इन अवतारों से सावधान

February 1943

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(श्रीरामशरण दास जी पिलखुआ)

आज कितने ही मनचले लोग अपने को कल्कि भगवान बताकर असंख्य अज्ञान जनता को अपने जाल में फंसा चुके हैं। अभी उस दिन पिलखुआ में एक बड़ी मजेदार बात हुई। एक पढ़े लिखे मुसलमान सज्जन लम्बी दाढ़ी बढ़ाये, तुर्की टोपी लगाये हमारे स्थान पर पधारे। दुआ सलाम के पश्चात् उन्होंने कहा- लाला जी, आपने एक नई बात सुनी है? मैंने कहा- सुनाईये क्या नई बात हुई। उन्होंने कहा- “श्रीकृष्ण भगवान कल्कि अवतार बनकर आ गये हैं। उनका वर्तमान नाम गुलाम अहमद मुसलहमऊद है और लाहौर में विराजे हैं। लाखों हिन्दू और मुसलमान उनके भक्त हैं। बड़े बड़े पंडित उनके शिष्य बन गए है वे धर्म की रक्षा करेंगे और बड़े बड़े काम करेंगे जो पहले अवतारों ने किए हैं। उन्हें हिन्दू और मुसलमान सब एक से हैं वह दो नहीं समझते।”

मैं उन सज्जन का मतलब समझ गया। वे उन कलियुगी कल्कि के प्रचारक थे और शायद मुझे अपने चंगुल में फँसाना चाहते थे। समदर्शी पन की परीक्षा लेने के लिए मैंने कहा- खाँसाहब, यदि ऐसा है तब तो बड़ी खुशी की बात है। भगवान एक है और वे ही नाना रूपों में अवतार लेते रहते हैं। इन लाहौर निवासी अवतार ने पहले मत्स्य, कच्छप, वाराह आदि में अवतार लिया होगा? उन्होंने पूछा मत्स्य, कच्छप, वाराह का मतलब मैं नहीं समझा, हिन्दी में कहिए। मैंने उन्हें बताया कि मत्स्य, मछली को, कच्छप कछुआ को और वाराह सुअर को कहते हैं। हमारे भगवान पहले इन शरीरों में भी अवतार ले चुके हैं।

‘सुअर’ का नाम सुनते ही खाँसाहब बहुत बिगड़े। उनके कहा ‘तोबा, तोबा’ आपने किसका नाम ले लिया, हमारे यहाँ तो उसका नाम लेना भी गुनाह है। हजरत मऊद साहब ने हरगिज ऐसा नापाक अवतार न लिया होगा। मैंने कहा तो फिर उन्होंने कृष्ण का भी अवतार न लिया होगा और न अब कल्कि ही हो सकते हैं। अपनी दाल गलती न देखकर खाँ साहब कुड़कुड़ाते हुए उठकर चले गये।

भाइयो! इन अवतारियों से सावधान।


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