विधवा-विवाह का प्रश्न?

February 1943

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हमारे देश में जो पति भक्ति या पति प्रीति है और थी, वह क्या है? वह केवल व्यक्ति विशेष के ऊपर ही प्रीति अथवा भक्ति नहीं थी और न है। वह व्यक्ति विशेष को अतिक्रम करके भी वर्तमान थी। वह ‘पतित्व’ नामक जो भागवत अस्तित्व है उसी के प्रति भक्त थी। व्यक्ति विशेष उपलक्ष मात्र था, मुख्य पतित्व ही था। इसी कारण व्यक्ति के भले बुरे होने से भी भक्ति में घटा बढ़ी नहीं होती थी। सब स्त्रियों को पति बराबर ही पूज्य थे। यूरोपीय स्त्रियों की भक्ति या प्रीति व्यक्ति विशेष में ही स्थापित है, वह भाव तक नहीं पहुँचती। इसी कारण वहाँ पति नामक व्यक्ति विशेष के गुण दोषों के अनुसार उनकी भक्ति और प्रीति नियमित होती है। इससे वहाँ विधवा विवाह में दोष नहीं है। वहाँ की स्त्रियाँ भाव से विवाह नहीं करती, व्यक्ति से विवाह करती हैं और इस हेतु व्यक्ति का अंत होने पर पतित्व का भी अंत हो जाता हैं, परन्तु हमारे देश के अधिकाँश व्यक्तिगत सम्बन्ध इस प्रकार सुगंभीर भावों पर ही स्थित होने से व्यक्ति नष्ट होते हुए भी पति स्वभाव अस्तित्व में रहता है, इसके कारण भारत में विधवा विवाह निषिद्ध माना जाता है।

-स्व. रवीन्द्रनाथ टैगोर


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