(श्री धर्मपालसिंह जी, रुड़की)
जीवन है? और उसको धारण करने का क्या प्रयोजन है? एक परिपूर्ण सफल जीवन क्या होता हैं? उसके क्या साधन हो सकते हैं? इस प्रकार के अन्य और बहुत से विचार कुछ स्वभावतः ही मनुष्य के मन में उठा करते हैं।
वास्तव में मनुष्य जीवन का जो मुख्य उद्देश्य है वह तो एक ही है केवल ईश्वर प्राप्ति परन्तु यह तो सर्व श्रेष्ठ और घोर अन्तिम श्रेणी की बात है। जहाँ पर पहुँचने का सौभाग्य, महान् पुण्यात्मा योगी जनों को ही प्राप्त होता है।
सर्व साधारण हम आप जैसे मनुष्यों का तो जीवन उद्देश्य कर्त्तव्य पालन ही है-अर्थात् कुशलता, निष्कपटता एवं सरलता पूर्वक सहज स्वभाव से अपना-2 कार्य करना और परिणाम स्वरूप संसार से जाते समय अधिक से अधिक खुशी का भण्डार संसार में छोड़ते हुए विशेष आनन्द और शान्ति को साथ ले जाना। यह है साँसारिक साधारण जीवन की सफल झाँकी।
हमें ऐसा कर्त्तव्यनिष्ठ सरल जीवन बनाने का सतत प्रयत्न करते रहना चाहिये। इस प्रकार के जीवन का मूलाधार हमारे विचार ही होते हैं। एक आदर्श जीवन विचारों का ही तो संग्रह होता है।
दूसरों की उन्नति अथवा पतन देखकर जब हम अशुद्ध मन से ईर्ष्या आदि बुरे भावों के शिकार होते हैं तो इस प्रकार दूसरों के कल्याण चाहने वाले बुरे विचारों का संग्रह होकर हमारा मन घोर कलुषित हो जाता है जिस कारण हम स्वयमेव दुःख सागर में डुबकियाँ लेने लगते हैं इस प्रकार हमारा आध्यात्मिक पतन होना शुरू हो जाता है।
इसके विपरीत हम जितना अधिक स्वार्थ त्याग और पर उपकार के विचारों का केन्द्र अपने अन्दर बनाते जायेंगे, उतना ही अधिक हम आनन्द और शाँति को प्राप्त होंगे। जो लोग हमसे किसी प्रकार का फायदा उठाते हैं वह ही गुप्त और प्रकट रूप से हमारा कल्याण करने वाले होते हैं। हमें ऐसी तैयारी कर लेनी चाहिये कि हम मन, कर्म, वचन से हर समय दूसरों का भला ही सोचते रहें-ऐसा करने से निश्चय हमारे बुरा चाहने वालों की संख्या कम होकर हमारा भला चाहने वालों की संख्या अधिक हो जाएगी और हम अपने चारों ओर सुखद और शान्तिपूर्ण वातावरण बना सकेंगे। जब मनुष्य का मन क्रोध ईर्ष्यादि बुरे विचारों से रहित हो जाता है तो वह असीम दैवी शक्ति को धारण कर लेता है- उस समय अनेक शत्रु होने पर भी वे उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
इस प्रकार का अद्भुत शान्तिपूर्ण जीवन बनाने में हमें उन घड़ियों में विशेष सतर्कता पूर्वक धैर्य से काम लेने की जरूरत है। जब कि किसी प्राणी द्वारा हमें हानि पहुँचाई जा रही हो। आध्यात्मिक जीवन में यह समय ही-परीक्षा का समय होता है। भरपूर साहस और दृढ़ता से हमें-ऐसे विचारों को हटाने में असीम शक्ति से काम लेना चाहिये जो उस समय में दूसरों का अकल्याण चाहने को हमारे मन में आते हैं। ऐसे समय में हम मन से उनका अकल्याण न चाहें, पर हाँ! कर्तव्य द्वारा उसका उत्तर देना कोई बुरा नहीं है।
वास्तव में निष्कपट और सरल हृदय वाले व्यक्ति उत्तम लौकिक और पारलौकिक सुखों के स्वामी होते हैं। दगा फरेब, झूठ, ईर्ष्यादि बुरे विचारों से काम चलाने वाले अल्पकालीन तुच्छ सुखों को प्राप्त होते हैं।
अतएव मन, कार्य, वाणी से सदैव दूसरों का हित ही विचारना और करना चाहिये और प्रातःकाल बिस्तर त्यागते समय प्रभु का नाम स्मरण करने के बाद इस मन्त्र को भी एक बार अवश्य उच्चारण कीजिये कि- “हे प्रभु! संसार के सभी प्राणियों का कल्याण हो।”