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April 1940

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शरीर आत्मा का स्थान है, इसलिये तीर्थ क्षेत्र है। उसकी रक्षा करना चाहिये।

मेरी जो इच्छा है वही हो, इस प्रकार आकांक्षा न करके यदि तुम ऐसा विचार करो कि चाहे जिस प्रकार की ही घटना हो मैं उसे प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करूंगा तो तुम सुखी होंगे।

ईश्वर एक है, किन्तु उसके नाम और भाव अनेक हैं, उसे जो जिसे नाम से पुकारता है, वह उसे उसी भाव से दिखाई देता है।

जीवन का नियम यह है कि उचित का ग्रहण और अनुचित का त्याग करे। मन, वाणी और कर्म में सत्य का आश्रय ही संसार की अमूल्य निधि है।


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