छोटों की सहायता

February 1943

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एक बार हमारा एक नौकर काशीनाथ बीमार हुआ। उसे प्लेग की गिल्टी निकल आई। वह चुपचाप अस्पताल को चला गया और रिश्तेदार को एक पत्र लिख दिया कि जज साहब को खबर न होने पावे, वरना वे मेरे लिए बहुत चिन्ता करेंगे। फिर भी मेरी पत्नी को किसी प्रकार पता चल गया और हम लोग उसकी सेवा सुश्रूषा करने अस्पताल नित्य जाने लगे। हमारे एक मित्र ने कहा-छोटे नौकर के लिए हाईकोर्ट के प्रधान जज को इतनी दौड़ धूम करना उचित नहीं। मैंने हँसते हुए कहा- जज होने से पहले मैं मनुष्य हूँ और मनुष्य का धर्म है कि अपने से छोटे व्यक्तियों की शक्ति भर सहायता करे।

जस्टिसट महादेव गोविन्द रानाडे।


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