नामापराध मत करो।

September 1945

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शास्त्रों में कुछ ऐसे “नामापराध” बताये हैं। जिनको करते रहने से नाम जप निष्फल हो जाता है। कोई आदमी सरकारी कानूनों को रोज-रोज तोड़े और रोज जाकर कोतवाल साहब की प्रार्थना करे तो उस प्रार्थना को चापलूसी या धूर्तता कहकर तिरष्कृत कर दिया जायगा।

शास्त्र का कथन है-

सन्निन्दाऽसतिनाम वैभव कथा श्रीशेशयोर्भेदधीः। अश्रद्धाश्रुतिशास्त्रदैशिकागिराँनाम्न्यर्थवाद भ्रमः॥ नामास्तीति निषिद्ध वृत्ति विहित त्यागोहि धर्मान्तरैः। साम्यं नाम जपे शिवस्य च हरेर्नामापराधादशः॥

अर्थ- सत्पुरुषों की निन्दा करना, अनिच्छुक व्यक्तियों को नाम महात्म्य और कथा कहना, शिव और विष्णु में भेद बुद्धि, वेदों की आज्ञा न मानना, शास्त्रों की आज्ञा न मानना, आप्त वचनों में अविश्वास, नाम महात्म्य को अर्थवाद मानना, नाम जपने का बहाना करके विहित धर्म कर्मों का त्याग, निषिद्ध कर्मों का आचरण और नाम जप की दूसरी बातों से तुलना करना यह दश नामापराध हैं।

जो इन नामापराधों को करता जाता है उसके नाम जप का कुछ महत्व नहीं। इसलिए सबसे पहले अपने चरित्र को शुद्ध किया जाय, आचरण को पवित्र बनाया जाय। जिसका आचरण शुद्ध है उसका थोड़ा सा नामोच्चार भी महान फल का दाता है। दुरात्माओं के दिन-रात कीर्तन से भी परमात्मा प्रसन्न नहीं होता।


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