शक्ति का दुरुपयोग न करो!

May 1943

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

सूर्य में इतनी गर्मी मौजूद है कि उसके द्वारा यह पृथ्वी कुछ ही क्षणों के अन्दर जल-जल कर भस्म हो जाय, परन्तु क्या कभी उसने ऐसा किया है? क्या वह कभी अपनी महानता और मर्यादा को भंग करता है? संसार मैं अनेकानेक एक से एक ऊंची शक्ति सम्पन्न सत्ताएं मौजूद हैं पर वे कभी अमर्यादित नहीं होती। फिर तुम आपे से बाहर क्यों हुये जा रहे हो? जो शक्तियाँ और योग्यता आज तुम्हें प्राप्त हैं वे ईश्वर ने लोक सेवा और असहायों की मदद व उन्नति के लिए दी हैं न कि इस लिये कि उनसे असहाय लोगों को सताओ, उनके अधिकारों का हरण करो और अनीति बरतो। देखो, तुम्हारा अन्याय तभी तक चल सकता है जब तक सहन करने वाले मर्यादा के अन्दर हैं, हो सकता है कि तुम्हारे बहुत सताये जाने पर वे उबल पड़ें और वैसे ही क्रूर कर्म करने पर उतर आवें जैसे कि तुम स्वयं हो, तब क्या होगा? जरा विचार तो करो, तब तुम्हारा आज का बर्ताव तुम्हारे लिये कितना विषम घातक और दुखदाई परिणाम उपस्थित कर देगा।

इसलिए ठहरो! शक्तिशालियो! जुल्म करने से पहले एक घड़ी ठहरो! और विचार करो कि तुम्हारे जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य और उपयोग क्या है? ईश्वर ने शक्ति की रचना उन्नति और सेवा के लिये की है, शक्तिशालियो! जुल्म और अपहरण में उनका दुरुपयोग न करो।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: