संघर्ष नहीं, सहयोग?

May 1943

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(श्री रवीन्द्र नाथ टैगोर)

सृष्टि ईश्वर की अनन्त स्वतंत्रता का परिणाम है। यही स्वतंत्रता तभी स्वतंत्रता है जिससे सत्य का प्रकाश होता है। हम अभी तक इस अवस्था तक पूरी तरह से पहुँचे हैं पर जो लोग इस स्वतंत्रता को एक बड़ी भारी बात समझते हैं, जो इस पर विश्वास रखते हैं और इसको प्राप्त करना चाहते हैं वे लोग निश्चय ही अपनी प्रबलता से स्वतंत्रता को पाने का मार्ग तैयार कर रहे हैं हिन्दुस्तान हमेशा से मनुष्य की सभी आध्यात्मिक शक्ति पर विश्वास करता आया है इस आत्मिक शक्ति को प्राप्त करने के लिए उसने अनेक तप, योग, व्रत इत्यादि किये हैं। इसीलिए मेरा विचार है कि असली भारतवर्ष एक देश ही नहीं, बल्कि एक आदर्श है। भारतवर्ष तभी विजय प्राप्त करेगा जब इस आदर्श की विजय संसार में होगी। वेद में लिखा है कि “पुरुषं महान्तनादिस्य पर्ण तमसः परस्तान्” अर्थात् सूर्य के समान तेज वाला परब्रह्म परमेश्वर का प्रकाश अन्धकार या तमोगुण के परे हैं। हमारा युद्ध भी इसी तमोगुण के साथ है, हमारा उद्देश्य यह है कि अनन्त परब्रह्म का प्रकाश हमारे अन्दर हो। परब्रह्म का यह प्रकाश सिर्फ अलग अलग आदमियों में उत्पन्न होने से ही काम न चलेगा उसका प्रकाश मनुष्य मात्र में होना चाहिए। जिस तमोगुण का हम नाश करना चाहते हैं वह लोगों का जातीय स्वार्थ है। भारतवर्ष का आदर्श सदा से कुछ बात के विरुद्ध रहा है कि भारतीय अपने को दूसरी जातियों से अलग समझ कर उनसे निरन्तर युद्ध करते रहें। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि भारत संसार की कुल जातियों के साथ सहयोग करे।


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