(महात्मा गाँन्धी)
सिगरेट, चाय, कहवा वगैरह जीवन के लिए कुछ जरूरी चीजें नहीं हैं। अगर जीते रहने के लिए चाय या कहवा जरूरी है तो यह अच्छा है कि इन्हें न पीकर सो जाया जाय। हमें इनका गुलाम नहीं बनना चाहिए। मगर सिगार पीना तो अफीम खाने जैसा है और सिगार में सचमुच ही भरा ही अफीम होता है। ये चीजें स्नायुओं पर असर करती हैं और फिर इनसे पीछा छुड़ाना असम्भव हो जाता है। अगर तुम सिगार सिगरेट, चाय, काफी आदि पीने की आदत छोड़ दो तो अपने आप ही देखोगे कि समय, और पैसे की कितनी बचत होती है और स्वास्थ्य की बरबादी कितनी रुक जाती है। टालस्टाय ने एक स्थान पर लिखा है कि कोई शराबी खून करने से तभी तक हिचक रहा था जब तक कि उसने सिगरेट नहीं पिया। मगर सिगरेट की फूँक उड़ाते ही वह उठ खड़ा हुआ और ‘मैं भी कैसा कायर हूँ’ कहता हुआ खून कर बैठा। टालस्टाय ने जो लिखा है अनुभव से ही लिखा है वे शराब से अधिक विरोध सिगरेट का करते हैं। मगर यह भूल मत करो कि शराब और तम्बाकू में शराब कम बुरी है। नहीं, तम्बाकू अगर तंतृक है तो शराब असुरों का राजा है! इनसे तो सब प्रकार बचना ही श्रेयस्कर है।