(श्री स्वामी सत्यदेव जी परिव्राजक)
कोलम्बस के नई दुनिया दरयाफ्त करने से पहले पुरानी दुनिया के निवासी तम्बाकू का नाम भी नहीं जानते थे। सन् 1492 ईसवी के नवम्बर मास में जब कोलम्बस में ‘क्यूबा’ टापू ढूँढ़ निकाला तो उसने अपने कुछ साथियों को इस टापू के जंगली निवासी का हाल−चाल जानने के लिए भेजा। कोलम्बस के साथी जब उस टापू के अन्तरीप भाग में पहुँचे तो वहीं उन्होंने जंगली वासिन्दों के मुँह और नाक से धुँआ निकलते देखा। यह देखकर उनको बड़ा विस्मय हुआ। लौटकर उन्होंने अपने सरदार को इसकी सूचना दी और कहा कि काले-काले ‘क्यूबा’ निवासी नंगे घूमते हैं और बड़े-बड़े पत्तों को लपेटकर, उनका एक सिरा जला दूसरों को मुँह में रख शैतानों की तरह धुँआ निकालते हैं।
यहीं इस ‘शैतानी आदत’ का आरम्भ समझिये। कोलम्बस उन पत्तों को अजीब चीज समझकर म्यूजियम में रखने के लिए उन्हें यूरोप ले गया, वहाँ कुछ बेवकूफ निठल्ले स्पेन के अमीरों ने उस जंगली आदत का मजा देखना चाहा, बस फिर क्या था, नकलची लगे नकल करने ‘धूम्र पान’ एक नया फैशन बन गया।
1494 ईसवी में जब कोलम्बस ने दुबारा अमेरिका की यात्रा की तो उसके साथियों ने वहाँ की जंगली जातियों को तम्बाकू सूँघते देखा। उसकी चर्चा भी यूरोप में पहुँची। वहाँ के अमीर समाज की स्त्रियों ने दिल्लगी के तौर पर आपस में सूँघनी का प्रयोग आरम्भ कर दिया। भरी समाज में जब छींकों की झड़ी लग जाती तो देखने वालों के पेट में हंसते-हंसते बल पड़ जाते। धीरे-धीरे यह दिल्लगी की आदत सभ्य समाज की स्त्रियों की एक प्यारी चीज बन गई और तम्बाकू सूँघना एक नया फैशन हो गया।
1503 ईसवी में जब स्पेनिश लोग ‘पेरागुआ’ विजय करने के लिए गये तो वहाँ के निवासियों ने एक बड़ी संख्या में उनका सामना किया। बड़े जोर से ढोल बजाते हुए, पानी फेंकते हुए तथा तम्बाकू चबाते हुए वे हमला करते थे। निकट आने पर उन्होंने तम्बाकू के रस का प्रयोग स्पेनिश सिपाहियों को अंधा करने के लिए किया। उस जमाने में हाथा-पाई की लड़ाई अधिक प्रचलित थी, इसलिए तम्बाकू चबाने वाला बड़ी आसानी से अपने शत्रु की आँखों में तम्बाकू का रस थूक सकता था। उन जंगली जातियों के लिए स्वत्व-रक्षा का यह एक अच्छा साधन था। जब स्पेनिश लोग उस टापू को विजय कर अपने देश को लौटे तो उन्होंने तम्बाकू चबाने की चर्चा यूरोप में फैलाई। यही इस भ्रष्ट आदत के प्रचार का संक्षिप्त इतिहास है।
अब यूरोप के व्यापारियों के स्वार्थ सिद्ध करने की बारी आई। उन्होंने तम्बाकू के द्वारा रुपया कमाने का बड़ा अच्छा अवसर देखा। अपने एजेन्टों को अमेरिका भेज कर उन्होंने तम्बाकू से लदे हुए जहाज मंगाये और तरह-तरह के चटकीले विज्ञापनों द्वारा उस जंगली वस्तु का जनता में प्रचार बढ़ाना आरम्भ किया। नये-नये मनमोहक हुक्कों का आविष्कार होने लगा, तम्बाकू में खुशबू भी मिलाई जाने लगी। उसके नशे की प्रशंसा में कवियों ने कविताएं भी लिख डालीं।
यूरोप की ‘नकटी सभ्य समाज’ ने यहीं तक बस नहीं किया बल्कि उसने उस जंगली आदत का प्रचार एशिया में भी करने की कमर कसी। क्यों न हो, आप तो डूबे ही ये अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को भी साथ ही डुबाना चाहा। स्वार्थ से अन्धे होकर उन्होंने इस का प्रचार भारतवर्ष में बढ़ाया। धन लोलुप यूरोपियन कम्पनियों ने सुन्दर स्त्रियों के छोटे-छोटे चित्र सिगरेट को डिब्बियों में रखकर ‘सभ्यता’ के साथ इस शैतानी वस्तु का प्रचार जनसाधारण में किया अमेरिका की जंगली जातियाँ जिस आदत में फंसी हुई थीं उसमें आज भारत के उच्च वर्णाभिमानी तथा जन साधारण डूबे हुए हैं। काशी के बड़े-बड़े पंडित सूँघनी सूँघते हैं, बड़े-बड़े कोट पतलून वाले लुक्का लगाये फिरते हैं, ‘सूँघनी’ वाले व्यापारी पत्र पत्रिकाओं में बड़ी शान के विज्ञापन देते हैं। गरीब मजदूर खों-2 करते हुए भी इस गलीच वस्तु का प्रयोग करते हैं। छोटे-छोटे लड़के इन विषैले पत्तों का धुँआ लेकर अपने आपको धन्य मानते हैं। यह सब यूरोप से आई हुई इस बर्बरता के फल हैं।
तम्बाकू एक बड़ा जहरीला पदार्थ है। आध सेर तम्बाकू में जितना जहर होता है यदि उसका पूरा प्रभाव मनुष्यों पर हो सके तो उससे तीन सौ आदमी मर सकते हैं। एक सिगरेट के पूरे प्रभाव से दो आदमियों की मृत्यु हो सकती है। तम्बाकू का रस खेती को हानि पहुँचाने वाले कीड़े को मारने के काम में आता है। अमेरिका के कृषक लाखों मन तम्बाकू का रस इसी काम में लेते हैं। हाटन टाट के रहने वाले तम्बाकू के तेल से साँप मारने का काम लेते हैं। उस तेल के एक बूँद से काला नाग फौरन मर जाता है। माली तथा बागों के मालिक फलों के नाशक कीड़ों को मारने के लिए इसका प्रयोग करते हैं। यदि आप सिगरेट को खोल कर, पत्तों को चौड़ा करके, अपने पेट पर रख लें और कपड़े से बाँध दें तो कुछ देर बाद उनके विष का प्रभाव आपको स्वयं मालूम हो जायगा।
जो तम्बाकू इतना जहरीला है उसके सेवन से निरोग मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा? बुद्धिमान पाठक इसको स्वयं समझ सकते हैं।
=कोटेशन============================
एकान्त से ही प्रत्येक वस्तु का जन्म हुआ है। अकेला मनुष्य अधिक तेजी से चलता है।
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