मिल-जुल कर प्रेम पूर्वक रहो।
तुम्हारी जल शाला एक सी हो आन्न का विभाजन एक साथ हो, एक ही जुए में मैं तुमको साथ-साथ जोड़ता हूँ जैसे पहिये के अरे नाभि में चारों ओर से जुड़े होते हैं, वैसे ही तुम सब मिल कर ज्ञान स्वरूप प्रभु की पूजा करो।
अथर्व वेद 3-30-6
आपस में मिलों, संवाद करो जिससे तुम्हारे मन एक ज्ञान वाले हों, जैसा कि पहिले देवता एक मन होकर अपने-अपने भाग का सेवन कर रहे हैं, अर्थात् अपना कर्त्तव्य करते हुए विश्व की स्थिति के कारण बने हुए हैं।
ऋग्वेद 10-19-12
हे दृढ़ बनाने वाले! मुझे ऐसा दृढ़ बना कि सब प्राणी मुझे मित्र की दृष्टि से देखें। मैं स्वयं सब प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखता हूँ (और चाहता हूँ कि) हम सब आपस में एक दूसरे को मित्र की दृष्टि से देखें।
यजु. 36-18