किसी काम में सफलता पाने के लिए सुयोग्यता की उतनी आवश्यकता नहीं है जितनी संकल्प शक्ति की है-कोरी काम करने की शक्ति से ही काम नहीं चलता किन्तु उत्साहपूर्वक लगातार मेहनत करने की इच्छा भी होनी चाहिये। इच्छा करने की शक्ति मनुष्य के चरित्रबल का केन्द्र है, या यों कहिये वह मनुष्य का सर्वस्व है। इसी शक्ति से आदमी काम करने में लगा रहता है और उसकी हरेक चेष्टा में जान सी आ जाती है। सच्ची आशा उसी पर निर्भर है और जीवन को सर्वोच्च बनाने वाली चीज आशा ही है। निरुत्साही मनुष्य का दुनिया में कहीं भी ठिकाना नहीं। दिल की मजबूती के बराबर दूसरा सुख नहीं। चाहे मनुष्य का प्रयत्न निष्फल भी चला जाय, तो भी उसे इस बात से संतोष मिलेगा कि मैंने यथाशक्ति प्रयत्न किया। जो मनुष्य धीरज रखकर मुसीबतों को झेलता है, ईमानदारी पर आरुढ़ रहता है और कठोर दुख में पड़कर भी अपने उद्योग के बल पर खड़ा रहता है, उसे देखकर दीन मनुष्यों में भी उत्साह और हर्ष पैदा होता है।
परन्तु केवल इच्छा करते रहना युवकों के मस्तक को रोगी बना देता है, इच्छाओं को शीघ्र कार्यरूप में परिणत करना चाहिये। एक बार किसी अच्छे काम का इरादा करके उसे बिना हिचकिचाये हुए तुरन्त ही पूरा कर डालना चाहिये। जीवन की अधिकाँश परिस्थितियों में कष्ट और मेहनत को खुशी के साथ सह लेना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से अत्यंत उत्तम और उपयोगी शिक्षा मिलती है। जीवन में शरीर अथवा मस्तक की मेहनत के बिना कोई काम सिद्ध नहीं हो सकता। काम करने से कभी मुँह न मोड़ना चाहिये। उत्साह भंग होने से कुछ भी नहीं हो सकता।
उत्साहपूर्वक काम किये बिना कोई महत्वपूर्ण काम नहीं हो सकता। मनुष्य की उन्नति मुख्य करके अपनी इच्छा से उद्योग करने और कठिनाइयों का सामना करने से होती है, और यह जानकर आश्चर्य होता है कि बहुधा वे बातें जो देखने में असंभव सी मालूम होती हैं ऐसा करने से संभव हो जाती हैं। तीव्र आशा स्वयं एक ऐसी चीज है कि वह संभव बातों को प्रत्यक्ष कर दिखाती है, हमारी इच्छाएं प्रायः उन कामों की सूचक होती हैं जिनको हम कर सकते हैं। परन्तु कायर और डावाँडोल मनुष्यों के साथ यह बात नहीं होती। वे हर एक काम को असंभव पाते हैं जिसका मुख्य कारण यही है कि वह काम उनको असंभव सा लगता है।
सम्पत्ति का अभिमान मत करो क्योंकि प्रकृति एक ही झोंके में बड़ी से बड़ी सम्पत्ति क्षण भर में चकनाचूर हो सकती है।