भगवान् धरा पर आते हैं (Kavita)

January 1971

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धर्म तन्त्र के स्वस्थ-रूप को सबल बनाओ रे । जन मानस को आडम्बर से मत भटकाओ रे ॥ 1 ॥

इसी राजपथ पर अतीत ने वह वैभव पाया। जिस वैभव से “जगतगुरु” यह भारत कहलाया॥ उस वैभव को स्वार्थ सिद्धि में नहीं गवाओ रे । धर्म तन्त्र के स्वस्थ-रूप को सबल बनाओ रे ॥ 2 ॥

स्वार्थ सिद्धि की पगदन्डी मत जोड़ो जनपथ से । मत बाँधो भ्रम के पत्थर जन मंगल के रथ से ॥ धर्म तन्त्र की गति के पहिये मत अटकाओ रे ॥ जन मानस को आडम्बर में मत भटकाओ रे॥ 3 ॥

मुक्ति मिली है जन मानस को धर्म तन्त्र से ही । मानवता उबरी संकट से इसी मन्त्र से ही॥ धर्म धार कर सदाचार का पाठ पढ़ाओ रे॥ धर्म तन्त्र के स्वस्थ-रूप को सबल बनाओ रे॥ 4 ॥

विकृतियों से, दुष्कृतियों से सबको मुक्ति मिले । जन मानस का तम हरने हो ज्ञान-प्रदीप जले॥ धर्म तन्त्र की गरिमा जग को फिर समझाओ रे। जन मानस को आडम्बर से मत भटकाओ रे ॥ 5 ॥

वसुधा है कुटुम्ब, मानव सब भाई-भाई हैं। इसके सुख-दुःख के समान सब उत्तरदायी हैं॥ मानव की वसुधा पर सब मिल स्वर्ग बसाओ रे । धर्म तन्त्र के स्वस्थ-रूप को सम्बल बनाओ रे ॥ 6 ॥

शील, सत्य, सौजन्य, स्नेह का सबही पाठ पढ़ें। समता, प्रगति, समृद्धि, शाँति के पथ पर सभी बढ़े॥ धर्म-ध्वजा को जीवन में, जग में, फहराओ रे । जन मानस को आडम्बर में मत भटकाओ रे ॥ 7 ॥

*समाप्त*


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