(आत्म-मनोविज्ञान का परिचय)
मानसिक बेचैनी का एक कारण यह भी है कि हम अपने जीवन का काम छाँटते हुए यह नहीं सोचते कि यह काम हमारे स्वभाव के अनुकूल भी है या नहीं। हम अनाधिकार चेष्टा करते हैं और प्रायः ऐसे कार्यों में हाथ डाल देते हैं जो हमारे स्वभाव के प्रतिकूल हैं।
एक मनुष्य रुपया कमाने की लालसा से धर्मोपदेशक बन जाता है किन्तु अंत में निराश होकर वह काम छोड़ता है। कितने ही विद्वान व्यापार क्षेत्र में प्रवेश करके गिरह का पाई-पाई गवाँ बैठते हैं। जिसका स्वभाव क्रोधी है वह महात्मा बनने का अभिनय करता है। अंततः निराश होकर भागता है।
मनुष्य को चाहिए कि सर्वप्रथम अपने स्वभाव का खूब अध्ययन करे, सोचे, समझे और तब कदम उठावे। इसी प्रकार किसी दूसरे से व्यवहार करने से पूर्व उसके स्वभाव, आदतों, शिक्षा इत्यादि को पहिचाने। स्वभाव के अनुसार कर्म करने से ही मनुष्य विजयी होता है। आँतरिक शाँति के लिए स्वभाव अनुसार ही कर्म कीजिए।
तुम्हारे अंतःकरण पर जब तक किसी प्रकार का भी दबाव या बंधन है, कोई अंतर्वेदना या टीस है, तब तक तुम अपने भीतर की महान शक्ति को विकसित नहीं कर सकते। यदि तुम उन्नत होना चाहते हो तो दूसरों की मानसिक दासता में न रहो, उन पर निर्भर मत रहो। स्वयं अपनी मौलिकता, अपनी विशेषता प्रदर्शित करो। स्वयं विचार करना सीखो और अकारण की गुलामी को दूर करो।
मनुष्य का मन बंदर की तरह बड़ा चंचल है किंतु जब तक तुम मन को वश में नहीं कर सकते, तब तक तुम परतंत्रता के बंधन से कदापि मुक्त नहीं हो सकते। जब मन बाह्य सुखों से हट कर अंतर्मुखी होता है, चित्त के व्यापारों का दृष्टा बनता है और समग्र शक्तियाँ आत्मा की ओर लगाता है तब वह समस्त बंधनों से मुक्त बनता है। मन को आत्मा में तल्लीन कर पूर्णतः लय कर दीजिए तब आप मानसिक स्वतंत्रता पा सकेंगे।