नेत्रों की ज्योति

May 1943

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(वैद्य भूषण पं. बालकृष्ण शर्मा विशारद)

नेत्रों की ज्योति मंद होने के प्रायः निम्नलिखित कारण हैं इनसे बचने का सदा सर्वदा प्रयत्न करते रहना चाहिए।

1-मूर्द्धा (दिमाग) को विशेष सरदी वा गरमी पहुँचाना

2-अधिक धूप, अग्नि या रोशनी को देखा करना जैसे सिनेमा का व्यसन।

3-बहुत ऊष्ण जल सिर पर डालना।

4-नेत्रों को बहुत गर्म या सर्द हवा के झोंके लगना।

5-नेत्रों में अधिक धूल, धुँआ या भाप लगना विशेषकर जहरीली वस्तुओं की भाप बहुत ही हानिकर है।

6-बहुत बारीक वस्तु बार-बार देखना तथा बहुत ही महीन अक्षर लिखना और पढ़ना।

7-कम प्रकाश में पढ़ने का प्रयत्न करना।

8-तेज रंगों को देखा करना। हरियाली को देखना नेत्र ज्योति के लिए हितकर है।

9-रूखा भोजन करना।

10-शिर में उत्तम तेल न लगना। सिर में डालने के तेल आयुर्वेद पद्धति से बने हुए होने चाहिये। बाजारू सेण्ट या एसेन्स पर बने हुए न होना चाहिये।

11-लेटे लेटे गाना या पढ़ना।

12-मिट्टी के तेल की खुली रोशनी में रहना।

13-ब्रह्मचर्य्य से न रहना।

14-अति परिश्रम करना।

15-तेज औषधियों का सेवन जैसे कुचला आदि या अन्य ऊष्ण प्रकृति औषधियों का सेवन अथवा गरम रुक्ष भोजन करना।

16-तेरह बेगों को रोकना, उनमें विशेष कर अश्रु।

17-अधिक चिन्ता या दुःख से रोते रहना।

18-ऐसी ऐनक का उपयोग करना जिसमें वस्तु व अक्षर बड़े दृष्टि में आवें।

19-झुककर बैठकर काम करना।

नेत्रीपकारक बर्ताव

1-मुँह और आँखों को नित्य ठंडे पानी से धोना

2-कोई अच्छा सुरमा या अंजन बनाना जो कि किसी सद्वेद्य द्वारा बना हुआ हो।

3-ऋषियों के अनुसार मस्तक पर अनुलेपनं लगाना जैसे चन्दन का लेप, ऋतु के अनुसार दोनों को मिलाना।

4-सिर में तेल नित्य डालना, विशेषकर और कर्म के पीछे।

5-हो सके तो नवनीत (माखन) या सद्यः धुत 1 तोला, मिश्री 1 तोला बादाम गिरी 5 काली मिर्च 15 नित्य खाना।

6-गो-घृत दो तोले में चार रत्ती केशर अथवा 1 रत्ती कस्तूरी मिलाकर रखना और उसका नास लेना

7-त्रिफला पाक नित्य दो तोला फाल्गुन चैत में मार्च बसन्त ऋतु में 40 दिनों तक खाना।

8-प्रति आठवों दिन रसाँजन (रसोई) से आँखों के मलिन तल और मेंल निकालना।

9-प्रतिमास एक किसी उत्तम नस्य से मूर्द्धादि की सफाई करना ।

10-नेत्रों में कोई रोग हो तो किसी नेत्र विशेषज्ञ से उपचार शीघ्र करवाना चाहिये।

उपर्युक्त आवश्यक बातों पर बचपन से ही ध्यान दिया जायगा, तो वृद्धावस्था में दृष्टि पूर्ण रूप से स्थिर रहेगी और नेत्रों की कोई बीमारी होने की सम्भावना नहीं रहेगी। आप ऐनक लगाने की व्यथा से भी दूर रहेंगे।

—आम-सुधार


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: