स्मरण शक्ति और उसका विकाश

April 1940

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(ले. श्री गिरराज किशोर विशारद, चिरहोली)

मनोबल और इच्छा शक्ति के द्वारा सभी मानसिक शक्तियाँ विकास कर सकती हैं इस सिद्धान्त को पाठक अखण्ड ज्योति के पिछले अंकों में अनेक स्थलों पर पढ़ चुके होंगे। स्मरण शक्ति के विकास पर भी वह सिद्धान्त वैसा ही लागू होता है जैसा अन्य शक्तियों पर। जिस भोज्य पदार्थ में घृत डाला जाता है वह सुस्वादु बन जाता है, जिस भूमि में खाद डालते है वही उर्वरा हो जाती है। पोषक तत्वों का गुण ही ऐसा है उनका समावेश जिन वस्तुओं में होगा निश्चय ही उनमें जागृति होगी।

पिछले अंकों के वर्णन के बाद अब मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं रही कि स्मरण शक्ति क्या है और उसमें न्यूनता किस प्रकार आ जाती है। आज तो मैं उन उपायों पर प्रकाश डालने जा रहा हूँ जिनके द्वारा इच्छा शक्ति का संयोग करके याददाश्त को बढ़ाया जा सकता है। यहाँ पाठकों को यह भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि इन उपायों द्वारा प्राप्त होने वाली सफलता इधर पूरा ध्यान देने पर अवलम्बित है। निष्ठा के साथ जो लोग इन साधनों को अपनावेंगे वे ही भरपूर लाभ उठा सकेंगे। जिनके मन में क्षण क्षण में सन्देह उठता है, आत्म विश्वास होता नहीं, निराशा और असफलता की भावना से जो ढक गये हैं। उन्हें पहले अपने उन्हीं दुर्गुणों को दूर करके तब इधर आना चाहिए अन्यथा कोई कहले लायक लाभ न होगा और व्यर्थ ही इन परीक्षित प्रयोगों को कोसने का कष्ट उठाना पड़ेगा।

अभ्यास करने के लिए नित्य किसी एकान्त स्थान में जाओ। यह स्थान सुन्दर और स्वच्छ होना चाहिए। हरे भरे उद्यान इसके लिए सर्वोत्तम हैं। परन्तु यदि इसकी सुविधा न हो सके तो एकान्त कोठरी से काम चलाया जा सकता है। यह ऐसी होनी चाहिए जिसमें हवा और प्रकाश अच्छी तरह आते जाते हो। स्थान चुन लेने के बाद बैठने का प्रबन्ध करना चाहिए। अकड़कर लट्ठ की तरह बैठने की हम सलाह नहीं देते। विचित्र प्रकार के ऐसे आसन जिन्हें लगाकर बैठने से घुटने दर्द करने लगते हैं और पावों को बड़ा कष्ट होता है। इस साधन के लिए कुछ भी लाभदायक नहीं। छाती को आगे निकाल कर बैठने की भी जरूरत नहीं है। बल्कि शरीर को बिलकुल शिथिल करके बैठना ठीक होगा। आराम कुर्सी मिल सके तो सबसे अच्छा, न मिले तो मसंद या कपड़ों के गट्ठे का सहारा लेकर बैठ सकते हैं। सिर के नीचे कुछ ऊँचे तकिये लगा कर चारपाई पर पड़े रहने से भी काम चल सकता है ।। इस प्रकार अभ्यास के लिये बैठ जाने के बाद मन को कुछ देर के लिए चिन्ताओं से मुक्त कर देना चाहिए। ऐसी भावना करनी चाहिए मानों समस्त संसार से प्रथक होकर मैं केवल अपने शरीर तक ही सीमित रह गया हूँ। इस प्रकार करते करते कुछ देर में मन बिलकुल शान्त हो जायेगा। चारों ओर निस्तब्धता प्रतीत होने लगेगी। अब आप अपने अहम् को जागृत कीजिए और उसे मस्तिष्क का निरीक्षण कराने के लिए उसी प्रकार ले चलिए जैसे एक कारखानेदार अपनी फैक्टरी के सब कामों को बड़े ध्यान पूर्वक देखने जाता है। अन्य मस्तिष्कीय अवयवों की देख भल करने के बाद मस्तिष्क के स्मरण शक्ति धारक परमाणुओं को अन्तर नेत्रों से देखिये। देखिये, यह कैसे सफेद चमक रहे हैं, पूर्व स्मृति को धारण किये रहने के प्रमाण स्वरूप इनके बाहर और भीतरी भागों में सूक्ष्म रेखाऐं अंकित है। इनके पास जाकर ध्यान पूर्वक देखिए और परीक्षण कीजिए कि क्यों यह अच्छी तरह काम नहीं करते? क्यों यह पिछली बातों को इतनी जल्दी भुला देते हैं? आपको ऐसा प्रतीत होगा कि वे बाह्य कारणों की उष्णता से कुछ गरम हो रहे हैं और थक कर निद्रित से हो गये हैं। अच्छी तरह ज्यादा अच्छी तरह देखिये, कदाचित इसके अतिरिक्त और कोई कारण प्रतीत न होगा। क्योंकि आपके मस्तिष्क के सम्पूर्ण अवयव परमात्मा ने स्वयं अपने हाथों बनाये हैं और उनमें किसी प्रकार की त्रुटि नहीं रहने दी है। उनका संगठन इस प्रकार किया गया है कि बड़ी से बड़े मानसिक शक्तियों को वे आसानी से धारा और समुन्नत कर सकें।

चूंकि आपका अहम् सम्पूर्ण शरीर का शासक है। उसकी आज्ञा का पालन हर एक कर्मचारी को करना पड़ेगा। मस्तिष्क भी शरीर का एक अंग है। आज्ञा पाते ही उसी के अनुसार कार्य करने उसके लिए अनिवार्य है। दृढ़ शासक की भाँति अपने स्थान पर खड़े हूजिए और स्मृति धारक परमाणुओं की राजा की भाँति हुक्म दीजिए कि हराम खोरी न करके वे मुस्तैदी सिपाही की भाँति काम करें। आप देखेंगे कि बिना एक क्षण की भी देर लगाये वे अंग कुल बुलाने लगे और अपने प्रमाद पर लज्जित होते हुए मुस्तैदी से कार्य करने को तैयार होने लगे। आपका कर्तव्य यही समाप्त नहीं हो जाता वरन् कुछ और भी शेष रह जाता है। जब किसी भृत्य के ऊपर कष्ट आता है तो शासक उदासीन न रह कर उसे दूर करने का प्रयत्न भी करता है। आपके उन अंगों में उष्णता और थकान है। इसको दूर करने के लिए शीतलता और शक्ति की आवश्यकता है। चिन्तित मत हूजिए कि यह वस्तुऐं कहाँ से आवेंगी। प्रकृति के खजाने में यह वस्तुऐं बड़ी इफरात के साथ भरी पड़ी है। यह खजाना अनन्त आकाश में चारों ओर भरा पड़ा हैं। आप में जन्म जात शक्ति है कि खजाने में से चाहे जो वस्तु चाहे जितने परिमाण में लेकर उपभोग कर सकें। प्रकृति के इसी भंडार में से शीतलता और शक्ति के परिमाण खींचिए और अपने स्मृति धारक परमाणुओं के दीजिए। देखिए उनमें कैसी शीतलता और स्फूर्ति आने लगी। अब वे शान्ति और कार्य क्षमता का अनुभव कर रहे हैं। अच्छा, अभी यह चीजें उन्हें और दीजिए अब आप प्रचुर मात्रा में शीतलता और शक्ति प्रकृति भण्डार में से ले लेकर उनके ऊपर डाल रहे हैं। अब तो काफी डाल चुके, देखिए वे कैसे ठंडे और सतेज दीख पड़ते हैं। आगे से यह ठीक काम करेंगे। इनमें शक्ति का अभाव अब नहीं है, कष्ट दूर हो गया है, प्रमाद छोड़ दिया है। निश्चित रहिए, आज्ञा का ठीक पालन होगा और पूर्ण स्मरणों को भली भाँति धारण किया जायेगा। विश्वास पूर्वक बहुत देर तक खड़े खड़े आप देख सकते हैं। आज्ञा का पालन किया जा रहा है, पूर्व स्मृतियाँ जग रही हैं और आगे से स्मरण चिन्हों को ठीक अंकित करने की व्यवस्था हो रही है। तीव्र गति से यह सब प्रक्रिया हो रही है। आप निस्संदेह होकर विश्वास कीजिए। मेरा मस्तिष्क शीतल और शक्ति सम्पन्न हो रहा है। उष्णता और थकान को बहुत दूर खदेड़ दिया गया है। मस्तिष्कीय सतेज परमाणु अपनी कार्य व्यवस्था को बड़ी तेजी से सुधार रहे हैं, सारा यन्त्र ठीक संचालित हो रहा है। पूर्व स्मृतियाँ जाग रही है और भविष्य के अंकन ठीक होने का समुचित प्रबन्ध हो गया है। अब मेरा मस्तिष्क बिलकुल निर्दोष, शीतल, सशक्त और कार्यक्षम है।

कल्पना लोक में इतनी देर घूमना शेख चिल्ली के इरादे नहीं है। यह मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों द्वारा बनाई हुई मानसिक चिकित्सा का एक आजमाया नुसखा है। कल्पना के आधार पर समस्त संसार की प्रक्रियाऐं चल रही है। पुत्र, स्त्री, धन आपके हैं यह कल्पना होती तदनुसार वे आपके हो गये हैं। उपरोक्त कल्पना तोड़ते ही वे विराने से मालूम होने लगेंगे। इस स्थल पर यह समझने के लिए स्थान नहीं है कि कल्पना किस प्रकार के जबरदस्त परिवर्तन कर सकती है। इसके लिए तो फिर किसी समय पाठकों के सामने उपस्थित हूँगा। आज तो इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि आप उपरोक्त कल्पना मय साधन को आरम्भ कर सकते हैं। इस पर मन जितना विश्वास पूर्वक जमेगा जितनी भावना दृढ़ और सन्देह रहित होगी उतना ही शीघ्र लाभ होगा। अपने अनुभवों के बल पर मुझे यह कहने दीजिये कि किसी भी साधक के दृढ़ता पूर्वक अभ्यास करने के बाद न तो असफलता हुई है और न पछताना पड़ा है।

शिथिलावस्था में जप कीजिए और अवकाश के अन्य क्षण में भावन करते रहिए- मेरा मस्तिष्क शीतल और शक्ति सम्पन्न हो रहा है। उष्णता और थकान को बहुत दूर खदेड़ दिया गया है। मस्तिष्कीय सतेज परमाणु अपनी कार्य व्यवस्था को बड़ी तेजी से सुधार रहे हैं। सारा यन्त्र ठीक संचालित हो रहा है। पूर्व स्मृतियाँ जाग रही हैं और भविष्य के अंकन ठीक होने का समुचित प्रबन्ध हो गया है। अब मेरा मस्तिष्क निर्दोष, शीतल, सशक्त और कार्यक्षम है। यह मन्त्र आपको अभीष्ट फल दे सकेगा।


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