दुनिया नष्ट नहीं होगी, श्रेष्ठतर बनेगी

धर्म तंत्र परिष्कृत हो

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आज धर्मजीवी अगणित हैं। ६५ लाख संत बाबा, एक लाख प्रशिक्षित पादरी  तथा एक लाख अन्यान्य धर्मों के पुरोहित। कुछ साधक, कुछ योगी। यह एक करोड़ का समुदाय असली धर्म की सेवा करेगा। व्यक्तित्व की प्रखरता और समाज के सुगठन के लिए जिस स्तर के लोक शिक्षण की आवश्यकता है वह नीति निष्ठा और समाज सेवा की दो गंगा-यमुना धाराओं में भली प्रकार समा जाना है। कर्मकाण्ड और जप-तप व्यक्तिगत रुचि एवं आवश्यकता का विषय है। उसे ऐच्छिक छोड़ दिया जाय पर धर्म का वह पक्ष जो जनता से अपना निर्वाह भर पाता है, मात्र इसी काम में निरत रहे कि व्यक्ति का चिंतन, चरित्र और व्यवहार शालीनता युक्त बनाये। समाज में ऐसे प्रचलन चलाने के लिए जनसम्पर्क साधे, जिससे सुधरे समाज की झाँकी विनिर्मित हो सके। ऐसी झाँकी जिसे धरती पर स्वर्ग का अवतरण कहा जा सके। यह संत वर्ग स्कूली शिक्षा के स्थान पर सामाजिक शिक्षा का नैतिक शिक्षा का, वातावरण बनाये। परिव्राजकों की तरह बादल बनकर उन पिछड़े क्षेत्रों में पहुँचे, जहाँ नवसृजन की चेतना जगाने की आवश्यकता है।

    अन्यान्य गिरजाघरों-मस्जिदों, देश के अगणित देवालयों की इतनी भूमि और इतनी सम्पदा विद्यमान है जिससे कितने ही नवजीवन जगाने वाले विश्वविद्यालय चलाये जा सकें।

    यह एक करोड़ की धर्म सेना विश्व राष्ट्र की सम्पदा रहे और जहाँ कहीं भी अनीति बरती जा रही है। जब विश्व राष्ट्र का, समस्त संसार का शासन होगा और भौगोलिक दृष्टि से देशों का छोटे प्रान्तों की तरह पुनर्गठन होगा, तो स्थानीय समस्याओं को सुलझाने के लिए मनीषियों का मंत्रिमंडल काम करेगा। इनका बालिग वोट से चयन न होगा, वरन् लोकसेवी प्रतिभाओं में से ही उन्हें नियुक्त कर लिया जाया करेगा। अनगढ़ भीड़ द्वारा एक बालिग एक वोट के आधार पर ऐसे सूत्र संचालक नहीं चुने जा सकते, जो अपने-पराये का पक्षपात करने की अपेक्षा लोकहित और आदर्शों का परिपालन ही अपना कर्त्तव्य समझें।

    अब बिखरे हुए, अपने क्षेत्रीय स्वार्थों की दुहाई देने वाले देशों का जमाना चला गया। अब संसार भर का एक ही विश्वराष्ट्र रहेगा। उसमें न्याय और विवेक चलेगा। न आर्थिक विषमता रहेगी, न ही जातीय। हर किसी को शांति से रहने और रहने देने का अधिकार मिलेगा। उस वर्ग का उन्मूलन किया जायेगा, जो अपने परिकर और वर्ग को अनुचित लाभ दिलाने की दुहाई देकर लोगों को भड़काते और चलते हुए कार्य में बाधा डालते हैं।

    कम आवश्यकताएँ कम समय में पूरी हो जाने के उपरांत सर्वसाधारण को इतना समय मिल सकेगा कि वह अपना शारीरिक, मानसिक विकास करने के लिए समुचित अवसर प्राप्त कर सके। अपने सम्पर्क क्षेत्र में प्रगतिशीलता उत्पन्न करने वाले क्रिया कलापों में भी योगदान दे सकें।

    परस्पर मिल जुलकर उपयोगी काम करने से सहज मनोरंजन हो जाता है। संगीत, साहित्यकला को प्रज्ञा और श्रद्धा को उभारने में प्रयुक्त किया जा सके, तो उसमें इतने उच्च कोटि के मनोरंजन की व्यवस्था हो सकती  है, जिस पर आँखें व मन-मस्तिष्क खराब करने वाले सिनेमाओं को निछावर किया जा सके। प्रकृति अपने आप में इतनी अधिक सुन्दर और सुखद है कि उसकी गोदी में खेलने का आनंद उस अनुभूति की पूर्ति कर सकता है जिसके लिए कि आज हर किसी को बड़ी प्यास है। वैचारिक प्रदूषण की मुक्ति की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।

     मनुष्य में देवत्व उदय करने वाला और धरती पर स्वर्ग जैसा वातावरण बनाने वाला समय अब निकट है। अंधकार सिमट कर पलायन कर रहा है। उषाकाल का अरुणोदय उल्लास का संदेश लेकर आया है। हर हृदय सरोवर में अब शतदल कमल खिलने ही वाले हैं।

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