सबका सम्मान कीजिये।

June 1945

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(राजकुमारी श्री रत्नेशकुमारी जी, मैनपुरी स्टेट)

मानव मात्र की यह अभिलाषा रहती है कि उसके सभी परिचित व्यक्ति उससे प्रेम भाव रक्खें और उसके प्रति अच्छी धारणायें रक्खें। क्या आपकी ये कामनायें नहीं हैं? यदि हैं तो इसके दो ही उपाय हैं (1) सब की सम्मान रक्षा कीजिये और (2) दूसरों के प्रति अमिट सद्भावनायें रखिये। सबको सम्मान रक्षा का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि आप सभ्यता युक्त शिष्ट-जन-सम्मत बर्ताव करें और किसी से अपमान पूर्ण व्यवहार न करें वरन् ये साधना पूर्णता को तब प्राप्त होंगी जब पीठ पीछे भी आप निन्दा न करें।

यह जानकर कि कोई निन्दनीय कार्य कर रहा है उसे आप प्रेम सहित मधुर शब्दों में उसके कटु प्रतिवादों पर भी धैर्य रखते हुए यथाशक्ति समझावें फिर भी यदि वह न माने तो या तो उससे वह कार्य छुटाने के लिये तन मन से तब तक प्रयत्न पूर्ण शक्ति से करते रहें जब तक उसका पूर्णतया त्याग न कर दे या फिर तब तक के लिए उससे असहयोग कर लें। आपकी आत्मा और कोई तीसरा मार्ग ढूंढ़ निकाले तो उसे भी गृहण कर सकते हैं पर किसी भी जीवनपथ के भ्रान्त पथिक के लिए आपके हृदय में सम्वेदना ही रहे, घृणा आपकी इस साधना को नष्ट न कर पाये।

सबके प्रति सद्भावनायें रखने की साधना में आप तब सफल हो सकेंगे, तभी वह बलवती हो सकेगी जब आप मन में भी किसी के प्रति कुभावनाओं को न ठहरने दें क्योंकि वाणी और क्रियायें हृदय निवासिनी भावनाओं का दर्पण मात्र हैं और इसके विपरीत आचरण विडम्बना मात्र सिद्ध होगा। निन्दनीय कार्यों के कर्त्ता की परिस्थिति, संग और आस-पास के वातावरण पर आप जब निष्पक्ष भाव से उत्तेजना रहित होकर विचारेंगे, तब सहानुभूति की पावन गंगा आपके हृदय से उस अभागे के लिए वह निकलेगी जो कि अपनी मानसिक दुर्बलताओं के कारण अपना भयंकर अहित कर रहा है। दूसरों का सम्मान करने की भावना को जितना ही अधिक आप अपनाते जायेंगे उतना ही अधिक आप अपने स्नेही जनों और प्रशंसकों की वृद्धि होते देखेंगे।


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