कर्त्तव्य क्षेत्र में उतरो।

September 1945

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पृथ्वी, पापों का प्रायश्चित करने के लिए कुछ दिन विश्राम करने की जगह नहीं है। यह वह घर है, जिसमें रहकर हमें सत्य, न्याय और दया के उस अंकुर को परिपुष्ट करना चाहिये। जिसका बीज प्रत्येक मनुष्य के हृदय क्षेत्र में बोया गया है। यह पूर्णता के उस शिखर पर पहुँचने की सीढ़ी है, जिसको हम तभी प्राप्त हो सकते हैं, जबकि अपने मन, वचन और कर्म से ईश्वर के प्रकाश को संसार में फैलावें और अपने आपको इस पवित्र काम के लिए समर्पित कर दें कि जहाँ तक हमारे सामर्थ्य हैं, उसकी इच्छा पूर्ण करेंगे। जिस समय हमारा न्याय होगा और हमको यह व्यवस्था दी जायगी कि हम या तो आगे बढ़ें या पीछे हटें उस समय केवल यही देखा जायगा कि हमने अपने भाइयों के साथ भलाई की है या बुराई, उनको अपने जीवन संग्राम में सहायता पहुँचाई है या हानि?

जितनी अधिक सहानुभूति और जितना अधिक निष्कपट प्रेम हम अपने सजातीय बान्धवों के साथ रखेंगे, उतनी ही अधिक हमारी शक्ति बढ़ेगी। हमें यह प्रयत्न करना चाहिए कि मनुष्य जाति एक कुटुम्ब बन जावे, जिसका प्रत्येक अंग प्रज्ज्वलित अणु के समान धार्मिक प्रकाश की किरण बनकर दूसरों के लिए उन पर चमके। इस प्रकार जातिगत पूर्णता पीढ़ी दर पीढ़ी अर्थात् युग युगान्तर में उन्नति करती जाती है।


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