चतुर दुकानदार को क्या जानना चाहिये?

January 1946

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(सफल विक्रेता का एक चित्र )

सफल विक्रेता को अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं, मनोभावनाओं, रुचियों का गहन अध्ययन करना चाहिए। हम आप ही की वस्तुएँ क्यों खरीदें? इस प्रश्न का उत्तर उसके पास सदैव प्रस्तुत रहना अनिवार्य है। आइये एक ग्राहक की मनोवृत्ति का अध्ययन करें।

किसी वस्तु को खरीदने के पाँच कारण हो सकते हैं। जब आप अपनी वस्तु बेचने निकले तो सोचिए कि इन पाँचों में से किसके अंतर्गत आप ग्राहक को रख सकते हैं। क्रय करने की मनोवृत्ति के पृष्ठ भाग में सदैव एक आकाँक्षा या इच्छा (Motibe) रहती है। जब कोई ग्राहक दुकान पर आकर माल खरीदता है तो वह निम्न पाँच कारणों से अपना निश्चय पक्का करता है।

ग्राहक के उद्देश्य-

1-अधिक द्रव्य कमाने की या उन्हीं वस्तुओं को बेचकर कुछ और रुपया पैसा पैदा करने की वणिक वृत्ति से प्रभावित होकर। सस्ते माल को खरीदना भी इसी प्रवृत्ति के अंतर्गत है।

2- लाभ की आकाँक्षा (tlity) कुछ व्यक्ति केवल लाभ को सन्मुख रख कर कितनी ही बे जरूरी चीजें खरीद कर रख लिया करते हैं। कुछ दिन पश्चात अमुक वस्तु महँगी हो जायेगी। अतएव वे उसे अभी से खरीद लेना दूरदर्शिता समझते हैं।

3- दर्प की पूर्ति (Satisfaction of pride) एक भड़कीला युवक हीरे की अंगूठी पहनता है और उससे अपने दर्प की पूर्ति करता है। एक साधारण फ्राडन्टेन से कार्य हो सकता है किन्तु व्यक्तिगत दर्प की पूर्ति के लिए 18) रु. का पार केर पेन खरीदना इसी मनोवृत्ति के अंतर्गत है।

4- भविष्य की चिन्ता के निवारणार्थ (Cantion) भी हमें अनेक वस्तुओं का संग्रह करना पड़ता है। इंश्योरेन्स की पौलिसी खरीदना आने वाली विपत्ति से बचने के लिए बुरी लगती हुई भी ले लेनी पड़ती है।

5- व्यक्तिगत निर्बलता (Yielding to weekness) के वशीभूत होकर हमें अनेक बार ऐसी वस्तुएँ ले लेनी पड़ती हैं, जो हम वास्तव में नहीं चाहते। दो चार धनीमानी प्रतिष्ठित सज्जन किसी कार्य के लिए चन्दा वसूल करने आते हैं किन्तु आप उन्हें मना नहीं कर पाते। यह व्यक्तिगत हीनता आपको चन्दा देने को बाध्य करती है।

ग्राहक को उत्तेजित कीजिए-

यदि आप सफल विक्रेता बनना चाहते हैं तो उक्त उद्देश्यों का गहरा अध्ययन कीजिए। जब आपसे ग्राहक कुछ वस्तु खरीदने आये, तो उक्त पाँचों उद्देश्यों में से जिसे आप उपयुक्त समझें, उसे उत्तेजित कीजिए। उसी पर उससे बातें कीजिए, अपनी दलीलें पेश कीजिए, और वस्तु की उपयोगिता के विभिन्न पहलू समझाइए। आपकी दलीलों और उद्देश्यों के सफल प्रकटीकरण पर आपकी बिक्री निर्भर है। दुकानदार को उन्हीं उद्देश्य पर ग्राहक को फुसलाना चाहिए। फुसलाने में मिथ्या घमंड को उत्तेजित करने से बड़ा काम निकलता है। दर्प की तृप्ति अधिकतर कम पढ़े हुए व्यक्तियों पर जादू का काम करती है।

जब आप सभा, सोसाइटी या बाजारों में जायें तो यह अध्ययन कीजिए कि कौन-कौन वस्तु किन-किन कारणों के वशीभूत होकर क्रय करते हैं, किस वस्तु पर ज्यादा आकर्षित होते हैं, किस वस्तु की माँग क्यों बढ़ रही है। पत्रों में प्रकाशित विज्ञापनों पर दृष्टिपात कीजिए, तो आपको प्रतीत होगा कि लोग ताकत की दवाइयों, सिनेमा के अर्द्ध नग्न चित्रों में, सुगंधित इत्र फुलैल, स्नो, क्रीम, कोकशास्त्र में अधिक दिलचस्पी लेते हैं। ये सभी अव्यक्त प्रदेश में छिपी अतृप्त काम वासना के सूचक हैं। इनके द्वारा लोग बाजार में ढेरों रुपया कमा रहे हैं। शृंगार तथा कामोत्तेजक वस्तुओं की माँग सदैव गर्म रही है। यह समाज की निंद्य एवं दूषित मनोवृत्ति की परिचायक है।

चार प्रकार के ग्राहकों को याद रखिए-

उद्देश्यों के अतिरिक्त भी चार प्रकार के व्यक्ति होते हैं। जब वे किसी वस्तु को खरीदने जाते हैं तो चार प्रकार से ही सोचते हैं।

कुछ ग्राहक गंभीर विचारक होते हैं। ये व्यक्ति किसी वस्तु को खरीदते समय बहुत अधिक सोचते विचारते (Reasoning type) हैं। वे दलीलें सुनना पसन्द करते हैं। वे यह चाहते हैं कि आप उन्हें तर्क द्वारा यह समझा दें कि वे आपका माल आखिर क्यों खरीदें।

दूसरे प्रकार के ग्राहक लार्ड किचनर-टाइप के कहे जा सकते हैं। इनका ललाट चौड़ा, अन्दर घुसी हुई ठोड़ी, लम्बी मूंछें, उग्र मुद्रा, चौकोर सिर एवं छोटी गरदन होती है। ये व्यक्ति अपनी संकल्प शक्ति से संचालित होते हैं। ये आपकी दलीलें या तर्क सुनना नहीं चाहते। ये तो केवल मान, सम्मान, आदर, सत्कार (Deference) के इच्छुक होते हैं। इन्हें चिकने चुपड़ी, प्रशंसा भरे मीठे-मीठे शब्दों से वश में किया जा सकता है। पान, बीड़ी, चाय का एक प्याला, सिगरेट इनके वृथा गर्व को फुला सकता है। किसी सूक्ष्म रीति से दुकानदार को ऐसे ग्राहकों के मन में पौरुष-श्रेष्ठता का भाव उत्पन्न कर देना चाहिए। विशेषतः दुकानदार को अपने आपका एक ऐसा दर्पण बनाना चाहिए जिससे दूसरे लोग अपने आप को देखें।

तीसरे प्रकार के ग्राहक न तो मान सम्मान चाहते हैं और न दलीलें ही, वे भावावेश (Emotion) से अधिक प्रभावित होते हैं। तैश में, भावातिरेक में आकर वे बढ़िया से बढ़िया और महंगी से महँगी वस्तुएँ खरीद लेते हैं। इस वर्ग में स्त्रियाँ भी शामिल हैं। स्त्रियाँ झूठी प्रशंसा सुनना पसन्द करती हैं। तुम्हारी आँखों में स्त्रियों को उनकी झूठी प्रशंसा से भरा प्रतिबिम्ब दिखाई दे। तुम उनकी डीगों को, मिथ्या अभिमान के प्रकाशन को, उनकी रुचियों को, शान्ति से सुनते जाओ किन्तु उन्हें कहीं सहानुभूति द्वारा उत्तेजिन प्रदान करते रहो उन्हें भावावेश में बहने दो। उनकी ऊँची रुचि पर प्रशंसा प्रकट करो, विफलताओं पर सम्वेदना का मरहम लगाओ।

ऐसे ग्राहक उन्हीं दुकानदारों को पसन्द करते हैं जो उनकी बातें सुनते नहीं थकते। तथा उनके सनकीपन को निरन्तर प्रोत्साहन देते रहते हैं।

चौथे प्रकार के वे ग्राहक हैं जो घड़ी की सुई की भाँति जरा-जरा सी बात पर अपना निर्णय बदला करते हैं। ये बड़े अस्थिर प्रकृति के व्यक्ति होते हैं। इन्हें माल बेचने के लिए और काम छोड़ कर कुछ देर इनसे अच्छी तरह बातें करनी चाहिए, उत्तमता की दलीलें पेश करनी चाहिए और किसी न किसी तरह वस्तु की श्रेष्ठता का भाव उनके मनः क्षेत्र में उत्पन्न कर देना चाहिए।

ये व्यक्ति घर से चलते-चलते समय यह सोच कर नहीं चलते कि उन्हें क्या खरीदना है। तर्क से पस्त होकर, या दूसरे के बहकावे में फँस कर एक दम काम कर डालते हैं।

निर्धन व्यक्ति माल खरीदना तो चाहते हैं, किन्तु धनाभाव उनके मार्ग में बाधक सिद्ध होता है। दुकानदार को इनसे बातें करने में बड़ी समझदारी करनी चाहिए। उनकी स्थिति, स्वभाव, इत्यादि को देख कर वस्तु खरीदना उनके लिए आसान बना देना चाहिए। थोड़ा-थोड़ा करके मूल्य वे दो से तीन बार तक चुका दे ऐसी व्यवस्था से कुछ हानि नहीं होती है। साथ ही ग्राहक अपना बना रहता है।

ग्राहक को देख कर पहचानिए कि वह उक्त वर्गों में कौन सा है? उसके विचार, उसकी माँगें आवश्यकताएं तथा रुचि कैसी है, ग्राहक का अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक गुर है।

उधार माँगने वाले ग्राहक -

उधार माँगने वालों से दुकानदार को सदैव सतर्क रहना चाहिए। उधार माँगने वाला कितनी ही अनावश्यक वस्तुएँ खरीद-खरीद कर ऋण चढ़ा लेता है जो पुनः दे देना कठिन हो जाता है। उनके मन में एक प्रकार की ग्लानि, लज्जा, तथा शर्म की भावनाएँ उत्तेजित रहती हैं। वह कभी-कभी भ्रमात्मक अवशिष्ट कल्पनाओं का शिकार बना रहता है। उसके अभ्यन्तर प्रदेश में विक्षोभ एवं आत्म-ग्लानि उत्पात मचाया करते हैं। अतः वह दुकानदार से बचता-बचता मुँह छिपाता फिरता है। उस दुकान से वस्तुएँ न लेकर अन्य किसी से खरीदने लगता है। इस प्रकार अदूरदर्शी दुकानदार कितने ही ग्राहकों को खो देते हैं और रुपये की हानि भी करते हैं। उधार लेने वालों से कौशल (Tactfully) से काम लेना चाहिये।

सफल विक्रेता के गुण-

सफल दुकानदार में सहानुभूति, नर्मी, हमदर्दी के गुण अत्यन्त आवश्यक हैं। विनम्र दुकानदार ग्राहक की जली भुनी बातें भी सुन लेता है। उसे अपनी कहने को प्रोत्साहित करता है। ऐसा करने से ग्राहक के मिथ्या दर्प, अभिमान तथा गर्व को उत्तेजना मिलती है। वह अपने आप को बड़ा समझने लगता है तथा अनेक वस्तुएँ गर्व में चूर होकर खरीदने लग जाता है।

जिस विक्रेता ने ग्राहक का मन जीत लिया, उसके हृदय में घर कर लिया, उसे अपना बना लिया वह उस ग्राहक से खूब कमाई कर सकता है। सहानुभूति एवं नर्मी से साधारण से साधारण दुकानदार ग्राहक का मन रख सकता है। ग्राहक से लड़ना झगड़ना या तेजी से बातें करना, या गर्म हो जाना बहुत बुरा है। इससे ग्राहक पुनः कभी दुकान पर नहीं आता। दुकानदार को तो ऐसी चुम्बक बनना चाहिए कि चलते फिरते लोग आकर वहीं अटक जायें और उससे बातें करने को लालायित हों।

विक्रेता के मुँह पर मधुर मुसकान रहना अत्यन्त आवश्यक है। हँसी-हँसी में वह यथेष्ट लाभ उठा सकता है। हँसी में ग्राहक के हृदय की मलीनता, क्रोध, द्वेष बह जाते हैं और वह दुकानदार की ओर आकर्षित हो जाता है।

अपनी भाव भंगियों, मुद्राओं का अध्ययन कीजिए। जब आप दूसरों पर प्रभाव पर प्रभाव डालना चाहते हैं तो आपका मुख कैसा लगता, उसमें कितना आकर्षण है, कितना माधुर्य। पाश्चात्य देशों में जो लड़कियाँ बेचने का कार्य करती हैं, उन्हें विशेष रूप से भाव भंगी, मुद्राओं तथा अंग-प्रत्यंग के संचालन की शिक्षा दी जाती है।

ग्राहक जो कुछ कहे उसकी हाँ में हाँ मिलाना जरूरी है। ऐसा करने से वह और उत्साहित होता है। वह जो कुछ कहे उसे सुनते जाइये। जहाँ तक हो सके ग्राहक को दुकान से पूर्ण संतुष्ट भेजना चाहिए। चाहे एक बार नफा कम ही मिले। संतुष्ट ग्राहक भविष्य में अधिक लाभ देता है।

मुफ्त के कैलेंडर, छोटे-2 इनाम, पुस्तकें, विज्ञापन, पान, सिगरेट देना बहुत लाभप्रद है, इससे अपनापन बढ़ता है और ग्राहक के हृदय में दुकानदार के लिए स्थान बन जाता है।


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