तृतीय विश्वयुद्ध होगा तो-पर 1995 के बाद

January 1971

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वह सन् 1863 की एक ठंडी सुबह थी। पेरिस का एक कुख्यात अपराधी फ्रैन्कुइस जेल में अपने स्वजन सम्बन्धियों से अन्तिम बार मिल रहा था। न्यायालय ने उसे निष्कासन का दण्ड दिया था और तीन दिन के भीतर पेरिस छोड़ देने के लिए कहा था। फ्रैन्कुइस बचपन में बहुत मेधावी और प्रतिभा सम्पन्न छात्र था। छात्र और अध्यापक सभी उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे किन्तु दुर्योग से वह बचपन में ही ऐसी कुसंगति में पड़ गया कि उसकी रुचि अपराधों की ओर खिच गई। जिस प्रतिभा के बल पर वह विश्व विद्यालय का गौरव बना था, वही प्रतिभा जब भटक गई तो वह बन गया। कुख्यात अपराधी। कुख्यात अपराधी ही नहीं अपराधियों का गुरु।

सुशिक्षित, फ्रैन्कुइस ने अपना अपराधी जीवन जेबकटी से आरम्भ किया और फिर वह चोर बना। वह पेरिस की गन्दी बस्तियों में रात भर वैश्यालयों में पड़ा रहता और जब भी पैसों की जरूरत पड़ती तो कभी कहीं सेंध मरता या किसी सम्पन्न घर में जाकर मालिक को जगाता उससे तिजोरियों की चाबियाँ झपटता और माल-मत्ता लेकर गायब हो जाता। जेबकटी और चोरी के बाद वह डाके भी डालने लगा। अपराधों के कीचड़ में वह इस कदर उलझ गया कि उसे लोगों के साथ मारपीट करने में बड़ा आनन्द आता था। वह अपने शिकार के साथ बुरी तरह मारपीट करता था।

लेकिन कानून के हाथों से कब तक कोई बचा रह सकता है। एक बार फ्रैन्कुइस पुलिस की गिरफ्त में ऐसा आया कि उसके सारे प्रयास ही विफल हो गए। न्यायालय ने उसे प्राणदण्ड दिया। अब तो उसके सारे हौंसले ही पस्त हो गये उसका दुस्साहसी मनोबल टूट कर बिखर गया।

उन दिनों फादर ग्युलैभी का पेरिस में अच्छा प्रभाव था। वे अपने आचरण, व्यक्तित्व और उपदेशों द्वारा लोगों को मानवता तथा नैतिकता की ओर अग्रसर होने के लिए प्रबल प्रेरणाएं देते थे। जब उन्हें फ्रैन्कुइस के प्राणदण्ड का समाचार मिला तो वे द्रवित हो उठे। वे सोचने लगे कि फ्रैन्कुइस को यदि एक बार सुधरने का मौका दिया जाए तो सम्भव है उसके जीवन की दिशा धारा ही बदल जाय। यह सोचकर उन्होंने फ्राँस सरकार से फ्रैन्कुइस के क्षमा तो नहीं किया पर उसका प्राणदण्ड अवश्य निर्वासन में बदल दिया।

उस दिन फ्रैन्कुइस निर्वासन की, पेरिस से बाहर जा कर रहने की तैयारी कर रहा था। फादर ग्युलैभी उसके साथ उसे विदा करने के लिए ‘गेट आव जैक्यूस के बाहर तक गए। वहाँ से फ्रैन्कुइस एकाकी अकेला सबसे विदा लेकर अज्ञात स्थान की ओर चल पड़ा। न कोई लक्ष्य था और न मंजिल। रह-रह कर उसके मस्तिष्क में अतीत की स्मृतियाँ कौंध जाती थी और हृदय चीत्कार कर उठता था।

एकान्त में जीवन व्यतीत करते हुए फ्रैन्कुइस को अपने प्रेमी जनों की स्मृतियाँ कौध जातीं। फादर ग्युलैभी का प्रेमल चेहरा याद आ जाता, जिनके कारण उन्हें जीवनदान मिला। इन स्मृतियों में फ्रैन्कुइस के मर्मस्थल के न जाने किस प्रदेश को छू लिया कि उसके अन्तस् में क्रान्ति मच गई और उसने अपने विगत जीवन का अन्त कर एक नया ही जीवन आरम्भ करने का संकल्प किया। उसमें ऐसी संवेदनाएं जगी कि कभी लोगों पर निर्मम निर्भय आघात करने वाला, फ्रैन्कुइस अपनी पीड़ा पश्चाताप कविताओं में उड़ेलने लगा। उसकी कविताएँ और साहित्य इतना संवेदनशील बन पड़ा है। कि अब उसकी गणना फ्राँस के श्रेष्ठ कवि और उच्चकोटि के साहित्यकारों में की जाती है।


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