ऋण मुक्ति बिना शान्ति नहीं

May 1943

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-नदी के दाहिनी ओर स्कॉटलैंड में पार्थ नामक नगरी में फौजी छावनी के पास अपनी झोपड़ियाँ बनाकर दो गरीब विधवाएं रहती थी। एक का नाम था एनी दूसरी का मालय। इन दोनों में बहुत प्रेम था। मजदूरी करने साथ-साथ जातीं और साथ भोजन बनाती। उनकी दुनिया बहुत छोटी थी पर थी संतोषपूर्ण।

मृत्यु राजा और रंक का भेद नहीं पहचानती। मालय को निमोनिया हुआ और एक सप्ताह बीमार रह कर मर गई। अब ऐना अकेली थी। कई दिन उसे बड़ा दुख रहा। फिर आखिर उसे संतोष करना पड़ा। वह अकेली मजदूरी करने जाती और अकेली ही सो रहती। अब अकेलापन भी उसे नकारता न था।

एक रात को ऐसी बिस्तर पर लेटी हुई थी कि अचानक मालय वहाँ आ खड़ी हुई। ऐनी ने आँखें फाड़-2 कर देखा और यह तो मालय ही है। बेचारी बुढ़िया बहुत डरने लगी मालय ने कहा ऐनी डरो नहीं। तुम समझती हो कि मैं मर गई। पर मृत्यु के बाद भी मैं जीवित हूँ। तुम्हें कोई कष्ट देने नहीं आई हूँ, किन्तु एक विनम्र प्रार्थना करती हूँ यदि उसे स्वीकार कर सको तो बहुत कृतज्ञ हूँगी।

ऐनी की हिम्मत बँधी और साहस करके पूछा—”हाँ कहो मालय, क्या कहती हो, मालय की छाया मूर्ति ने कहा—मेरे ऊपर तेरह आना कर्ज है। सो तुम उसे चुका देना, क्योंकि बिना उस ऋण को चुकाये मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिल सकती। तुमसे चुकाने के लिए इसलिए कहती हूँ कि तुम्हारे पास मेरे पुराने बर्तन कपड़े भी तो रह गये हैं जो तेरह आने से कम कीमत के नहीं हैं। इतना कह कर मालय अन्तर्ध्यान हो गई।”

दूसरे दिन प्रातःकाल ही ऐनी उठी और रात की प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए बटुए में तेरह आने रखकर घर से बाहर निकली, पर यह पैसे किसे देने हैं, यह तो उसे याद ही न था। या तो मालय ने ऋण दाता का नाम बताया ही नहीं था या बताया था तो वह भूल गई थी। अब क्या किया जाय? एनी बड़ी द्विविधा में पड़ गई।

सोचते-सोचते एक विचार उसे आया कि किसी आध्यात्मवादी पादरी के पास चलना चाहिए। वह अपने एक परिचित पादरी रेवेण्डरचाली के मकान पर पहुँची और उनसे सब वृत्तान्त कह सुनाया।

पादरी बड़े दयालु और सहृदय सज्जन थे। उन्होंने इस सम्बन्ध में दिलचस्पी दिखाई और ऋण दाता की तलाश करने के लिए ऐनी के साथ चल दिये। उन्होंने ढूँढ़ा कि किस किससे यह उधार लिया करती थी। आखिर एक मोदी का पता मालूम हुआ जिससे वह आटा-दाल खरीदा करती थी। पादरी उसी के पास गया और पूछा कि मृतक मालय से तुम्हारा कुछ हिसाब किताब तो शेष था। मोदी को जबानी कुछ याद न था। उसने हिसाब बही ढूंढ़ा तो उसमें मालय के नाम तेरह आने पैसे लिखे हुए थे।

पादरी चार्ल्स ने मोदी को वह पैसे चुका दिये। फिर मालय को छाया मूर्ति को कभी किसी ने नहीं देखा।

उपरोक्त घटना का उल्लेख डॉक्टर चिम्स ने अपने Anotomy of Melancholy नामक ग्रन्थ में किया है। यह घटना उन्हें काउण्ट के राजगुरु धर्माचार्य स्रू जबेरी ने बताई थी।


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