गीत संजीवनी-13

मन में नव उल्लास भर

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मन में नव उल्लास भर, होली मनाना चाहिए।
पर्व के उल्लास में, सबको नहाना चाहिए॥

भर रही है कीच मन में, द्वेष की दुर्भाव की।
साफ कर अन्तःकरण को, होली मनाना चाहिए॥

हैं सभी इन्सान, हो इन्सानियत से प्यार भी।
भेद सारे मेट कर, होली मनाना चाहिए॥

बच गये प्रह्लाद, जलकर मर गयी थी होलिका।
नीति हित साहस जगाकर, होली मनाना चाहिए॥

पक गई है फसल तो, पहले प्रभु को दें चढ़ा।
यज्ञ में दें आहुति तब, अन्न खाना चाहिए॥

स्वार्थ की भीषण तपन से, हैं सभी झुलसे हुए।
प्यार का है रंग रुचिकर, सबको लगाना चाहिए॥

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