यदि तुम पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो तो पूर्ण प्रेम को प्राप्त करो। यदि उच्च पद पर पहुँचना चाहते हो तो दया और सहानुभूति का हृदय में बसाओ।
इस नियमानुवर्ती संसार में यदि स्वाधीन होना चाहते हो तो अपने विचार स्वतन्त्र रखो और स्वतन्त्र विचारों की कदर करना सीखो।
धोखा देना संसा की सबसे बड़ी निर्बलता है। छल कपट करना भारी मूखर्ता है। जो दूसरों को ठगने की कोशिश करता है, वह पहले आप ही ठगा जाता है।
विचारक वह है, जिसने अपनी सद् विवेक बुद्धि का विकास किया है, जिसकी बुद्धि कार्य और कारण का सम्बन्ध समझती है और जिसका हृदय सत्य असत्य को जान सकता है।
उपासना में अनेक विघ्न आते हैं। जो विघ्नों से विरक्त रहकर शान्ति और निर्भयता के साथ अटल भाव से आगे बढ़ते हैं उन्हीं की उपासना सफल होती है। औरों के हाथ में तो उपासना के उपकरण रह जाते हैं।