साधकों का पृष्ठ

April 1940

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जो साधक हमारी बताई हुई विधियों से अभ्यास कर रहे हैं, अपने अनुभव प्रकाशनार्थ भेजते रहें। जिससे दूसरे लोग भी ‘लाभ उठा सकें।

-सम्पादक

(1)

गत मास आपकी भेजी हुई ‘मैं क्या हूँ’ पुस्तक हस्तगत हुई। पढ़कर अति सन्तुष्ट हुए। निराशा रूपी जीवन में आशा का संचार हुआ। नेत्र हीन मनुष्य जिस प्रकार नेत्र पाकर आनन्द होता है ठीक उसी प्रकार इस पुस्तक को पाकर मैं अपने जीवन को सुखी अनुभव करने लगा हूँ। आप हमारे सच्चे पथ प्रदर्शक मित्र हैं। आपके बताये हुए अभ्यास पर चल रहा हूँ। इस थोड़े से समय में ही मुझे आश्चर्यजनक लाभ हुआ। जब से अभ्यास आरम्भ किया है तब से अपनी भूलें बहुत बुरी प्रतीत हो रही हैं। मेरी अन्तरात्मा कहती है कि इन बुरी आदतों को छोड़ो। ज्ञात होता है कि शीघ्र ही मेरी जिन्दगी में नये परिवर्तन होने वाला है।

-त्रिलोक नाथ शुक्ल, नगर पारकर।

(2)

यह गांव शहर से बहुत दूर है। अशिक्षित और गरीब लोगों की आबादी 95 फीसदी है। शेष 5 फीसदी मध्यम श्रेणी के हैं। यहाँ कोई वैद्य, हकीम न था। बीमार पड़ने पर सात मील दूर के कस्बे से दवा लानी पड़ती थी। मैं थोड़ा सा पढ़ा हूँ पर आपकी ‘सूर्य चिकित्सा’ पुस्तक को अच्छी तरह समझ लिया है और उसी के अनुसार बीमारों का इलाज करना शुरू कर दिया है पास के चार पाँच गाँव के बीमार मुझसे ही दवा लेने आते हैं। 80 फीसदी का दुख दूर हो जाता है।

-भीमजी कामदार, मोरी वाड़ा।

(3)

इस महीने मैंने मस्तिष्क सम्बन्धी खराबियों के बीमारों को हाथ में लिया है। प्राण चिकित्सा विधि से इनका उपचार कर रहा हूँ। एक औरत के सिर पर रोज भूत चढ़ता है। दो पागल ऐसे हैं जो जंजीरों से बंधे रहते हैं खोलते ही लोगों को मारते हैं। एक नवयुवक रात को सोते सोते एकदम डर जाता हैं और घिग्घी बाँधकर रोने लगता है। तीन और भी ऐसे ही है। इस प्रकार मस्तिष्क सम्बन्धी रोगियों पर उपचार चालू है। आज पन्द्रहवाँ दिन है। सभी बीमारों को आधे से अधिक फायदा है। उम्मीद है कि एक को छोड़कर शेष इसी महीने अच्छे हो जायेंगे। इस अद्भुत चिकित्सा प्रणाली को आश्चर्य की तरह देखने के लिये लोग दूर दूर से रोज आते रहते हैं।

-रणवीर सिंह सोलंकी, बदलपुर।

(4)

पिछले पाँच महीनों से प्राण चिकित्सा के तरीके से केवल बच्चों का इलाज कर रही हूँ। सारे कस्बे की स्त्रियाँ मुझसे सेवा लेती हैं। किसी से कुछ न माँगने पर भी अच्छी आमदनी हो जाती है। इस नये विज्ञान की सफलता देखकर यहाँ के वैद्य लोग मन ही मन बहुत कुढ़ते हैं, उन्होंने अफवाह फैलाई थी कि मैं ‘डायन’ हूँ और मौका पाते ही बच्चों को खा जाऊंगी। इस प्रकार की नीचतापूर्ण अफवाहें फैलाने का जिन्होंने प्रयत्न किया था, वे स्वयं जनता की निगाह में घृणा के पात्र बन गये हैं। अपनी सच्चाई और ईमानदारी दर्पण की तरह स्वच्छ होने के कारण सर्वथा बाहर पाती हूँ।

सावित्री देवी, अमीगाँव।

(5)

मैस्मरेजम का अभ्यास बढ़ रहा है। चार पाँच मिनट में पात्र को नींद आ जाती है। चौबीस आदमियों पर आज़माइश की थी जिनमें से बीस निद्रित हो गये। हिप्नोटिज्म के तरीके से निद्रित करने की विधि कच्ची है, इसमें पात्र को थोड़ी सी झपकी आती है। मैस्मरेजम की नींद इतनी गहरी होती है कि एक पात्र के कान पर ढोल बजाया गया तो भी वह न जगा। अब आप पर काया प्रवेश का आगे का अभ्यास बताने की कृपा करें।

-हरगोबिन्द शिवड़े, कराँची।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles