(1) कागज का घोर अकाल
समाचार पत्रों के पाठक यह जानते ही हैं कि युद्ध जनित कठिनाइयों के कारण आज कल कागज कितना दुष्प्राप्य हो रहा है। बड़े बड़े शहरों में तो किसी प्रकार चोरी छिपे वह मिल भी जाता है, पर मथुरा जैसे छोटे शहरों में तो असाधारण कठिनाई का सामना करना पड़ता है। पुराना कुछ भी स्टॉक न होने के कारण हमें हर महीने कागज खरीदना पड़ता है और इसके लिए एक एक दस्ता तलाश करते हुए इधर उधर प्यासा सा भटकना पड़ता है। कीमत करीब 10 गुनी हो गई है। अखण्ड-ज्योति की एक कापी में पहिले यदि दो पैसे का कागज लगता था, सो अब पाँच आने का लगेगा। छपाई, डाक खर्च, बाइंडिंग, खोये हुए अंकों को दुबारा भेजने का खर्च अलग। इस प्रकार इन दिनों निर्धारित अखण्ड-ज्योति की लागत कई गुनी पड़ती है। पृष्ठ संख्या कम कर देने पर भी खर्च प्रति कापी के ऊपर चार आना आता है। कागज मिलने की असुविधा हमारे मार्ग की सब से बड़ी बाधा है। उसका कुछ हल करने के लिए मथुरा में हाथ का बना कागज तैयार होने की कुछ व्यवस्था कर रहे हैं। इस अंक में जो कागज लगा है, वह ब्रजवासी मजदूरों के हाथ का बना हुआ है। अगले अंक से कुछ और बढ़िया कागज बन सकने की आशा है। हम चाहते हैं, कि अगले कुछ महीनों के लिए कागज का स्टॉक तैयार हो जाए, परन्तु पैसे की कमी से कार्य आगे नहीं बढ़ पाता। उदार पाठक इस पुनीत कार्य के लिए कुछ आर्थिक सहयोग दें, तो कार्य सुगम हो सकता है, शुरू में कागज भद्दा बना है, आशा है कि अपनी कुरूप वस्तु को भी पाठक स्वीकार करेंगे।
(2) लेख मालाएं
पिछले अंकों में कुछ लेख मालाएँ आरम्भ हुई थी, उनमें से अधिकाँश के पूरे लेख नई प्रकाशित पुस्तकों में छप गये हैं, जो लेख मालाएँ अधूरी रह गई हैं, वे आगे की पुस्तकों में छाप दी जायेंगी। पृष्ठ घटा देने के कारण बड़े लेख तो दो तीन ही पूरी पत्रिका में आयेंगे। इसलिए अब तो इसमें छोटे-छोटे लेख छपते रहने की ही व्यवस्था हो सकती है।
(3) सं. 2000 अंक
जनवरी सन् 43 का अंक अपनी उत्तमता के कारण छपने पर दस रोज में ही समाप्त हो गया। माँग अधिक होने के कारण उसके लेख पुस्तकाकार छपाने पड़े। अब हमारे पास सम्वत् 2000 अंक की एक भी कापी शेष नहीं है। जो सज्जन इस वर्ष के ग्राहक बन रहे हैं, उनके लिए विशेषाँक के लेख की संग्रह पुस्तक ‘सम्वत् 2000 और नवयुग‘ भेजी जा रही है। पाठक उसे ही जनवरी का अंक समझ कर सन्तोष कर लें।
(4) पुस्तकों का कमीशन
अब पुस्तकों पर कमीशन देना बिलकुल बन्द कर दिया गया है। कोई सज्जन इसके लिये व्यर्थ लिखा-पढ़ी न करें। हाँ! छः से अधिक पुस्तकें लेने पर डाक खर्च माफ किया जा सकता है।