‘बलमुपास्व-‘बल की उपासना करो

January 1971

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सदुद्देश्य के लक्ष्य में यात्राक्रम अखण्ड ही रहना चाहिये। थकान होने पर थोड़ा विश्राम कर लेने में हर्ज नहीं, पर दिशा धारा में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

कितने ही अवरोध ऐसे हैं जो लुभाने, डराने और भटकाने में चूकते नहीं। वन्य प्रदेशों में पशुओं के झुण्ड निरुद्देश्य घूमते रहते हैं। उनके खुरों से पगडंडियाँ बन जाती हैं। लगता है कि राज मार्ग की अपेक्षा इन पर चलना सीधा पड़ेगा। कई पथिक इस लोभ से उन पर चल पड़ते हैं। पर इस मार्ग में कष्ट सहने, थकने और निराशा होने के अतिरिक्त और कुछ उपलब्ध नहीं होता।

अपूर्णता से पूर्णता की ओर का प्रयाण क्रम निर्धारित करना और उस पर अनवरत क्रम से चलने पर ही अभीष्ट लक्ष्य तक पहुँच सकना सम्भव हो सकता है। भटकन में अशान्ति और क्लान्ति ही पल्ले पड़ती है। पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग एक ही है- महानता को दृढ़तापूर्वक पकड़े रहना। अविचल निष्ठा के साथ अनवरत क्रम से उस पर चलते रहना। अनुसरण वन्य पशुओं के द्वारा विनिर्मित पगडण्डियों का नहीं, वरन् उस राजमार्ग का होना चाहिए जो सुनिश्चित संकल्प लेकर आगे बढ़े और विश्वास को अविचल रखकर अनवरत क्रम से आगे बढ़े है। लक्ष्य तक पहुँचने का एक ही उपाय है सदुद्देश्यों की दिशा में अवरोधों को लाँघते हुए अपनी प्रयाण साधना को अखण्ड क्रम में जारी रखना।


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