बादलों की तरह बरसते रहो।

February 1943

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(ऋषि तिरुवल्लुवर)

वे लोग अगले जन्म में राक्षस होंगे जो किसी को कुछ नहीं देते और पैसे को जोड़ जोड़ कर जमा करते जाते हैं। जिसने अपने घर में दौलत के ढेर जोड़ रखे हैं मगर उसका सदुपयोग नहीं करता उसे एक प्रकार का चौकीदार ही कहना चाहिये। उसका जीवन पृथ्वी के लिए भार रूप है वेश की परवाह किये बिना निरन्तर धन के लिए ही हाय हाय करते हैं। जो न तो खुद खा सकता है और न दूसरों को दे सकता है चाहे वह करोड़पति ही क्यों न हो मामूली गरीब आदमी से उसमें कुछ विशेषता नहीं है। उचित अनुचित तरीकों से पेट कस कस कर जो धन जोड़ा गया है वह उसके किसी काम न आवेगा उसका उपयोग तो दूसरे ही करेंगे। वह मनुष्य बुद्धिमान है जिसने अपना धन शुभ कर्मों में खर्च कर दिया है। असल में वह बरसने वाले बादल के समान है जो आज खाली होता तो कल फिर भर जावेगा। मिलनसारी, भलमनसाहत का व्यवहार और दूसरों के हितों का खयाल रखना, यह ऐसे गुण हैं जिनसे दुनिया अपनी हो सकती है। संसार उनकी इज्जत को भुला नहीं सकता जो अपने से छोटे और बड़ों के साथ शिष्टता का व्यवहार करते हैं।

कटुभाषी और निष्ठुर स्वभाव के मनुष्य का जीवन लोहे और काठ की तरह नीरस होता है चाहे वे भले ही आरी की तरह तेज हों। जिस कर्महीन मनुष्य को इतने लम्बे चौड़े विश्व में हँसने और मुस्कराने योग्य कुछ दिखाई नहीं देता और सारे दिन कुड़ कुढ़ता रहता है, उसे उस रोगी की तरह समझना चाहिए जिस दिन में भी नहीं दीखता। बद-मिज़ाज व्यक्ति के पास चाहे कितनी ही विद्या और सम्पत्ति क्यों न हों, वह उस दूध के समान निकम्मा है जो गन्दे पात्र में रखा होने से दूषित हो गया है।


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