(जोसफ मेजिनी)
इस बात को मत भूलना कि सार्वजनिक उन्नति करना ही हमारा उद्देश्य है, अर्थात् मनुष्य जाति के सब अंगों में अधिक गहरा और अधिक फैला हुआ मेल-जोल उत्पन्न करके अपने आपको तथा दूसरों को धार्मिक उच्च भावों की सीमा तक पहुँचाना ही हमारे जीवन का उद्देश्य है, बिना इसको पूरा किये हम कभी विश्राम न लेंगे।
इस पृथ्वी पर तुम इसलिये भेजे गये हो कि ईश्वर का एक नगर बसाएं उसमें सार्वजनिक कुटुम्ब की स्थापना करो। इस महान कार्य का सम्पादन करने के लिए तुमको लगातार परिश्रम और उद्योग करने की आवश्यकता है।
जब तुम में से प्रत्येक मनुष्य मात्र को भ्रातृ दृष्टि से देखने लगेगा और सब आपस में एक कुटुम्ब का सा आचरण करने लगेंगे, प्रत्येक मनुष्य अपनी भलाई दूसरों की भलाई में समझेगा, अपने जीवन को सबके जीवन के साथ और अपने लाभ को सब के लाभ के साथ मिलावेगा, जब हर एक मनुष्य इस संयुक्त कुटुम्ब के लिए स्वार्थ त्याग करने पर उद्यत होगा और वह कुटुम्ब किसी व्यक्ति को भी अपने से पृथक न समझेगा, उस समय वे बहुत सी बुराइयाँ जो अब मनुष्य जाति के दुःख और उद्वेग का कारण हो रही हैं, उसी प्रकार शाँत हो जायेंगी, जिस प्रकार सूर्योदय के होते ही निविड़ तमो राशि छिन्न-भिन्न हो जाती है, तभी ईश्वर की इच्छा पूर्ण होगी। क्योंकि उसकी यह इच्छा है कि मनुष्य जाति के बिखरे हुये अंग प्रेम के द्वारा आपस में मिलजुल कर धीरे-धीरे एक हो जायें और जिस प्रकार वह आप एक है उसी प्रकार उसकी सन्तान भी एक ही हो जायें।