चिन्ता छोड़ो—प्रसन्न रहो

आपकी परेशानी का क्या कारण है?

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श्री रामगोपाल ने सुना कि शहरों में चेचक फैली हुई है। बस उसे भी भय हुआ कि मुझे भी चेचक न हो जाय। भागा-भागा मेरे पास आया और बोला, ‘डॉक्टर महोदय, शहर में चेचक का बड़ा प्रकोप है। जिसे देखो वही चेचक की शिकायत करता है। मुझे बड़ी चिंता है कि कहीं मैं भी इसका शिकार न बन जाऊं।’

बाबू प्रबोधकुमार ने सुना है कि शहर में दुर्घटनाएं हो रही हैं। मोटर ट्रक वाले साइकिलों से टक्कर मारकर कई को स्वर्गधाम पहुंचा चुके हैं। बस फिर क्या था, डर के कारण उन्होंने अपनी साइकिल रख दी और पैदल चलना शुरू कर दिया।

श्री गजानन को आजकल के लड़कों की आवारागर्दी सुनकर चिंता लगी कि कहीं उनका सुपुत्र भी सिगरेट, सिनेमा का शौकीन न हो जाय। यों यह बड़ा चरित्रवान लड़का है,  पर गजानन जी को सदा यही डर रहता कि लड़का बिगड़ जायेगा।

ये सभी व्यक्ति एक-एक कर अपनी समस्याएं मेरे पास लेकर आये हैं और मैंने इन्हें बताया है कि ये चिंताएं सर्वथा निर्मूल हैं। कल्पित भय हैं। कभी नहीं होने वाले हैं। व्यर्थ की कुत्सित हानिकारक कल्पनाएं हैं। कमजोर संकल्प वाले व्यक्तियों को ही ये परेशान करती हैं। इन व्यक्तियों के छिपे भय दूर होने से ये साधारण चिंताएं दूर हो गईं।

संभव है आप को भी कहीं से ऐसी कल्पित परेशानी सवार हो गई हो? यदि ऐसा है, तो इस विकृत भय की मनोवृत्ति को तुरन्त मन से निकाल दीजिये। इसका कारण आप के आत्मविश्वास में कमी है।

जिनके कारण आपको चिंता है, एक-एक कर उन कारणों पर विचार कीजिए। उलझी हुई जो बहुत सी समस्याएं अपने गुप्त मन में पड़ी हैं, उन्हें सुलझा कर अलग-अलग कीजिए। उन पर पृथक-पृथक विचार करिए। आप पायेंगे कि एक-एक कर आपने उन पर पूर्ण विजय प्राप्त करली है।

साधारणतः मनुष्य छोटी-छोटी बातों के लिए भयानक उद्विग्न हो उठते हैं। मानसिक तनाव की स्थिति पकड़ लेते हैं। भय की कल्पना से नई-नई कठिनाइयां पैदा करते रहते हैं।

साधारणतः हमारी चिंताओं का कारण व्यापारिक या पारिवारिक असफलता, आगे आने वाली कठिनाइयों को बढ़ा चढ़ा कर देखना, निराशा, व्यक्तिगत अभाव, दैहिक दैविक, और सांसारिक दुःख इत्यादि होते हैं। इनके कारण हमारे मन में सुरक्षा की भावना की कमी पैदा हो जाती है। इस हालत में हमारा हृदय बुरी तरह आकुल, आतुर और निरुपाय हो उठता है। मन में एक के बाद एक दुर्भावनाएं उठने लगती हैं, जिनका कोई छोर नहीं होता।

चिंता के बढ़ जाने से हमारी सम्पूर्ण शारीरिक प्रतिक्रियाओं में अड़चन आ जाती है। हमारी सूक्ष्म रक्त नलिकाओं में, रक्त प्रवाह में दोष उत्पन्न हो जाता है।

नतीजा यह होता है कि दमा, रक्त का दबाव, एग्जिमा मधुमेह दोनों ओर हृदयरोग पैदा होते हैं। आज हृदय की गति से मरने वाले रोगियों के अनेक समाचार छपते रहते हैं। बहुत से व्यक्तियों का शरीर बहुत मजबूत होता है, पर वे भी हृदय रोगों से मरते हुए देखे जाते हैं। कई ऐसी मृत्यु देखने में आई हैं जिनमें शरीर में कोई गंभीर शिकायत के न होते हुए भी यकायक अचानक मृत्यु हो गई। खोजने पर कारण जीर्ण और स्थायी चिंता ही मिली है। डाक्टरों ने खोजकर निकाला है कि हमारे चर्म रोग हमारे मन में चिपकी हुई स्थायी दुश्चिंता के ही कुपरिणाम हैं।

प्रो. लयोनार्ड फाडिस्ट ने अनेक रोगियों के व्यक्तिगत जीवन तथा उलझी हुई समस्याओं का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि चंता की वजह से हमारा मुखस्राव (सलाइवा) में रुकावट आती है, जो हमारे दांतों को जीर्ण कर देती है।

अतिचिंता हमारे चक्षु रोगों को उत्पन्न करती है। शीतरोगों में प्रतिरोध शक्ति कम हो जाती है।  रक्त प्रवाह में रुकावट आने से बालों के उड़ने और समय से पहले सफेद होने का रोग देखा जाता है।

न्यूयार्क अकादमी आफ मेडीकल साइन्स के ग्रुप ने खोज की है कि चिंता हमारे रक्त में एक रहस्यमय द्रव्य मिलाती है, जो हमारे आन्तरिक अवयवों के घातक सिकुड़न का कारण बन जाता है।

मैसूच्यूटस के जनरल हास्पीटल ने प्रमाणित रूप से यह घोषणा की है कि कोलाइटिस के बीमारों में 96 वें प्रतिशत रोगी निरन्तर चिंता, क्रोध या आवेश की दूषित और विषैली मनोविकृतियों के कारण होते हैं।

अमेरिका के एक प्रमुख मेडिकल क्लीनिक ने अपने अनुभवों के आधार पर यह परिणाम निकाला है कि उनके पास इलाज के लिए आने वाले रोगियों में से 35 प्रतिशत रोगी महज चिंता-जन्य रोगों के ही रोगी होते हैं। उन्होंने खोजकर कई प्रकार की चिंताएं मालूम की हैं जैसे—

1— गुप्त रोगों, अकाल मृत्यु या अनहोनी घटनाओं का भय कुछ रोगों के शरीर में मामूली रोग होते हैं पर वे मिथ्या भय से ही डरते रहते हैं और अपने
       शारीरिक रोगों को बढ़ाया करते हैं।

2— बेकारी या व्यापार में होने वाले नुकसान सम्बन्धी आर्थिक चिंताएं जो लोगों में आज विशेष रूप से अभिवृद्धि पर हैं। आवश्यकताएं बढ़ जाने से आज
       का मनुष्य रुपये पैसे सम्बन्धी चिन्ताओं से विशेष रूप से परेशान है। बेरोजगारी बुरी तरह फैल रही है, व्यापार कम चलता है, महंगाई बुरी तरह बढ़
       रही है, बाहरी टीपटाप के कारण लोगों के दिखावटी खर्च अनापशनाप बढ़ते जा रहे हैं। फल यह है कि पैसे कमाने की चिंता अनेक रोगों के रूप में
       निकल रही है। बड़े परिवारों वाले गृहपति भोजन कमाने की चिंता से अधमरे हो रहे हैं।

3— सामाजिक चिंताएं — हमारा समाज में ऊंचा स्थान बना रहे। हमारे स्तर के व्यक्ति हमें आदर की दृष्टि से देखते रहें, बच्चों के विवाह इत्यादि
       आदरपूर्वक होते रहें, इसकी फिक्र में आदमी घुलता जाता है।

4— सार्वजनिक जीवन में नेतागिरी करने वालों को अपने क्षेत्र का नेतृत्व खोने की चिंता लगी रहती है। एक-एक वोट के लिए वे खुशामद करते हैं। नेतृत्व न
       मिलने पर हृदयरोगों से पीड़ित रहते हैं।

5— पारिवारिक चिंताएं — इनमें बहू के झगड़े, पुत्रों की आवारागर्दी, परिवार के बंटवारे की तकरार, भाई-भाई में मुकदमेबाजी, युवक पुत्र पुत्री के वैवाहिक
       सम्बन्ध, जमीन जायदाद के सवाल-पारिवारिक चिंताओं का रूप धारण करते हैं।

6— मन में गुप्त रूप से रहने वाली पाप, अनैतिकता, व्यभिचार, वेश्यागमन, हस्तमैथुन या सामाजिक अश्लीलता सम्बन्धी मानसिक चिंताएं। इनके
       कारण, दमा, खांसी, कोढ़ और हृदय के रोग होते हैं।

7— दूसरों को सुधारने सम्बन्धी चिंताएं मन में विक्षोभ पैदा करती हैं। जब बिगड़े हुए व्यक्ति में सुधार नहीं होता, तो मन परेशानी से भर जाता है।

ये चिंताएं केवल सोचते ही रहने, और कुछ भी सक्रिय काम न करने की वजह से बढ़ती रहती हैं। बिना क्रिया का महज विचार एक रोग ही है।

जब कोई भय काफी दिनों तक हमारे गुप्त मन में जम जाता है और दूर नहीं होता, तब वह जीर्ण चिंता का रूप धारण कर लेता है। वह एक व्यसन का रूप धारण कर लेता है। खेद की बात है कि हमारी जिन्दगी में मामूली अड़चन या साधारण-सा विरोध होने पर ही हम बुरी तरह उद्विग्न हो उठते हैं। हमारे हाथ पांव फूल उठते हैं। हम ऐसे घबरा जाते हैं, जैसे आफत का कोई बड़ा तूफान ही हमारे ऊपर टूट पड़ा हो या प्रलय की कुटिल संकट स्थिति आ पहुंची हो। हम कुछ देर के लिए डरपोक और कायर बन जाते हैं। इस विषम स्थिति को हम कुत्सित कल्पना की वजह से अकारण ही उत्पन्न करते हैं। इस भय की स्थिति से हमारा आत्मविश्वास कमजोर पड़ जाता है।

प्रतिदिन सैकड़ों हजारों आदमी और औरतें आत्महत्याएं किया करते हैं। उनका भावुक मन और छोटी सी बुद्धि कुछ भी दूरदर्शिता नहीं रखती, मामूली सी बाधा को भी वे चिन्ता का एक कारण बना लेती हैं। तनिक से आघात से क्षत विक्षत हो उठती हैं। इन सब का कारण यह है कि वे जीवन को लम्बे दृष्टिकोण से नहीं देखतीं।

उन्हें सोचना चाहिए कि ये तथा इस प्रकार की मामूली-सी बाधाएं तो आयेंगी ही। जीवन कष्टों और तकलीफों से भी भरा है। सभी के लिए ऐसा ही होता है। ऐसी ही विषमता छोटे बड़े सभी के जीवन में आई और टली है। विपत्ति अथवा कठिनाई के पड़ने से यही सोचना चाहिए कि ये संकट भी दूर होंगे, नया प्रकाश हमारे जीवन को ज्योति से जगमग करेगा और एक न एक दिन अवश्य विपत्ति से पीछा छूटेगा।

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