जीवन का उच्च दृष्टिकोण

June 1945

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(ले.- कु. कैलाश देवी वर्मा)

आप अपने जीवन से क्या चाहते हैं? क्या सिर्फ जीना। खा-पीकर दुनिया से कूच कर जाना तथा अपना नामों निशान कुछ भी न छोड़ना, क्या आपने केवल यही सोचा है?

कितने ही व्यक्ति यह तक नहीं सोचते कि वर्ष में उन्हें कितना काम कर डालना है? कुछ यह भी नहीं सोचते कि कल वे क्या करेंगे? उनका जीवन अंधा-धुँध चला करता है। मार्ग में चट्टान आ रहा है या भारी गढ्ढा है, यह उन्हें नजर नहीं आता।

संसार में जितने महान् व्यक्ति हुए हैं उन्होंने खूब विचार किया था। जीवन के अनेक पहलुओं पर सामूहिक रूप में नजर डाली थी, तब वे अग्रसर हुए थे। उनके कार्य खूब सोच विचार कर (Delibrately) किए गए थे। उनमें एक क्रम था, एक व्यवस्था थी। सब कुछ यथास्थान था। इसी कारण उन्हें सफलता के दर्शन हुए।

जिसने अपने मन को सुव्यवस्थित कर लिया है उसे प्रलोभनों का कोई भय नहीं है। जैसे किसी मशीन में जरा सा विजातीय कण प्रवेश करते ही वह निज कार्य बन्द कर देती है, उसकी व्यवस्था में गड़बड़ हो जाती है उसी प्रकार स्वस्थ विचार सुव्यवस्थित मन का परिणाम है।

अपने प्रत्येक विचार से तुम अपने दृष्टिकोण का निर्माण कर रहे हो। प्रत्येक विचार ईंट है, इच्छा चूना तथा तुम्हारा संकल्प सबको दृढ़ता से बाँध रहा है।

उत्कृष्ट कार्य सदा उत्तम विचारों से उत्पन्न होते हैं अतः जब मनुष्य के मन में विवेक की ज्योति जगमगाती है तब उसका मन विशुद्ध होता है। ज्यों-ज्यों उसका दृष्टिकोण आध्यात्मिक होता है त्यों-त्यों उसे ऐसा अनुभव होता है कि मेरा जीवन ऐसी मजबूत चट्टान पर बना हुआ है जिसे असफलता की प्रबल झंझावात नहीं गिरा सकती।


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