चिन्ता छोड़ो—प्रसन्न रहो

हम चिन्ता को इस प्रकार दूर कर सकते हैं।

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चिंता करने वाले व्यक्ति का आत्मविश्वास खो जाता है, या कम हो जाता है। आत्मविश्वास ही हमारे मन को शान्त और संतुलित रखता है। भारी विपत्ति पड़ने पर भी मानसिक संतुलन को बिगड़ने नहीं देता। आत्मविश्वास के द्वारा ही संकटकालीन अवस्था में हम अपनी भावनाओं पर अधिकार अथवा नियन्त्रण रखते हैं। इसलिए अपने आत्मविश्वास को उत्तरोत्तर बढ़ाते रहना ही मानसिक चिंता को दूर करने का सर्वोत्तम उपाय है।

चिन्ता मनुष्य के गुप्त मन में बैठे हुए कल्पित भय का नाम है। हम व्यर्थ ही ऐसी बातों की कुकल्पना किया करते हैं, जो हमारे जीवन में कभी भी नहीं घटती हैं।

कोई भी मनोविकार अधिक देर तक मन में टिका रहने से स्थायी हो जाता है। देर तक रहने से यह गुप्त भय एक जटिल मानसिक भावना ग्रन्थि का रूप धारण कर लेता है। छुपे-छुपे वहीं से गुप्त भय हमारी मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं को चलता रहता है। ऐसा व्यक्ति निराशावादी हो उठता है। उसका संपूर्ण जीवन नीरस, निरुत्साह और असफलताओं से परिपूर्ण हो उठता है।

चिन्ता एक छूत से फैलने वाले रोग की तरह है— हमने अनेक प्रकार के छूत से फैलने वाले रोग जैसे चेचक, हैजा, प्लेग इत्यादि का हाल पढ़ा है, पर सब की तरह चिंता भी एक संक्रामक रोग की भांति विषाक्त है।

हम चिंतित रहने वाले व्यक्ति के साथ रहते हैं, तो उससे निराशा, दुःख, भय, कष्ट, पीड़ा, हाहाकार, वेदना के ही विषैले तत्व खींचते हैं। उस व्यक्ति के साथ रहकर हमारा जीवन भी निरुत्साहपूर्ण हो उठता है।

प्रायः बहुत से व्यक्ति कहा करते हैं, ‘‘हम थक गये। अब तो बेकाम हो गये। उन्नति का या कष्ट से बचने का कोई मार्ग नहीं दिखाई देता। अब परमात्मा सम्हालले तो अच्छा है।’’

ऐसा रोना रोने से निश्चय ही हम अभागे बनते हैं। अपनी सर्वोच्च शक्तियों को बेकाम कर लेते हैं।

‘‘हम कमनसीब हैं।’’
यह कहने से मन, शरीर और आत्मा की शक्तियां क्षीण होती हैं।

‘‘हमारा भाग्य फूट गया।’’—यह उच्चारण करने से वास्तव में हमारी किस्मत फूट जाती है। भाग्य के केन्द्र—सितारे पर ग्रहण लग जाता है।

‘‘दैव हमारे प्रतिकूल हैं।’’—यह सोचने से हमारी महत्वाकांक्षा नष्ट हो जाती है। हमें ईश्वर से जो गुप्त आत्मिक सहायता मिलती है, वह नहीं मिल पाती है।

‘‘हम दीन हैं।’’—यह बात मन में रखने से मनुष्य से काम नहीं होता। जिन्दगी में कोई उत्साह और जोश नहीं रह पाता। दीनता और गरीबी के शुद्ध विचार हमें गरीबी में खींचते हैं। यह सब व्यर्थ की कुकल्पनाएं हैं। ऐसी कुत्सित मनोव्यथाओं में डूबे रहने से हम खुद अपने हाथों से अपना भाग्य फोड़ते हैं।

ये मूल्यवान शब्द !
— सन् 1871 की बात है। अमेरिका के एक चिकित्साशास्त्र के विद्यार्थी ने ये इक्कीस शब्द पढ़े थे, जिनका उसकी चिन्ता व्याधि दूर करने में आश्चर्य जनक प्रभाव पड़ा था।

वे अपनी फाइनल परीक्षा के विषय में चिन्तित थे। क्या करना चाहिए। भावी जीवन में किसी प्रकार काम चलेगा? जीविका उपार्जन का प्रश्न कैसे हल होगा? भावी जिंदगी की सैकड़ों चिंताएं उन्हें अस्त व्यस्त, विचलित विश्रृंखलित कर रही थीं।

फिर एक दिन उन्होंने यह शब्द पढ़े। और उन्होंने उनके जीवन की काया पलट कर दी। ये थे वे शब्द—

‘‘हमारा प्रधान कार्य उन बातों के लिए चिंतित होना नहीं है, जो अन्धकारमय भविष्य के गर्भ में छिपी है, बल्कि हमें वे कार्य करने हैं, जो स्पष्टतः आज और अब, इसी समय हमारे हाथ में हैं।’’


इन शब्दों में बड़ा सार है। इनका अर्थ है कि हम आज की परिधि में जिएं। भूत और भविष्य की चिन्ता में कदापि न पिसें। जो बात अभी नहीं हुई है, व्यर्थ ही उनके विषय में चिंता कर-कर के बीमार न हों। विगत और भावी जीवन का भार वहन न करें। ‘कल’ की बात न सोचकर ‘आज’ की ही बात पहले सोचें। यह ज्यादा बेहतर है कि हम भूल जायें कि ‘कल’ नाम की भी कोई चीज होती है।

बात ठीक भी है। किसे पता है कल को क्या होगा? हम जीवित रहेंगे भी, अथवा नहीं। किसी भी क्षण बुलावा आ सकता है। पक्षियों, तथा संसार के सब जीवों का यही हाल है। एक क्षण में मृत्यु! संसार की रोशनी समाप्त! यही हम सब आपका हो सकता है। फिर भविष्य के संकटों की अनहोनी बात सोच-सोच कर क्यों हम मानसिक क्लेश उत्पन्न करें!

आज की परिधि में रहना सीखें — हम स्वास्थ्य और सुख के लिए आज की परिधि में ही रहना सीखें।

यही बात सर विलियम ओसलर ने कही थी। वे दिन का प्रारम्भ निम्न प्रार्थना से किया करते थे—

‘‘हे प्रभु! हमें आज का भोजन जुटा दे। आज के दिन को सुख और आनन्दपूर्वक व्यतीत होने की शक्ति दे।’’

उन्होंने कल को रोटी के लिए कभी चिन्ता प्रकट नहीं की थी। संसार में अनगिनत जीव हैं। जल और नभचर हैं। फूल पत्तियां वृक्ष हैं। ईश्वर सभी के लिए जीवन का साधन जुटाते हैं। उनके अक्षय भंडार में हमारे लिए कभी भी कमी नहीं पड़ने वाली है। कहीं न कहीं से हमारे लिए भी प्रबन्ध होगा ही। फिर हम चिन्ता में घुल-घुल कर क्यों आधे हों? कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा।

आप कहते हैं, ‘‘यह खूब कहा कि कल की चिन्ता न करें? क्यों कर कार्य स्वयं ही हो जायेंगे?’’

‘‘आप समझे नहीं। हमारा मतलब है कि आप कल की समस्याओं को हल करने की योजनाएं सोचें, कठिनाइयों को हल करने का भरसक प्रयत्न करें, अपने परिवार की सुरक्षा के प्रयत्न करें, रुपया अधिक कमायें और बचा कर रखें, वृद्धावस्था के लिए जोड़कर रखें, मित्रों की समस्याओं में हाथ बटायें, पर उनके लिए गुप्त मन में चिंता कभी भी न रखें।’’

योजनाएं बनाना अच्छा है, कठिनाइयों को दूर करना बेहतर है, पर उनके लिए व्यर्थ ही चिन्तित होना बुरा है।

तनिक सैनिकों का जीवन देखिये। फौज में भरती होने वालों के लिए किसी भी दिन, किसी भी क्षण मुसीबत आ सकती है। जान का खतरा हो सकता है। मौत ही सर पर झूलती रहती है। पर फिर भी वे आखिरी क्षण तक अच्छा जीवन जीते हैं। आप और हमसे ज्यादा बेहतर रहते हैं।

एक बार एक सेनापति से बातें होने लगीं। हमने पूछा—‘‘आपको मौत का भय नहीं होता। कल की चिन्ता नहीं। क्या आप आगे आने वाले खतरे से नहीं डरते। मान लीजिए, चीन के द्वारा पकड़ लिए जायें, तो आपके बाल बच्चों का क्या होगा? बूढ़े मां बाप को कौन पालेगा?’’

वे बोले, ‘‘एक समय होता है जब हम एक बार ही इन सब समस्याओं पर खूब सोच विचार लेते हैं। फिर हम उनकी ओर ध्यान न देकर प्रत्यक्ष आज की समस्याओं को हल करने में शक्ति लगाते हैं। यदि सदा ही इन चिंताओं को मन में दबाये रहें, तो ये निश्चय ही हमें गोली लग कर मरने से पूर्व ही समाप्त कर दें। अतः कल की चिन्ता छोड़ो और आज की परिधि में पूरी तरह खिल कर जियो।’’

दिन के कमरों में बन्द रहिए — बयालीस वर्ष पूर्व सर विलियम औसलर ने येल विश्वविद्यालय के छात्रों को भाषण देते समय कहा था—

‘‘मेरी प्रसन्नता का रहस्य यही है कि मैं दिन के कमरे में बन्द रहा हूं।’’

दिन के कमरे में बन्द रहने का मतलब था कि एक दिन को, सुबह से सायंकाल तक अच्छे से अच्छे तरीके से व्यतीत करने का प्रयत्न किया है। एक-एक दिन अच्छा व्यतीत होते-होते अनेक वर्ष बड़े ही सुख शान्तिमय गुजरे हैं।

उन्होंने आगे कहा—‘‘मैं चाहता हूं आप भी दिन की परिधि में बन्द होना सीखें। अपने मस्तिष्क के शेष कमरों को बन्द रखें जिनमें आपकी जिन्दगी की बहुत-सी पुरानी कटु अनुभूतियां, दुःखद कटु बातें, चुभने वाली स्मृतियां दबी पड़ी हुई हैं। उनमें नाना प्रकार की बेवकूफियां, अशिष्टताएं और मूर्खताएं भरी पड़ी हैं। बटन दबा कर ये अतीत की कड़वी अनुभूतियां बन्द कर दीजिए। मन मन्दिर के किवाड़ उनके लिए बन्द कर दीजिए।"

थोड़ी देर के लिए उनकी दुःख भरी पीड़ा, वेदना, हाहाकार की काली परछाहीं अपने मुस्कराते हुए वर्तमान जीवन मत आने दीजिये। मन के एक कमरे में मरे हुए कल को, पुराने मुर्दों को दफना दीजिए।

इसी प्रकार अपने मस्तिष्क का वह कमरा भी फिलहाल बन्द कर दीजिए जिसमें भविष्य के लिए मिथ्या भय, शंकाएं और निराशापूर्ण कल्पनाएं एकत्रित हैं। इस अजन्मे भविष्य को भी मन की कोठरी में मजबूती से बन्द कर दीजिये। इस प्रकार मरे हुए कल और अजन्मे अतीत को अपने मुर्दे दफनाने दीजिये।

वर्तमान ही हमारा है। हमें तो आज की ही परवाह करनी है। यह मदमाता ‘आज’, यह उल्लासपूर्ण ‘आज’ ही आपकी अमूल्य निधि है। यह आपके पास है। आपका साथी है। आज की ही प्रतिष्ठा कीजिये, उससे खूब खेलिये, कूदिये, मस्त रहिये और अधिक से अधिक उल्लासपूर्ण बनाइये। आज एक जीवित चीज है। आज में वह शक्ति है जो दुखद कल को भुलाकर भविष्य के भयों को नष्ट कर सकती है—

‘‘प्राञ्चो अगाम नृतये हसाय ।’’ - ऋ. 10, 17, 3

‘‘हम नाचते और हंसते हुए आगे बढ़ें ।’’

हर सुबह एक नई जिन्दगी लेकर आता है — समझदार के लिए हर सुबह एक नई जिन्दगी लेकर आता है। इस वाक्य को आप उस शीशे पर चिपका दीजिए जिसमें रोज मुंह देखते हैं। इस प्रकार के वाक्य का मतलब यह है कि हम गए हुए ‘कल’ और आगे आने वाले ‘कल’ के विषय में न सोचकर अपनी समस्त बुद्धि कौशल युक्ति और उत्साह से आज का काम सब से अच्छे रूप में पूरा करें।

यदि हम आज का कार्य योजना बना कर अच्छी से अच्छी तरह पूर्ण करें, तो जीवन निश्चय ही सुखद हो सकता है। एक एक दिन अच्छा बिता कर हम अपना सम्पूर्ण जीवन मधुर बना सकते हैं।

कल की चिन्ता करने के स्थान पर आप उसके लिए अच्छी योजनाएं बनाइये। स्वस्थ चिन्तन कीजिये। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने के लिए प्रयत्न कीजिये। भावी जीवन के लिए जितना संभव हो, तैयारी कीजिए, परिश्रम और उद्योग से, मित्रों के सहयोग और बड़ों के पथ-प्रदर्शन द्वारा अपनी कठिनाइयां दूर कीजिए, पर ईश्वर के लिए कल की चिन्ता कदापि न कीजिए।

योजना बन कर दूरदर्शितापूर्ण कार्य करना एक बात है। यह एक बुद्धिमत्ता है। लाभकारी है।

घबड़ा कर मन का सन्तुलन खो बैठना, उत्तेजित हो उठना, मार बैठना, आत्महत्या की बात सोचना एक मानसिक कमजोरी है। इससे बचने की बड़ी जरूरत है। यह सब चिन्ता के ही दुष्परिणाम हैं। यदि आप इस दुर्बलता में फंसेंगे, तो रहा सहा मानसिक संतुलन भी नष्ट हो जायगा।

चिन्ता आपके उत्साह को खा डालती है। नया सोचने की शक्ति जाती रहती है। प्रसन्नता पंगु हो जाती है। इसके प्रभाव से कठिनाई का विरोध करने की शक्ति कम हो जायगी और मामूली बात भी पहाड़ की तरह कठिन प्रतीत होगी। चिन्ता आपके सामने एक ऐसा अन्धकार उत्पन्न करेगी कि आपका आत्म-विश्वास जाता रहेगा।

युद्ध में, बीमारी, दिवाला, या दुःखद मृत्यु के अन्धकारपूर्ण रुदन में, शुभ चिन्तन आपके आत्म विश्वास को बढ़ायेगा। सहायता करेगा।

अच्छा विचार वह है जो कार्य कारण के फलों को तर्क की कसौटी पर परखता है। दूर की देखता है कि किस कार्य से भविष्य में क्या फल होगा?

इसका सम्बन्ध देखकर भावी उन्नति की योजनाएं निर्माण करता है। सृजनात्मक विचार, भावी निर्माण की योजना में लगता है। पुरानी गलतियों से लाभ उठाता है। संसार की कठोरताओं से डरे बिना कठिनाइयों का हल सोचता है।

अच्छा चिन्तन ही किया कीजिए। समस्याओं से डरकर भागने के स्थान पर उनका सुलझाव कीजिए। पुराने अनुभवों से लाभ उठायें। स्वस्थ चिन्तन में उत्साह और आशा का शुभ्र प्रकाश है, कार्य-निष्ठा और साहस का बल है। व्यवहारिक ज्ञान और सांसारिक कुशलता का पावन योग है।

साहसी बनिये। दूसरे शब्दों में जटिलताओं और मुसीबतों से पीछा दिखा कर मत भागिये, वरन् गुत्थियों को सुलझा कर नई तरह सोचने का परिचय दीजिए। आपमें आत्मविश्वास होना चाहिए।

एक बार एक भावुक व्यक्ति बीमार होकर दवाखाने आये। उनके पेट में दर्द रहता था और खुलकर भूख नहीं लगती थी। शरीर की परीक्षा की गई, अनेक दवाइयों का प्रयोग किया गया, किन्तु दर्द ठीक नहीं हुआ। जब मनोवैज्ञानिक ने उनके मन की परीक्षा की तो मालूम हुआ कि उन्हें भविष्य की चिन्ता बनी रहती थी। उन्हें चिन्ताओं का जीर्ण रोग था और मस्तिष्क दुर्भावनाओं से भरा रहता था। कुछ पुरानी खेदजनक परिस्थितियां स्थायी रूप में उनके गुप्त मन में जमकर शारीरिक रोग का कारण बन गई थीं। फौजी डॉक्टर ने उसे देख कर जो कहा था, वह शायद आपके भी काम आ सकता है।

वे बोले, ‘‘मेरे प्यारे दोस्त, मैं चाहता हूं कि तुम इस जिन्दगी को एक पुराने टाइप की रेतों के कणों से चलने वाली घड़ी की तरह समझो। जिस तरह एक छोटे से छेद में से होकर बालू का एक-एक कण नीचे गिरता है और एक घण्टे में पूरी घड़ी खाली होती है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी एक-एक मिनट में आगे बढ़ता है। ये बालू के कण घड़ी में ऊपर बड़ी संख्या में रहते हैं किन्तु एक-एक करके उस छोटे छेद में गिरते रहते हैं। चाहे हम कितना ही प्रयत्न क्यों न करें, एक से अधिक कण नहीं गिर सकते। यदि अधिक निकालने का प्रयत्न किया जायेगा, तो घड़ी में कोई न कोई खराबी अवश्य आ जायगी।"

तुम, मैं तथा हम में से प्रत्येक आदमी का जीवन इसी प्रकार की रेत की घड़ी की तरह है। सुबह जब हम शय्या त्याग देते हैं, तो हमारे सामने सैकड़ों कार्य करने के लिए होते हैं, जिन्हें हम उस दिन पूर्ण कर डालना चाहते हैं।

किन्तु यदि हम उन्हें एक-एक कर न लें, और दिन में धीरे-धीरे न करें, तो व्यर्थ की चिन्ता के भार से हम अपनी शरीर रूपी इस बेशकीमती घड़ी को तोड़ डालेंगे। हमारा शारीरिक और मानसिक संस्थान कार्यभार से असंतुलित हो जायगा।

मैंने इसी योजना को सदैव अपनाया है। रेत का एक कण ही एक बार में घड़ी के छेद से निकले अर्थात् एक बार में एक ही कार्य का भार मन पर रहे मानसिक चिन्ता से मुक्त होने का सरल तरीका है। मैं एक बार में एक ही समस्या को हल करता हूं। शेष परेशानियों को क्षण भर के लिए मन की किसी अन्धेरी कोठरी में ताले में बन्द कर देता हूं। व्यर्थ ही उसके विषय में चिन्तित रह कर शक्ति नष्ट नहीं करता हूं।’’

मानसिक रोग और चिन्ताएं — आज कल पागलखानों में मानसिक रोगों के जितने बीमार आते हैं, उनमें से अधिकांश वे होते हैं जो चिन्ता का भार उठा कर न फेंक सकने के कारण मन का संतुलन खो बैठे हैं।

पागल तरह-तरह के वाक्य बोलते रहते हैं। होठ चलते रहते हैं। रह-रह कर कुछ गुनगुनाया करते हैं। वे चुप नहीं रह पाते क्योंकि उनका मानसिक विकार प्रलाप के माध्यम से बह-बह कर बाहर निकलता रहता है। उनके गुप्त मन में बीते हुए जीवन के हृदयद्रावक हाहाकार, पीड़ाएं और मौन रुदन भरा रहता है। प्रिय व्यक्ति के बिछोह की आकुलता, पीड़ा और दुस्सह वेदना है। हजारों रुपयों की हानि की कसक है। शायद पूंजीवादी समाज में दूसरों द्वारा की हुई मानहानि की जलन है। समाज, अफसर, रूढ़ियों तथा पुलिस द्वारा किये गये अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह है। कुछ पागल पिटते कुटते ऐसे निराशावादी हो गये हैं कि उनके आनन्द का स्रोत ही सूख गया है। इन्हीं कटु अनुभवों के बल पर वे भविष्य में भय से उत्पन्न दुष्प्रवृत्तियों के शिकार हैं। तरह-तरह के कटु अनुभव इकट्ठे होकर जीर्ण रोगों का रूप धारण करते हैं। चिन्ता से दुःखद स्वप्न उत्पन्न होते हैं। अव्यक्त आशंकाएं, दुश्चिन्ताएं, और कुकल्पनाएं मानसिक रोगों के रूप में निकल कर तृप्ति पाने का प्रयत्न किया करती हैं। चिन्ता को अधिक देर तक मन में ठहरने देना मानसिक रोगों को निमंत्रित करना है।

अपना बोझ आज उठा लीजिए — चिन्ता से हानि इस लिए होती है कि वह हमारे मौजूदा जीवन को कड़वा बना देती है। आगे आने वाले कल की चिन्ता में हम आज की हत्या कर डालते हैं। हम भविष्य के लिए व्यर्थ की हैरानी में फंसे रहते हैं।

राबर्ट लुई स्टीवनसन अंग्रेजी के कुशल निबन्धकार हो गये हैं। आजन्म वे बीमार रहे। मौत सदा सर पर झूलती रही पर वे कभी भी न डरे, न आनन्द के रास्ते से हटे। जिन्दगी का रस इन्होंने अन्त तक खूब चखा था।

‘‘आप क्या बीमारी से नहीं डरते?’’

उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘बीमारी अपने ढंग से चलती है, चला करे। मैं जिन्दगी के बचे हुए क्षणों का आनन्द लेने में विश्वास करता हूं।’’

‘‘फिर आपके जीवन का निचोड़ क्या है?’’

‘‘चाहे किसी का बोझ कितना ही भारी क्यों न हो, हर एक व्यक्ति अपना बोझ सायंकाल तक तो ढो ही सकता है। हम में से हर एक व्यक्ति शाम तक अपना कठिन से कठिन कार्य पूर्ण कर सकता है, सिर्फ एक दिन के लिए। हम में से प्रत्येक व्यक्ति मधुरता से, सहिष्णुता से, पवित्रता से शाम तक का जीवन तो अच्छी तरह व्यतीत कर ही सकता है। बस एक-एक दिन इसी तरह बिताइये। जैसा आज बीता है, वैसा ही कल भी बीतेगा, निश्चय जानिये।’’


एक-एक अच्छा दिन बीतने से समूचा जीवन ही अच्छी तरह बीत जाता है। प्रत्येक दिन सुबह से शाम तक अच्छी तरह, पूरी मधुरता और सुन्दरता से बिताइये। जीवन मधुर हो जायगा।

डेल कारनेगी की यह उक्ति गांठ-बांध रखने योग्य है—

‘‘मनुष्य भी कैसा मूर्ख जीव है! वह जीवन के सुख को भविष्य के लिए आगे धकेलता चलता है। क्षितिज के उस पार सुदूर प्रदेश में रहने वाले किसी गुलाब के फूल से परिपूर्ण उद्यान के सपने देखा करता है, जबकि उसी खिड़की के नीचे समीप ही बाहर गुलाब अपनी सुवास फैलाते रहते हैं।’’

कल की चिन्ता को फौरन त्यागिये और आज का आनन्द लेने के लिए तैयारी कीजिए। जो आनन्द आज प्राप्त किया जा सकता है, पहले उस पर ध्यान दीजिए। दूर का सुख, कल का सुख कल देखा जायगा। दूर के सुख की आशा करने का दूसरा मतलब यह है कि आप आज का सुख तो नष्ट कर ही रहे हैं, जब कि भविष्य के लिए आप को पूरा विश्वास तक नहीं है।

जो केवल कल की चिन्ताओं के सहारे रहता है, वह शीघ्र ही भूखा मर जायगा। चिन्ता उसकी तमाम भूख खतम कर देगी और मैलेन्कोलिया नामक मानसिक रोग में हमेशा के लिए डाल देगी।

हम न जाने क्यों समस्याओं को सुलझाना नहीं चाहते, व्यर्थ ही ढील ढाल में चिन्तित रहते हैं। चिन्ता बहुत सी छोटी-छोटी उलझी हुई समस्याओं का एक जाल है। यदि एक-एक समस्या को समझदारी से सुलझाया जाय तो समस्त चिंताएं अनायास ही दूर हो जाती हैं।

बच्चा कहता है, ‘‘जब मैं युवक बन जाऊंगा, तो जीवन बड़े आनन्द से बीतेगा। खूब मस्ती से खेलूंगा, खूब अच्छी-अच्छी चीजें खाऊंगा, सैर सपाटा करूंगा, जिन्दगी का खूब आनन्द लूंगा।’’

युवक कहता है, ‘‘जब मैं पढ़ लिख कर विद्वान बन जाऊंगा, नौकरी लग जायगी, अच्छी सामाजिक स्थिति बन जायेगी, तो संसार का सुख लूटूंगा।’’

पढ़ लिख लेता है। नौकरी भी लग जाती है। सामाजिक स्थिति भी सुधर जाती है, तो कहता है, ‘‘जब मेरा विवाह हो जायगा, घर सुख समृद्धि से परिपूर्ण हो जायगा, दांपत्य सुख मिलेगा, तो बड़ा ही आनन्द रहेगा।’’

विवाह भी हो जाता है। ईश्वर की कृपा से पत्नी भी सुन्दर मिलती है, बाल बच्चे भी जन्मते हैं, पर आनन्द की अतृप्त लालसा और आगे बढ़ती चलती है। अब यह कहता है, कुछ रुपया संग्रह कर लूं, मकान बनवा लूं, बाल बच्चों की शिक्षा और विवाह इत्यादि की जिम्मेदारियों से निपट लूं, इन सब से निवृत्त हो कर सांसारिक आनन्द लूंगा।’’

इस प्रकार विचारों के साथ जिन्दगी का सुख और आनन्द के क्षण भी आगे खिसकते रहते हैं। धीरे-धीरे भविष्य के जीवन की लालसा में वर्तमान चिन्ताशील, कटु, संघर्षों से परिपूर्ण व्यतीत होती जाती है ‘‘कल’’ की चिन्ता और तैयारी में ‘‘आज’’ मरते जाते हैं।

गृहस्थ कहता है, ‘‘नौकरी से रिटायर हो कर पेंशन मिलने पर कोई चिन्ता नहीं रहेगी, तो बस मजा ही मजा रहेगा। बाल बच्चों की हजारों चिन्ताओं से मुक्ति मिलेगी।’’

और जब 55 वर्ष की आयु में शिथिल शरीर और टूटी हुई आशा ले कर पेंशन मिलती है, तो शरीर और मन पर ऐसा आलस्य छा जाता है कि हम कुछ भी नहीं कर पाते। अब मालूम होता है कि हमने वास्तव में जीवन रूपी खजाना ठाट-बाट में ही नष्ट कर दिया है। यह वह बहुमूल्य वर्ष हैं जिन्हें किसी भी कीमत पर वापस नहीं किया जा सकता।

हमारा जीवन भाप की गति से ऊपर उड़ता जाता है। एक-एक दिन उसे समाप्त कर रहा है। इस प्रकार कैसे दुःख का विषय है कि कभी न प्राप्त होने वाली योजनाओं, मिथ्या चिन्ताओं, गुप्त भयों, व्यर्थ के कार्यों में फंसे रह कर हम अपने वर्तमान की हत्या कर देते हैं।

यदि हम प्रत्येक ‘आज’ का सम्मान करें, तो ये ‘आज’ हमें जीवन का सर्वोपरि आनन्द प्राप्त करा सकते हैं।

जो कल संदिग्ध, अस्पष्ट और धूमिल है; जिसका होना अभी किसी प्रकार भी निश्चित नहीं है, जिसके बीच में अभी 10-12 घण्टे पड़े हैं, उसकी चिन्ता में क्यों अपने वर्तमान को कटु बनाया जाय?

हां, यदि कोई उलझन है, कोई पेचीदगी है, तो उसका हल अवश्य सोचा जाना चाहिए। जहां बुद्धि से, विवेक से, मित्रों की सलाह मशवरे से काम चलाना चाहिए वहां चिन्ता करना भारी मूर्खता है।

जैसे शतरंज की चाल में शत्रु से बचने की तरकीबें सोचते हैं, कुश्ती में दावपेंच लगाते हैं, वकील लोग अक्ल लड़ा कर मुवक्किल की रक्षा करते हैं, डॉक्टर तरह-तरह की दवाइयों से रोगी को बचाते हैं, इसी प्रकार आप भी चिन्ता को सुलझाइये। कठिनाइयों के तार-तार को अलग कीजिये।

आप इन कड़वी बातों, दुःखद अनुभवों और कष्टों को भूल जाइये, जिनका अब, आपके जीवन में कोई सम्बन्ध नहीं है। कष्टों को भूलने में ही श्रेष्ठता है। उन्हें मरा हुआ समझ कर उधर से मन हटा लीजिये। इसी प्रकार अनहोने भविष्य के भय में लिप्त मत रहिये। बस, आप तो आज को, इस मस्ताने और सुनहरे ‘आज’ को पूरी मधुरता से व्यतीत कीजिये। आज से ही जीवन का रस लेना प्रारम्भ कर दीजिए। किसी सुदूर भविष्य की संदिग्ध आशा में आज को कड़वा मत बनाइये।

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