गीत संजीवनी-13

संसार तुम्हारा जहाँ- जहाँ

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संसार तुम्हारा जहाँ- जहाँ, अवतार तुम्हारा वहीं- वहीं।
प्रभु चरण तुम्हारे जहाँ पड़े, है तीर्थ हमारा वहीं- वहीं॥

शिवजी के इष्ट राम रघुवर, हैं इष्ट राम के शिवशंकर।
यह सत्य विदित सारे जग को, इसका प्रमाण है रामेश्वर॥
है इष्ट वही है भक्त वही, ऐसा दुनियाँ में कहीं- नहीं॥

काशी हो या हो उज्जयिनी, तुम तो रहते हो मरघट में।
तुम योगी बनकर विचर रहे, उर अन्तर में हो घट- घट में॥
सन्देश तुम्हारा है सबको, जीवन की सीमा यहीं नहीं॥

संसार साधनों पर रीझा, तुमको तो रुची साधना है।
रुकना है नहीं रूढ़ियों में, श्रम करके उन्हें लाँघना है॥
साधक ने पायी सिद्धि सदा, बाधायें पथ की टिकी नहीं॥

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