गायत्री पर महात्मा गाँधी

June 1945

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महात्मा गाँधी ने तिब्बिया कॉलेज देहली का उद्घाटन करते हुए कहा था-

“वर्तमान चिकित्सा प्रणाली धर्म से सर्वथा शून्य है। जो व्यक्ति उचित रूप से प्रतिदिन नमाज पढ़ता है या गायत्री का जप करता है, वह कभी रोग ग्रसित नहीं हो सकता। एक पवित्र आत्मा ही पवित्र शरीर का निर्माण कर सकता है मेरा दृढ़ निश्चय है कि धार्मिक जीवन के नियम आत्मा और शरीर दोनों की यथार्थ रूप से रक्षा कर सकते हैं।”

9 मार्च 1940 के हरिजन सेवक में महात्मा गान्धी ने लिखा था-

“मैं तो उस पीढ़ी का आदमी हूँ जिसका प्राचीन भाषाओं की पढ़ाई में विश्वास था। हर एक राष्ट्रवादी को संस्कृत पढ़नी चाहिए। इसी भाषा में हमारे पूर्वजों के विचार और लेख हैं। यदि हिन्दी बच्चों को अपने धर्म की भावना से हृदयंगम कराती है तो एक भी लड़के या लड़की को संस्कृत का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त किये बिना नहीं रहना चाहिए। देखिए! गायत्री का अनुवाद हो ही नहीं सकता। मेरी राय में इसका एक खास अर्थ है मूल मंत्र में जो संगीत है वह अनुवाद में कहाँ से आवेगा?


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