जागरण गान

February 1943

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(लेखक- श्री भगवती प्रसाद वाजपेयी)

जग रे, जीवन के राग जाग,

प्राणों की धूमिल आग जाग।

जो गिरते गिरते उठ न सके,

जो रोते रोते हँस न सके,

उन मरण शील इतिहासों के-

उपवन के सुमन पराग जाग !

जग रे जीवन के पराग जाग!!

अन्तः निःसृत विश्वासों में

अपमान भरे उपहासों में

जिनका अणु अणु हो गया भस्म-

उनके संस्मरण विहाग जाग!

जग रे जीवन के राग जाग!!

पीड़ित जन की परवशता में,

शोषित दल की दुर्बलता में,

जो चिनगारियाँ सुषुप्त रहीं,

उनकी लपटों के नाग जाग!

जग रे, जीवन के राग जाग!!


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