जीव जन्तुओं की मूक भाषा

January 1971

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अनायास, बिना परिश्रम किये अपार धन प्राप्त करने की ललक कई लोगों में इस कदर उत्पन्न हो जाती हैं कि वे न जाने क्या-क्या हवाई कल्पनाएँ करते रहते हैं और रातों रात मालामाल बन जाने के स्वप्न देखते रहते हैं। धन जीवन निर्वाह के साधन जुटाने हेतु आवश्यक है, परन्तु कई लोगों के लिए यह निर्वाह जुटाने का आधार नहीं रह जाता, बल्कि साध्य ही बन जाता है। इस प्रलोभन में लोग नैतिक, अनैतिक, उचित अनुचित और व्यावहारिक, अव्यावहारिक उपाय अपनाते देखे जाते है। जबकि तथ्य पर प्रमाणित करते हैं कि जिसने भी अनुचित ढंग से धन जुटाने के या बिना परिश्रम किये धनवान बनने के प्रयास किये हैं, उन्हें पीछे पछतावा ही हाथ लगा है। सही बात तो यह है कि वहीं धन फलता-फूलता है जो परिश्रम और ईमानदारी के साथ कमाया जाता है। उसी में स्थिरता और सत्परिणाम उत्पन्न करने की क्षमता होती है, लेकिन लोग रातों रात मालामाल बनने के फेर में व्यर्थ ही परेशान होते और घाटा उठाते हैं। इस तरह के दिवा स्वप्न देख-देखकर धन अर्जित करने के प्रयासों में सट्टा, जुआ, लॉटरी से लेकर गढ़े खजाने के लाभ तक शामिल किये जा सकते हैं।

अमेरिका में मिसीसिपी नदी के किनारे फैला हुआ होमोचिटों जंगल संसार के सर्वाधिक सुन्दर वनों में समझा जाता है। इस जंगल के एक हिस्से में एक छोटा सा गाँव ‘नैट चेज’ बसा हुआ है। इस गाँव से ही करीब 20 मील दूर पर रीडर बोव नामक एवं धनी सम्पन्न किसान का कृषि फार्म है। फार्म के उत्तरी भाग में मिसीसिपी नदी का एक दलदली डेल्टा है। डेल्टा पर खड़े होने से वहाँ एक बहुत चौड़ा छेद दिखाई देता है। बताया जाता है कि यह छेद दिनोंदिन क्रमशः चौड़ा ही होता चला आया है। इस छेद में कहा जाता है कि एक सात फुट चौड़ा और चार फुट ऊँचा घड़ा बहुमूल्य रत्न राशि और स्वर्ण खण्डों से भरा हुआ गड़ा है। वहाँ बसने वाले लोगों को प्रायः सभी को जानकारी है। इतनी बहुमूल्य रत्नराशि के बारे में जानकार किसका जी नहीं ललचाएगा? पर कहते हैं कि उसे प्राप्त करने के लिए अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं, उनमें से एक भी सफल नहीं हो सका है। अभी तक यह सम्भव नहीं हो सका है कि उसे निकाल कर कोई अपने अधिकार में ले सके।

पिछले डेढ़ सौ वर्षों से उसे पाने के लिए अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं, वे सबके सब असफल होते आये हैं। इसका कारण यह बताया जाता है, उस पर एक प्रेतात्मा डेरा जमाये बैठी हुई है और वह उसे निकालने के लिए किये गए सभी प्रयत्नों को असफल कर देती है। रीडर बोव के पूर्वज इस खजाने को प्राप्त करने के लिए न जाने कब से प्रयत्न करते आ रहे हैं। उन्होंने इस डेल्टा के पास एक मकान भी कृषि व्यवस्था की देखभाल के लिए बनाया था। पर कुछ ऐसी घटनाएँ घटी जिनके कारण रीडर बोव पूर्वजों ने इस स्थान पर भूतों का आधिपत्य समझा और उसे छोड़ दिया। तब से वह स्थान ऐसा ही खाली पड़ा है। उस स्थान पर रहना तो दूर रहा, किसी को ठकरने की हिम्मत भी नहीं होती।

अनेक बार प्रयास करने और विफल होने के बाद खजाना निकालने के प्रयास एक प्रकार से छोड़ ही दिये गये थे। किन्तु रीडर बोव ने साहस कर पुनः इस खजाने को निकालने के प्रयास शुरू किये। इस काम में पूर्वजों द्वारा छोड़े गये नक्शे काफी सहायक सिद्ध हुए। उनके आधार पर रीडर बोव ने डेल्टा के उस देश में प्रवेश किया और अपने साथियों के साथ कीचड़ हटाने का काम शुरू किया। कीचड़ निकालने के प्रयास जैसे-जैसे किये जाते, वैसे-वैसे पैर कीचड़ में धँस जाते। परन्तु कीचड़ हटाने का काम जारी रखा। इसके लिए फावड़े चलाये ही जा रह था कि एक फावड़ा किसी धातु के बर्तन से टकराया और ठन्न की आवाज हुई। कीचड़ हटाकर देखा गया तो वहाँ लोहे का बना एक विशाल काय घड़ा सामने था। इस घड़े में रखे हीरे-पन्नों की चमक से बड़ी मजबूती के साथ बन्द किया हुआ। उसे खोलना सम्भव नहीं था, अतः यही सोचा गया कि आसपास की कीचड़ हटाकर उसे उभारा जाए और प्रयत्नपूर्वक बाहर निकाला जाए।

घड़े को बाहर निकालने के लिए आसपास का कीचड़ हटाया जाना आवश्यक था। परन्तु जैसे ही आसपास का थोड़ा कीचड़ हटाया गया, घड़ा उतना ही नीचे कीचड़ में धँसने लगा। यहीं नहीं डोव स्वयं भी कीचड़ में फँसने लगा। धँसते-धँसते वह बहुत गहराई में धँस गया। अब तो डोव को खुद अपनी जान के लाले पड़ गए थे। लगातार छह घण्टे तक परिश्रम करने के बाद वह कीचड़ से बाहर निकल पाने में सफल हुआ, और इसके बाद घड़े को बाहर निकालने का विचार ही छोड़ देना पड़ा।

इस गढ़े हुए धन के सम्बन्ध में कहा जाता है कि यह कभी डाकुओं द्वारा लूट कर इकट्ठा किया और जमीन में गाड़ दिया गया था। किसी जमाने में नेटचेज और न्यू आलिशन्स के बीच एक पाँच सौ मील लम्बी सड़क थी और उस पर अच्छा व्यापार होता था। उसकी क्षेत्र में कई डाकू दल सक्रिय थे और भारी लूटमार किया करते थे। इन्हीं डाकुओं के सरदार लैफिट, मैसिन, हार्प आदि में से किसी ने यह धन इकट्ठा कर इस सुरक्षित स्थान पर गाड़ दिया। तब वहाँ ऐसा दलदल नहीं था। पीछे नहीं का पानी रिसता रहा और दलदल बन गया। डाकू पकड़े और मारे गए तथा धन जहाँ का तहाँ गड़ा रह गया। रीवर डोव के पूर्वजों ने खजाने के सम्बन्ध में प्रचलित किंवदंती के आधार पर ही इस क्षेत्र को खरीद लिया और उनके समय से ही कितने ही इंजीनियर, ठेकेदार तथा दूसरे कुशलकर्मी समय-समय पर यह धन निकालने की योजना लेकर आते रहे।

निकाले जाने वाले खजाने के एक निश्चित प्रतिशत का भागीदार बनाने के लिखित इकरारनामे के आधार पर इन लोगों में विशालकाय यन्त्रों बहुसंख्यक श्रमिकों तथा बाँस, बल्ली, रस्से आदि उपकरणों की सहायता से उसे निकालने का जी तोड़ प्रयत्न किया पर अन्ततः असफलता ही हाथ लगती। कितना ही परिश्रम किया जाता, पर घड़ा और गहरा धँसता जाता तथा खुदाई का क्षेत्र पहले की अपेक्षा और अधिक चौड़ा हो जाता। यह गोल्ड होत अमेरिका बुद्धि, कौशल और तकनीकी पुरुषार्थ के लिए अभी भी एक चुनौती बना हुआ।

सन् 1636 में इस घड़े को निकालने के लिए सबसे बड़ा प्रयत्न हुआ। इसके लिए भारी बुलडोजर मशीनों से कीचड़ हटाने तथा बगल से रास्ता बनाने के उपाय करने के लिए इंजीनियरों की एक समिति बनाई गई और यह योजना बड़े उत्साह के साथ कार्यान्वित की गई। सामने रखा घड़ा निकालने वालों के पुरुषार्थ को चुनौती ही देता रहा ओर हर प्रयास विफल जाते रहे। क्रेन लगाकर जब घड़े की गरदन पकड़ कर बाहर निकालने का प्रयत्न किया तो अकस्मात् इतनी विकट वर्षा होने लगी कि बुलेक और स्टिक्लोन, जिनके नेतृत्व में यह योजना बनाई और क्रियान्वित की गई थी, रत्न राशियों से भरा घड़ा निकालने का विचार छोड़कर वापस लौट आए। इसके बाद भी अनेकों प्रयास किए गए, पर घड़ा है कि अपने स्थान से टस से मस नहीं होता।

कप्तान किड के संगठित गिरोह ने समुद्री डावेजनी के कारण किसी समय अमेरिका में आतंक उत्पन्न कर दिया था। उन दिनों अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एकमात्र माध्यम जलयान ही होते थे। किड का गिरोह इस घात में रहता था कि कौन-सा जहाज, कितना धन लेकर किस बन्दरगाह से किस स्थान पर जा रहा है ? उसके गिरोह में न केवल अच्छे तैराक थे, वरन् शस्त्र संचालन में कुशल और निशानेबाजी, गोलाबारी में पारंगत प्रवीण डाकू भी थे। लूट का माल गिरोह के सभी सदस्य बाँट बूट लेते थे। किड ने जीवन में जितने भी डाके डाले, उनसे उसके पास प्रचुर सम्पत्ति एकत्रित हो गई। सुरक्षा की दृष्टि से उसने लूटी गई धन सम्पत्ति को समुद्र तट के कई स्थानों पर लोहे के घड़ों और सन्दूकों में बन्द करके गाढ़ दिया। उसने अपने जीवनकाल में प्रचुर सम्पत्ति लूटी और बक्सों में बन्द करके अनेक स्थानों पर दबाया। प्रचुर सम्पत्ति लूटने के बाद भी वह उसका कुछ उपयोग नहीं कर सका। किड के साथियों के अनुमान के अनुसार वह खजाने एक सौ से अधिक स्थानों पर दबे होने चाहिए और उनमें प्रत्येक में करोड़ों की सम्पत्ति होनी चाहिए। ऐसे कुछ स्थानों में लाँग आइलेड साउन्ड के फशर्स नामक स्थान बेस्ट पाइन्ट के पास हडसन डाई लण्डस मनीहिल स्टोनी बुक ओल्ड लाइम बेइर्स फीर्ल्ड के आसपास, न्यूजर्सी, हुक आइलैण्ड केलीद्वीप, रोड आइलैण्ड मैसाचुसेट्स के विलिमगठन डेल्विन डेन, न्यू हैम्पशायर के एटेरीम, क्षेत्र में, ब्रूथ व हावर्ट के बाडलक हेरोन आइलैण्ड, शीप्स काट नहीं के किनारे वासके सेट, फार्मलैण्ड, ड्रस्टेन मिल्स के पास-पास मनीहोल्स, आइल आऊहाट केंमनी रोव, ओल्ड आर्त्चड, पेनील्स काट क्षेत्र, कास्को वे में डियट आइल आदि क्षेत्रों में अरबों का माल दबा पड़ा बताया जाता है। जो आज तक न तो किसी के हाथ लगा है और भविष्य में किसी के हाथ लग सकेगा, इसकी भी कम सम्भावना है।

अनायास बिना परिश्रम किये बहुत सारा धन इकट्ठा करने के लिए भले ही डाकुओं जैसा अनैतिक आपराधिक गतिविधियाँ भले ही न अपनाते हैं, पर यह सोचने वालों की कमी नहीं है कि कहीं गढ़ा हुआ खजाना मिल जाए, लाटरी खुल जाए, बाप-दादों की कमाई के बल पर गुलछर्रे उड़ाने की सुविधा प्राप्त हो सकें। स्वयं की क्षमता बढ़ाने और पुरुषार्थ में संलग्न होने के झंझट से बचकर समृद्धि की पगडंडियाँ ढूंढ़ने वालो को प्रायः असफलता ही मिलती है। ऐसी बात नहीं है कि इन आकाँक्षाओं को पूरा करने के लिए कोई परिश्रम न करना पड़ता है और कष्ट भी उठाने पड़ते हैं। परन्तु असफलता ही हाथ लगती है क्योंकि जो शस्त्र अपनाया जाता है। वही गलत होता है। कदाचित उतना ही प्रयत्न, उतना ही प्रयास स्वस्थ उत्पादन के लिए किया गया होता तो अपेक्षाकृत अधिक लाभ मिल सकता था। गढ़ा हुआ खजाना पाने की तरह ही जुआ, सट्टा, लॉटरी आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं। इन कामों में हजारों में से किसी को ही कुछ हाथ लगता होगा अन्यथा अधिकांश तो खजाना पाने के लिए लालायित रहन की तरह लार ही टपकाते रह जाते हैं। काश! न्याय और श्रम में अर्जित आमदनी में ही सन्तुष्ट रहना सीख लिया जाय तो थोड़ी कमाई में भी सुख-शाँति की प्रचुर मात्रा हर किसी को सहज ही मिल सकती है। जबकि बिना मेहनत किये कुछ पाने के लोभ में लोग कमाते कुछ नहीं गँवाते ही अधिक है। निराशा और खीज पल्ले पड़ती है सो अलग।


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