(श्री राधाकान्त मुण्ड, खरियार)
कंचन पुर नगर में एक राजा राज्य करता था, उसके कोई सन्तान न थी। बहुत तपस्या के उपरान्त एक परमसुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। जब कन्या विवाह योग्य हुई, तब राजा ने देश-देशान्तर के राजाओं को स्वयंवर के लिए बुलाया, किन्तु उस राजकुमारी ने किसी भी राजकुमार को स्वीकार न किया। होते होते बहुत दिन गुजर गये।
एक दिन रात्रि के समय राजा शयनागार में गये हुए थे तब रानी ने पति से कहा “राजन्! राजकुमारी का विचार किसी धर्मपरायण परोपकारी योगी से विवाह करने का है वह भोग ऐश्वर्य की अपेक्षा आत्म उन्नति में सहायता करने वाला साथी चाहती है। कष्ट और निर्धनता की उसे जरा सी परवाह नहीं। इसलिए आप किसी योगी के साथ उसका विवाह करने का प्रयत्न कीजिए।”
राजा को पहले तो यह प्रस्ताव पसंद न आया, पर जब रानी ने प्राचीन इतिहास बताते हुए पार्वती, सावित्री, सुकन्या आदि अनेक राज पुत्रियों का विवाह योगियों के साथ होने के उदाहरण दिये तो राजा सहमत हो गया और दूसरे दिन योगी की तलाश में जाने का उसने निश्चय कर लिया।
राजा और रानी में जिस समय यह वार्तालाप हो रहा था, ठीक उसी समय एक चोर शयनागार के निकट चोरी के उद्देश्य से छिपा हुआ यह सब बातें सुन रहा था। उसने सोचा मैं ही योगी का वेष बनाकर राजा के मार्ग में क्यों न बैठ जाऊं जिससे राजकुमारी का हाथ तथा राज्य का उत्तराधिकार मुझे ही प्राप्त हो जाय? चोर के मन में यह बात बैठ गई। वह तुरंत ही वहाँ से उल्टे पाँव लौट गया और घर जाकर योगी का वेष बना, प्रभात होने से पूर्व राजा के जाने के मार्ग पर जा बैठा।
प्रभात होने पर राजा, योगी वर की तलाश में निकला। उसने कुछ ही दूर आगे चलने पर एक स्वस्थ शरीर, योगी युवक को ध्यान मग्न देखा। राजा वहीं ठहर गया और किसी प्रकार प्रार्थना अनुरोध से उसे विवाह के लिये तैयार करके घर ले आया। राजा रानी असाधारण रीति से अपने भावी जमाता का स्वागत-सत्कार करने लगे। विवाह की तिथि निश्चित हो गई।
चोर मन ही मन विचार करने लगा कि जिस योग का आडंबर करने मात्र से इतना लाभ हो रहा है यदि अपने मन से उसकी साधना की जाय तो न जाने कितना लाभ होगा, बुद्धिमानों ने कहा है कि—”बड़े लाभ के लिए छोटे लाभ का त्याग करना चाहिए।” इसलिए मुझे सच्चे योग की साधना करके अपार लाभ प्राप्त करना चाहिये।
चोर ने राजा से विवाह की अस्वीकृति प्रकट कर दी और सच्चे साधक के रूप में वह तप करने के लिये चला गया।