विशेष प्रकार के विचारों, दृष्टिकोण, आदतों, एवं आदर्शों के सम्मिलित योग का नाम स्वभाग है। विशेष प्रकार के विचार मनुष्य का स्वभाव बनाते हैं। जिन विचारों, मन्तव्यों, संस्कारों में हम निरन्तर निवास करते हैं, वे ही क्रमशः हमारे स्वभाव की रचना किया करते हैं। उदासी, खिन्नता, निराशा, चिड़चिड़ापन और क्रोध लगातार विशेष मनः स्थिति में निवास करने की प्रतिक्रियाएँ हैं।
मानसशास्त्र के अनुसार विचार एक जीवित बल है। स्मृति एवं कल्पना का सम्बन्ध तो वास्तविक पदार्थों से है किन्तु की शक्ति वस्तु के समान उनके गुणों पर भी पृथक-पृथक विचार करती है। ईश्वर, प्रकृति, जीव विचार के विषय हैं अतः जितने समय तक विचार मन में रहता है उतने समय तक गति वाहक तन्तु उसी के अनुसार कार्य करते हैं। विचारों का दृढ़ चिंतन, उनमें विश्वास, श्रद्धा उस विचार को स्वभाव का एक अंग बनाते हैं। जो विचार बार-बार मानस पटल पर लाया जाएगा, वह उतनी ही गति से स्वभाव निर्माण या स्वभाव परिवर्तन करेगा।
पुनरावर्तन के नियमानुसार हममें से प्रत्येक व्यक्ति जैसा चाहे वैसा स्वभाव निमार्ण कर सकता है। तुम जैसा स्वभाव चाहते हो, वैसे ही विचार तीव्र गति से मन मन्दिर में प्रविष्ट होने दो, उनका हृदय से स्वागत करो, पालों, पोसो और दृढ़ चिंतन करो कि स्वभाव में इच्छित परिवर्तन हो जाएगा।
हम चाहें तो ईर्ष्या, उद्वेष, घृणा, खिन्नता, उदासी स्वभावों को बदल सकते हैं। यदि हम मन की उच्च भूमिका में स्थिर रहने की आदत डाल लें तो साहस, दृढ़ता, पवित्रता का प्रभाव हमारे मन में बहने लगेगा। आत्मा के बिल्कुल पास उससे सटी हुई मन की सर्वोच्च भूमिका है। इस उच्चतम विकास के निर्मल प्रदेश में जाने को मार्ग मानस प्रदेश विहारियों को मिल जाता है।
स्थायी विचार स्वभाव चरित्र व जीवन का निर्माण करते हैं अतः जैसा स्वभाव चाहो निरन्तर लगातार वैसे ही विचार प्रचुर संख्या में आने दो और उसी में अपनी आत्मा को स्नान कराते रहो। इस प्रकार तुम नीच से नीच स्वभाव को बदल सकते हो।
स्वभाव क्या है?
स्वभाव वास्तव में दृढ़ता पूर्वक किया हुआ मन का गहन चिंतन है। जिसका जितना अधिक चिंतन रहता है, उसका उतना अधिक स्वभाव रहता है। आपके जो विचार हैं उनके दृढ़ चिंतन द्वारा ही स्वभाव बनता है। आप जिस विषय या विचारों को मन में अधिक देर तक स्थान देते हैं, चिंतन मनन इत्यादि करते हैं अर्थात् जिन विचारों की मन में पुनरावृत्ति होगी उसी प्रकार का मनुष्य का भविष्य में स्वभाव (Nature) बनने लगेगा।
अपने स्वभाव, आदतों, टेब, प्रारब्ध स्थिति को बनाने बिगाड़ने या सुधारने की पूरी-पूरी सामर्थ्य मनुष्य के मन में है। मनुष्य जिन विचारों का दृढ़ता पूर्वक चिंतन करता है, जिसमें अपनी आत्मा को निरन्तर स्नान कराता है तदनुसार ही उसकी चित्त की वृत्ति दृढ़ होती है। इसी दृढ़ चित्तवृत्ति को हम स्वभाव कह कर पुकारते हैं।
जैसा हम ध्यान करते हैं, वैसे ही हम हो जाते हैं। अतः शुभ चरित्र एवं रचनात्मक विचारों को ही मन में प्रवेश करने दीजिए। कुछ काल के अभ्यास के पश्चात् आप अपना स्वभाव अवश्य सुधार सकेंगे।