चिन्ता छोड़ो—प्रसन्न रहो

एक अद्भुत घटना

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राकफेलर को कौन नहीं जानता?

वह अपने युग का सबसे अमीर व्यक्ति था। धन की महिमा दूर-दूर तक फैलती है। अपने धन के कारण राकफैलर को हर कोई जानता था। लक्ष्मी की प्रारंभ से ही उस पर कृपा थी।

कहते हैं उनके पास इतना रुपया था कि पूरे शहर को भोजन देते रहें, तो वह वर्षों न बीते। कमाई न भी करें, तो कई जीवन उसी रुपये से मजे में व्यतीत हो जायें।

हमारे यहां कुबेर को धन का देवता कहते हैं। आधुनिक धन कुबेर राकफेलर थे। बाजार में वे जिस चीज को खरीदना शुरू करते, पूरे बाजार के बाजार खरीद डालते। किसी को उनके मुकाबले में खड़े होने की हिम्मत न थी, न कोई प्रतियोगिता करने वाला ही था।

यदि केवल रुपया मात्र सुख शान्ति का आधार या धनी व्यक्तियों का ऐश आराम ही संसार का चरम लक्ष्य समझा जाय, या सफलता की कसौटी मानी जाय, तो राकफेलर को संसार का सबसे प्रसन्न और सफल व्यक्ति समझा जाना चाहिए था। रुपये की शक्ति से वह हर वस्तु खरीद सकते थे, जो उन्हें आनन्द दे सकती थी—उत्तमोत्तम भोजन, बढ़िया वस्त्र, आलीशान गनन चुम्बी महल, कोठियां, मोटर, हवाई जहाज, आमोद-प्रमोद तथा भोग-विलास की असंख्य आधुनिकतम वस्तुएं! सच मानिये, कुछ भी उनके लिए असंभव न था।

लक्ष्मी की कृपा उन पर सदा रही। राकफेलर की व्यापारिक बुद्धि का चमत्कार इस बात से जाना जा सकता है कि उन्होंने अपने दस लाख डालर 23 वर्ष की कच्ची उम्र में ही कमा लिए थे।

यही नहीं, संसार की प्रसिद्ध स्टैन्डर्स वैक्यूम आइल कम्पनी का स्वामित्व उन्होंने 43 वर्ष की आयु में ही प्राप्त कर लिया था और अपार धन राशि बैंकों में उनके नाम जमा थी। अनेक व्यापारों से धन आ रहा था।

पर शोक! महाशोक!! 53 वर्ष की आयु में ही उनका मन अशान्त और उद्विग्न था। उन्हें चिंता ने शिकार बना लिया था।

हर घड़ी विषाद, व्यापार में हानि की आशंका, अकाउन्ट में गड़बड़ी का मिथ्या भय, टैक्स के मुकदमों की आशंका, कम्पनियों में नुकसान का डर, बैंकों के फेल हो जाने की कुकल्पना, चलते-चलाते किसी मुकदमें के पीछे लग जाने की परेशानी, कर्ज लेने वालों की आर्थिक हालत जानने और रुपया न डूब जाये इत्यादि की छानबीन, कौन कार्यकर्ता मजदूर कैसा काम कर रहा है, कहां भ्रष्टाचार करेगा या नुकसान पहुंचायेगा इत्यादि एक नहीं सैकड़ों प्रकार की छोटी बड़ी, तत्कालिक या देर में आने वाली चिन्ताओं ने उसे बुरी तरह अपने कुटिल पंजों में फंसा लिया था।

बाहर से रेशम के कपड़े पहनने वाला, आलीशान महलों में निवास करने और सुस्वादु कीमती भोजन करने वाला, सैकड़ों नौकरों से सेवा प्राप्त करके भी बेचारा राकफेलर 53 वर्ष की आयु में केवल चिंताओं के कारण सूख कर हड्डियों का नर-कंकाल मात्र रह गया था। कैसी विडम्बना थी!

चिंता के कारण उनके सिर के बाल उड़ गये। फिर भौंह के बाल उड़ने लगे। भूख एक दम जाती रही। एक रोटी भी वे न पचा पाते थे। उनके चेहरे का तेज और लावण्य समाप्त हो गया था। यौवन काल ही में वृद्धावस्था के सब चिन्ह प्रकट हो गये थे। रात को मीठी नींद न आती थी। जिन्दगी का उत्साह कम हो गया था। कमर में झुकाव था, पैर लड़खड़ाने लगे थे, बुरे डराने वाले स्वप्न दीखा करते थे। चारों ओर उन्हें काम ही काम दीखते थे और उनके बिगड़ जाने के डर से वह निराश से हो गये थे। बाहर से कोई अनुमान नहीं कर सकता था कि इस अमीर को भी कोई परेशानी हो सकती है, पर उनके भीतर की चिन्ताएं उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाती थीं। वह चिंता के वास्तविक विषय से परेशान न रहकर उसके प्रतीक से परेशान रहने लगे। क्षति की चिंता ने जैसे मार कर ही डाल दिया था। उनके अस्थिपिंजर शरीर को देख कर दुःख होता था।

आरम्भ में रॉकफेलर हट्टे-कट्टे शरीर वाले स्वस्थ व्यक्ति थे। वे उन्मुक्त वायु तथा खेतों की स्वच्छन्द वायु और स्वस्थ वातावरण में विकसित हुए थे। उनका शरीर काफी मजबूत था। वे कन्धे उठा, सीना तान, मस्तानी चाल से चला करते थे। लेकिन जैसे जैसे उनके पास रुपया इकट्ठा होता गया तथा अधिकाधिक जमा करने, अमीर बने रहने, अमीरियत में दूसरों को परास्त करने के बुरे भाव उनके मन में भरने लगे, वैसे-वैसे आर्थिक चिंताओं ने उनके शरीर पर घातक विषैला तनाव डालना आरम्भ कर दिया। उनकी तन्दुरुस्ती क्रमश; गिरती गई और 53 वर्ष की आयु में वह नरकंकाल मात्र रह गये। बहुत-से धन के मालिक होकर भी वे मरे के समान थे।

कल्पना कीजिए उनकी आय प्रति सप्ताह बीस लाख डालर थी किन्तु वे प्रति सप्ताह दो डालर का भोजन भी नहीं पचा पाते थे। थोड़े से दूध तथा रोटी के एक टुकड़े को पचा लेना भी उनके लिए बड़ी बात थी।

तनिक सी हानि या नुकसान की आशंका से वे बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाते थे। चिंता उन्हें बुरी तरह दबा लेती? रात्रि में सो न पाते थे।

एक बार की बात है!

राकफेलर ने चालीस हजार डालर मूल्य के अनाज का एक जहाज व्यापार के लिए विदेश भेजा था। यह ग्रजलेक्स से होकर गया था। सुरक्षा के लिए प्रायः बड़े माल का बीमा कराया जाता है। इस जहाज में बीमा कराने से डेढ़ सौ का खर्च आता था। इस पैसे को बचाने के लिए बीमा नहीं कराया गया। वैसे ही जहाज रवाना हो गया।

रात को लेक्स पर बड़ा तूफान आया। तूफान का नाम सुनते ही, रॉकफेलर को अपने जहाज की चिंता लग गई। कहीं वह तूफान में डूब न जाय? इतना नुकसान हो जायगा, तो क्या होगा? कितनी बड़ी गलती हो गई! इसके नष्ट होने से कितनी हानि होगी? हजारों प्रकार की चिंताओं ने उसे झंझोड़ डाला।

सवेरे जब उसका भागीदार जॉर्ज गार्डन आफिस आया, तो उसने उसे चिंतातुर देखा। अब क्या हो सकता है? फिर भी जो कुछ हो सके, किसी भी प्रकार बीमा हो सके, तो तुरन्त करा दिया जाये। रॉकफेलर ने उसे किसी शर्त पर अधिक से अधिक प्रीमियम दे कर तुरंत अनाज से भरे हुए जहाज का बीमा करवाने को दौड़ाया। बेचारा गार्डन दौड़ा-दौड़ा गया। बड़ी मिन्नतें खुशामदें कीं, जो कुछ अधिक से अधिक बीमे की रकम मांगी गई, उसे देकर बीमा करवा दिया गया। तब रॉकफेलर की चिंता कुछ दूर हुई। अधिक से अधिक व्यय करने पर भी किसी तरह आखिर बीमा हो गया, यही संतोष का विषय था।

लेकिन फिर उन्हें एक नया मानसिक आघात लगा! मन पर जैसे हथोड़े की एक नई चोट पड़ी। नई चिंता ने फिर घर दबाया! यह कैसे हुआ?

बीमा करवाये हुए कुछ ही घंटे ही हुए थे कि इसी बीच समाचार आया कि उनका माल सही सलामत पहुंच गया था। कोई नुकसान नहीं हुआ।

और कोई व्यापारी होता, तो वह ईश्वर की इस बड़ी कृपा के लिए धन्यवाद देता। दान देता। खुशियां मनाता। मित्रों को भोजन कराता। उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न होता।

पर राकफेलर ने मन ही मन सोचा—

‘‘तनिक सा काम था और मैं यों ही डर गया। इस व्यर्थ भय से आक्रान्त होकर मैंने यों ही अपने डेढ़ सौ डॉलर बरबाद कर दिये! हाय, मेरा इतना धन जरा-सी फिक्र से नष्ट हो गया। कितना बुरा हुआ! कितना नुकसान हो गया। मैं भी कितना मूर्ख हूं जो इस तरह अपना धन नष्ट करता फिरता हूं। ऐसे तो कहीं मैं गरीब न हो जाऊं?’’


इसी प्रकार सोचते-सोचते अपने धन सम्बन्ध चिंता से राकफेलर फिर बीमार पड़ गया। उसने चिंतित होकर खटिया पकड़ ली। अब उसे अपने ऊपर पछतावा हो रहा था। उन पश्चात्ताप के विचारों ने मन में गुत्थी बिनकर फिर जीर्ण चिंता का रूप धारण कर लिया। अपने फिजूल खर्च के भाव से वह पागल जैसा हो गया। आत्मग्लानि के विचार उसे परेशान करने लगे।

अब बताइये, ऐसे चिंताभार युक्त जीवन से मनुष्य को क्या लाभ? राकफेलर के पास अनापशनाप रुपया था। कोई अभाव न था, पर फिर भी वह सारे दिन रात धन कमाने या उसे बनाये रखने जोड़ने और उसी के विषय में सोचने विचारने में व्यय करते थे। टहलने, घूमने, खेलने, आमोद-प्रमोद या व्यायाम के लिए उनके पास समय ही न था।

रॉकफेलर को कैसे चिंतामुक्त किया गया?

रॉकफेलर के भागीदार गार्डनर महोदय को यह स्थिति बड़ी विकट मालूम हुई। उसने चिंतानाश की एक युक्ति सोची। वह क्या थी?

गार्डनर ने दो हजार डॉलर में एक पालवाली नाव खरीदी। अब वह इसे नदी में मजे में चलाता और उसमें अपना दुःख दर्द और फिक्र भूल जाता। इसके स्वास्थ्य को नौकाविहार से बड़ा लाभ हुआ।

एक शनिवार को उसने रॉकफेलर से कहा—‘‘काम छोड़ो, चलो जरा बाहर निकलें और दिल बहलायें। नाव में घूम लेने से तन और मन ताजा हो जायेगा। जिन्दगी में रस और परिवर्तन आ जायेगा। इस परिस्थिति और स्थान से परिवर्तन करो।’’

रॉकफेलर उत्तेजित होकर बोला ‘‘ऐसे फालतू काम के लिए मेरे पास समय नहीं है।’’

गार्डन बोला, ‘‘मेरे दोस्त, तनिक खुले जीवन उन्मुक्त प्रकृति और स्वच्छन्द वातावरण का भी आनन्द लो।’’

पर राकफेलर ने न माना। जीवन के सुखमय प्रसंगों से विहीन राकफेलर के दिन भारी भय और चिंता में बीतते रहे। उधर शरीर भी छीजता गया। जिंदगी के दिन कम होते गए। आखिर में एक दिन ऐसा आया, जब वह मृत्युशय्या पर लेटा था। बड़े-बड़े डाक्टरों के इलाज शुरू हुए। राय ली गई। कुशल मनोवैज्ञानिकों ने उसे नीचे लिखी सलाहें दी थीं।

डाक्टरों ने उससे कहा कि यदि तुम्हें जीवित रहना है तो इन बातों का विशेष ध्यान फौरन करना होगा—

1— चिंता से दूर रहे। रुपया कमाने, ऋण वसूल करने, शेयरों के भावों का ऊंचा नीचा होने, बैंकों के फेल होने या अपनी पूंजी के मारे जाने की चिंता न करे।
       मन से इस तरह के सारे मानसिक भार, अकारण भय और चिंताएं त्याग दे।

2—शरीर से होने वाले मनोरंजक रचनात्मक कार्य में दिलचस्पी ले। पर्याप्त मनोरंजन और आमोद प्रमोद किया करे। बागवानी, पानी में तैरना, टहलना,
      पर्वतीय प्रदेशों में पैदल यात्राएं करना जैसे काम करे और सदा खुली हवा में रहे। हलका व्यायाम किया करे।

3—चिंता दूर करने के ऊपरी तरीके जैसे सिगरेट, शराब, जुआ, या नशेबाजी, या और उपाय एकदम छोड़ दे।

4—बार-बार थोड़ा-थोड़ा भोजन न करे। चाय, कहवा, या मिठाई नाश्ते त्याग कर दो बार हलका और फल दूध से युक्त भोजन लेता रहे।

5—भय और लोभ के प्रबल आवेगों से बचना रहे। थोड़े में संतोष और तृप्ति, शिवभावना और कल्याण भावना का अभ्यास करे, हानि, लाभ दोनों स्थितियों में
      शान्त रहना सीखे। नित्य शान्त तत्व के प्रति आत्म-समर्पण करता रहे। किसी भी घटना के बारे में अधिक फिक्र न करे। अन्तिम परिणाम को सोच कर
      उसके लिए मन को दृढ़ बनाये अर्थात् हर दशा में मन को संतुलित बनाये रहे।

अब रॉकफेलर उपयुक्त नियमों का दृढ़ता से पालन करने लगा। मरता क्या न करता? जिन्दा तो रहना ही था।

कुछ महीनों में ही इन नुस्खे से रॉकफेलर को लाभ होने लगा। अब उनके जीवन का एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ। हव शिव भावना और कल्याण का अभ्यास करने लगे। खेलने कूदने तथा आमोद-प्रमोद में, नए-नए मनोरंजनों में वे काफी समय देते। इतवार को किसी बड़े बाग या देहात में घूमने चले जाते, नाचते और गाते। कार्य, मनोरंजन, प्रेम और ईश्वर पूजन इत्यादि में उन्होंने अपना जीवन बांट लिया था। उन्होंने अनुभव किया कि जो मनुष्य मनोरंजन, खेलकूद या सैर भ्रमण इत्यादि में लगा रहता है, वह चिंतामुक्त रहता है। इस प्रकार राकफेलर का जीवन बदला। सांसारिक दृष्टिकोण हटकर उसके स्थान पर सेवाकर्त्तव्य, भगवद् पूजन निर्द्वन्द्व, प्रसन्नतामूलक, आशावादी दृष्टिकोण आ गया। उनके शरीर और मन का तो जैसे कायाकल्प ही हो गया। उनके बदले हुए एक नए जीवन का संतुलित कार्यक्रम देखिए—

‘‘मैं चिंता से छूट कर अब शान्त, संतुलित, तृप्त और स्वस्थ जीवन व्यतीत करने का नुस्खा सीख चुका हूं। मैं चिंता के कारण मौत के जबड़े में पहुंच चुका था, पर अब निकल आया हूं।"


मैंने गोल्फ खेलना सीखा, खुली हवा में तथा दूर-दूर टहलने की आदत डाली और वातावरण बदलने से मेरी चिंता भागी है।

मैंने अपने पास पड़ौस के साधारण व्यक्तियों के जीवन तथा उनकी व्यक्तिगत समस्याओं, उनके हर्ष विषाद, दुःख दर्द में सहानुभूति पूर्वक हिस्सा लिया तथा दुःख दूर करने का उपाय किया है, नयों से मेलजोल बढ़ाया है। इससे मेरी चिंताएं कम हो गई हैं।

मैं खेलकूद, नए-नए समारोह-राजनीति तथा अपने पेशे से हटे हुए नए-नए आमोद प्रमोदों में, नाच गाने और हर प्रकार के नए पुराने मनोरंजनों में स्वच्छन्दतापूर्वक भाग लेने लगा। इनमें मेरा मन लग जाने से मानसिक तनाव कम हो गया।

मैंने दिखावटी कृत्रिम भोजन, कई बाद नाश्ते, चाय, कहवा, मिठाई, शराब और मास त्याग कर हलका दूध फल तरकारी इत्यादि का सात्विक आहार लिया। इससे मेरा पेट ठीक हो गया। भूख खुल गई। टहलना,  तैरना, गाना, और पूजा-पाठ मेरे जीवन के अविभाज्य अंग बन गये। इससे मेरी परेशानियां कम हो गईं।

मैंने अपनी सम्पत्ति की चिंता छोड़ दी। मुझे विश्वास हो गया कि जीने के लिए सुरक्षा की दृष्टि से मुझे भविष्य में कपड़ा भोजन और सम्मान हमेशा यों ही मिलता रहेगा। इसलिए अपने व्यापार अथवा सम्पत्ति से मैं वर्ष में कितना कमाता हूं, कितना खर्च करता हूं हानि लाभ का फल त्याग दिया। मैंने एक काम और किया। मैंने अनुभव किया कि पैसा कमाने से अधिक महत्वपूर्ण उसे ठीक तरह खर्च करना है।

कितना धन मैं कमा सकता था, इसकी चिंता छोड़ कर अब यह सोचने लगा कि मेरा कितना धन लोगों के लिए सुख, शांति, सेवा, आराम और आनन्द खरीद सकता है। परोपकार और दान में मैंने करोड़ों रुपया वितरित करना प्रारम्भ किया। अस्पतालों, अनाथों और कुशाग्र गरीब विद्यार्थियों को आर्थिक सहायताएं दीं।


इस प्रकार चिंता छूट गई और मुझे शान्त तृप्त और सुखी दीर्घ जीवन प्राप्त हुआ।’’

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