मातृत्व और यौवन

September 1945

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(श्री विट्ठलदास मोदी, संचालक आरोग्य मंदिर, गोरखपुर)

आज यह साधारण विश्वास हो रहा है कि बच्चा पैदा होने पर स्त्री का स्वास्थ्य खराब हो ही जाता है। कई लोग तो गर्भावस्था को बुढ़ापे की प्रस्तावना समझते हैं और उनकी समझ से बच्चे वाली स्त्री अपने शारीरिक गठन को कदापि कायम नहीं रख सकती। ये विचार निराधार न होकर नित्य मिलने वाले प्रमाणों पर अवलंबित हैं। रोज दिखाई देता है कि आज की स्वस्थ सबल युवती एक ही बच्चे की माता होने पर कल कुछ दूसरी ही हो जाती है। उसके कपोलों की लाली का स्थान पीलापन ले लेता हैं और ताजगी सुस्ती में बदल जाती है। और जब तक गर्भवती और जच्चा के बारे में प्रचलित नियमों का आधार खड़ा रहेगा इन खेदजनक एवं करुणोत्पादक दृश्यों के बदले जाने की संभावना नहीं हैं।

जिन घरों में स्त्रियाँ सवेरे से शाम तक कुछ करती रहती हैं उनकी दशा कुछ अच्छी है। श्रम से ही जीवन है- यह नियम साधारण जन के लिए उपयोगी है उससे कही अधिक गर्भवती के लिए। यदि केवल इस एक ही नियम का पालन किया जाय तो गर्भावस्था एवं प्रसव, समस्या न होकर एक साधारण प्रश्न भर रह जाय। गाँवों में रहने वाली बहनों के जीवन पर दृष्टिपात किया जाय तो यह बात स्पष्ट हो जायगी। शहर की स्त्रियों को उनका जीवन सादा एवं सरल होने पर भी उनका स्वास्थ्य उन्हें ईर्ष्याजनक प्रतीत होता है।

गर्भवती स्त्री को चाहिए कि वह उन सभी दैनिक कार्यों को करती रहे जो वह गर्भावस्था के पूर्व करती थी। यदि किसी को बहुत अधिक श्रम साध्य कार्यों के करने की आदत रही हो तो अवश्य ही उसे उनके बदले हल्के काम चुनने चाहिए। पर सभी काम बंद करना तो बड़ी भारी गलती होगी।

क्या आप से कभी दस-बारह बच्चों की माता को तीन-चार बच्चों की माता और चार-पाँच बच्चों वाली को कुमारी समझने की गलती नहीं हुई है? यदि ऐसे सुँदर स्वास्थ्य वाली स्त्री के स्वास्थ्य के रहस्य का पता लगावें तो एक ही बात मालूम होगी, वह है श्रम। इससे यह सिद्ध होता है कि यदि शरीर सशक्त एवं माँस-पेशियाँ सुदृढ़ बनाई जायं तो प्रसव से कभी सौंदर्य संहारक न होगा। हमारा तो विश्वास है कि यदि समुचित ध्यान दिया जाय तो मातृत्व सौंदर्य रक्षा एवं सौंदर्य संवर्धन में सहायक हो सकता है। बच्चा होने के पहले और बाद में भी यदि ऐसा व्यायाम किया जाय जिससे अंग-प्रत्यंग की कसरत हो जाय तो स्त्री का शरीर कभी ढीला और बेडौल न होगा, गठन खराब न होगा, वरन् उन बे बच्चे वाली गृहणियों से बहुत अच्छा होगा जो कसरत नहीं करती।

विदेशों में स्त्रियाँ गर्भावस्था में भी अपना दैनिक कार्य करती हैं। मिल में काम करने वाली स्त्रियाँ कुछ ही हफ्ते के लिए अपना काम बंद करती हैं। वहाँ के स्वास्थ्य के विशेषज्ञ इस विषय पर विचार करते रहते हैं और उचित सलाह देते रहते हैं। हमारे यहाँ इसकी बड़ी कमी है। राष्ट्र के नव निर्माण की वह कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती, जिसमें स्त्रियों को गर्भावस्था के पहले और बाद में स्वास्थ्य ठीक रखने के उचित विचारों के प्रचुर प्रचार को स्थान न हो।

=कोटेशन============================

सब कामों में प्रारम्भ करने के पूर्व बुद्धिमानी से तैयारी करनी चाहिए।

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