराई से नहीं समझते जितना अन्य व्यक्ति। अन्य दूसरों से बातें करते समय उन्हें थोड़ी सी महत्ता प्रदान कीजिए, महत्ता से दूसरा फूल कर कुप्पा हो जाता है। उसका मिथ्या गर्व भड़क उठता है, वह अपने आप की महानता से अभिभूत हो उठता है। कोई ऐसा विषय ढूढ़िये जिसमें दूसरा व्यक्ति आपकी अपेक्षा अधिक ज्ञान रखता हो फिर उससे उसी दिशा में शिक्षा ग्रहण कीजिए। उसे अपने प्रिय विषय पर बातें करने के लिए उत्तेजित कीजिए। आपको यह मालूम करके आश्चर्य होगा कि वह मिथ्या अभिमान में मत्त होकर घन्टों बातें करता रहेगा और उस सबका श्रेय आपको मिलेगा।

सेवा मय जीवन बिताइये-

यदि तुम्हारे करने से किसी का भला होता है, तो यह मत सोचो कि हम अमुक व्यक्ति की सहायता क्यों करें। इसकी सिफारिश करने से हमें क्या लाभ होगा। तुम उससे बदले में कुछ मत चाहो। तुम्हारी भलाई की छाप उसके अन्तःकरण में चित्रित हो जावेगी निश्चय रखिए, आपकी इन सहायताओं का बदला इस जगत में न सही, दूसरे जगत में अवश्य प्राप्त होगा। इसलिए स्मरण रखिए, मैत्री भी धन के समान ही मूल्यवान है। जिसके जितने अधिक मित्र होते हैं उसे उतना ही अधिक आनन्द मिलता है। यदि किसी मित्र को कठिनाई में देखो तो तुमसे जितना बन सके उसकी सहायता करो। इस प्रकार के व्यवहार से तुम्हारे हृदय में जितना आनन्द होगा, वैसा आनन्द अकेले (Reserved) जीवन व्यतीत करने में कदापि न होगा।

इस प्रकार व्यवहार कुशल होना हमारा सर्वोत्कृष्ट कार्य है व्यवहार कुशलता का सबसे सरल मार्ग यह है कि तुम जो कुछ भी करना, कहना या बरतना चाहते हो सब अपने परम पिता परमेश्वर की ही प्रेरणा से करो।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118