तत्व दर्शियों से जिज्ञासा

April 1940

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पं. श्री कान्त जी एक होनहार और भावुक जिज्ञासु हैं। उनके जैसी शंकाएं अन्य जिज्ञासुओं के हृदय में भी उठती होंगी। इसलिये विद्वानों से प्रार्थना है कि वे इन शंकाओं का संक्षिप्त और सार गर्भित उत्तर देने की कृपा करें।

-संपादक

“ईश्वर मुक्त है या अमुक?” यदि मुक्त है तो फिर सृष्टि की इच्छा क्यों करता है? यदि अमुक्त है तो फिर पूज्य कैसा? यदि मुक्ता-मुक्त है तब तो वह अलौकिक एवं वर्णनातीत हुआ अतः उसके दर्शन के लिए हरिभजन करना क्यों कर उपयुक्त है? कर्म फल अटल हैं ऐसी अवस्था में हरिभजन हमारे भाग्य चक्र को कैसे बदल सकते है? शंका तो यह है कि ईश्वर अपने शक्ति बल से ऐसा करता है तब तो वह राग द्वेष मुक्त नहीं कहा जा सकता। अनन्तः हरिभजन की सार्वजनिक अथवा सार्वभौम प्रणाली क्या है? सबसे आश्चर्य तो यह है कि ईश्वर चोर को चोरी करने की प्रेरणा कर सज्जनों को जागे रहने का आदेश देता है। अन्त में वह चोर को पकड़वाकर आप वे दाग बच जाता है और कर्म फल उसे भुगतना पड़ता है। यह कहाँ का न्याय है? यह विचारधारा हमारे लघु जीवन स्त्रोत में बहुत दिनों से बहती आ रही है। यद्यपि आस्तिकता की बाँध से कभी-कभी दिशा बदल जाती है पर तुरन्त ही मौका पाकर उसे जर्जर कर पूर्व धारण करती है। आशा है कि ‘ज्योति’ के उद्भट विद्वान इसके लिए अगस्त्य होंगे। इससे हम उनके चिर कृतज्ञ रहेंगे।

-श्री कान्त, नारायणपुर,

पो. एकंगर सराय, पटना।


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