चिन्ता छोड़ो—प्रसन्न रहो

चिन्ता से उत्पन्न मानसिक बीमारियां

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डॉक्टर ने सिन्हा साहब की डाक्टरी की परीक्षा की। फिर एक लम्बी सांस खींचते हुए बोले, ‘‘आपका ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है। शेष सब ठीक है। शरीर में कोई रोग नहीं है।’’

सिन्हा साहब तगड़े आदमी थे। उन्हें अपने स्वास्थ्य पर सदा ही गर्व रहा है। वह जीवन का बीमा कराने के लिए डाक्टरी मुआयना करा रहे थे। वे प्रायः अपने आपको उत्तम स्वास्थ्य का नमूना कहा करते थे। ब्लड प्रेशर की शिकायत सुनकर हैरान हो गए। चकित और शंकित होकर उन डॉक्टर से पूछा—‘‘यह ब्लड प्रेशर क्या बीमारी है? क्यों होती है? लोग इसका आज कल बहुत जिक्र करते हैं।’’

डॉक्टर बोले, ‘‘आज की कृत्रिम सभ्यता और कठोर जीवन ने मनुष्य को छोटी बड़ी सैकड़ों चिन्ताओं से भर दिया है। सुबह से शाम तक वह खाने, कमाने, परिवार और समाज की सैकड़ों चिन्ताओं से भरा रहता है। इन चिन्ताओं ने हजारों मानसिक और शारीरिक बीमारियां उत्पन्न की हैं। ब्लड प्रेशर या खून का दबाव होने की शिकायतें हमारे पास बहुत आ रही हैं।

सिन्हा साहब ने कहा, ‘‘यह बात तो दवाई बेचने वाला केमिस्ट भी कह रहा था कि जिसे देखो उसी के नुस्खे में ब्लड प्रेशर लिखा हुआ मिलता है। आखिर इसकी वजह क्या है? यह क्यों होती है?’’ डॉक्टर साहब समझाते हुए बोले, ‘‘यह बीमारी विशेष रूप से उन लोगों को होती है, जो समय-समय पर अपने स्वास्थ्य, परिवार, धन, प्रतिष्ठा, भविष्य या सांसारिक बातों के विषय में बहुत चिन्ता किया करते हैं। सच बताइये, डाक्टरी मुआइने से पहले आप को क्या कोई चिन्ता थी?’’

बात सुनकर सिन्हा साहब अपना दिल टटोलने लगे। फिर बोले,

‘‘हां, मैं इस बात से चिंतित था कि कहीं डॉक्टर मेरे अच्छे स्वास्थ्य में ही कोई कमजोरी या बीमारी न निकाल दे। जब आप स्टेथिस्कोप से मेरे खून का दबाव देख रहे थे, तो इसी परेशानी को ले कर मेरा दिल धड़क रहा था।

‘बस, आप की उस चिन्ता के कारण हृदय की धड़कन बढ़ी और उसी के कारण खून का दबाव या ब्लड प्रेशर बढ़ा। ब्लड-प्रेशर के विषय में अधिकांश व्यक्तियों को गुप्त भय रहता है। रक्त के दबाव का मतलब है खून का उन नाड़ियों की दीवारों पर दबाव डालना जिनमें होकर खून सारे शरीर में चक्कर लगाता है। रक्त का साधारण क्रम ही भ्रमण करना है। प्रतिदिन के कार्यों में मालूम ही नहीं होता कि रक्त भ्रमण हो रहा है अथवा नहीं, जब उसका दबाव घटने या बढ़ने लगता है, तब उसके कारणों की जांच होने लगती है।’’

ऊपरी लिखी घटना से स्पष्ट होता है कि चिन्ताओं के गुप्त प्रभाव से ब्लड प्रेशर होता है। आधुनिक मनोविज्ञान वेत्ताओं ने यह सिद्ध किया है कि जरा-सा भी जोश या उत्तेजना हमारे ब्लड प्रेशर को बढ़ा देती है। यह रोग विशेषतः उन लोगों को होता है जो जल्दी ही घबड़ा जाते हैं, नाराज हो जाते हैं या एक दम निराश हो जाते हैं।

मन के ऊपर जितना ही गुप्त चिंता का भार होगा, उतना ही ब्लड प्रेशर बढ़ेगा और शरीर अस्त व्यस्त हो उठेगा।

‘‘मेरा ब्लड प्रेशर नापा जा रहा है। कहीं मुझे यह अधिक न निकल जाए। कहीं मैं बीमार न पाया जाऊं?’’ इस तनिक सी चिन्ता से नापने के यन्त्र में उस समय बढ़ा हुआ खून का दबाव पाया जायगा। यह उसके असली ब्लड प्रेशर से कहीं ज्यादा होगा। बीमारी, कष्ट, पीड़ा आगे आने वाली विपत्ति की चिन्ता मात्र से ब्लड प्रेशर बढ़ता रहता है।

सर फिलफोर्ड एलबई एक मानसिक रोगी के विषय में लिखते हैं—

‘‘एक बार एक सशक्त मरीज को बाहर से परीक्षण किया, तो कोई भी रोग न मिला। उसका मन निश्चिन्त था, कोई भय अथवा फिक्र उसे न था, लेकिन फिर एक मित्र ने कहा कि लाओ उसका ब्लड प्रेशर भी नाप लें।

वह मरीज ब्लड प्रेशर नापने वाले यन्त्र को बिजली की बैटरी समझ बैठा और उसे डर हो गया कि मुझे अब जोर से चक्कर लगने वाला है। इस भय की स्थिति में उसका ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ पाया गया। फिर उसे बार-बार समझाया गया कि उसका डर गलत है और जब उसकी समझ में पक्की तौर पर आ गया कि वह बिजली की बैटरी नहीं है, तब उसका ब्लड प्रेशर लिया गया और वह मामूली निकला।’’

इस प्रकार उन्होंने यह सिद्ध किया कि मौजूद जमाने में हमारे बढ़े हुए भय और चिन्ताएं, अनहोनी बातों की कुकल्पनाएं दुर्घटनाएं इत्यादि असंख्य व्यक्तियों की मानसिक बीमारियों के कारण हैं। हम प्रायः उन बातों से डरा करते हैं जो होने वाली नहीं हैं।

बड़ों का रोग — ब्लड प्रेशर उन विशेष मानसिक बीमारियों में है जो साधारणतः बड़े आदमियों को होती है जैसे बीमार लीडर हो, अमीर पूंजीपति, बड़ा साहित्यिक, बड़ा प्रेमी अथवा उत्तेजनाओं में रहने वाला आदमी हो। ‘बड़ा आदमी’ और ब्लड प्रेशर पर्यायवाची शब्द बन गए हैं।

आखिर ऐसा क्यों होता है?

इसका मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि आदमी ज्यों-ज्यों सामाजिक स्थिति में ऊंचा उठता जाता है, त्यों-त्यों उसकी सांसारिक, सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी बढ़ती जाती हैं। अनेक बार उसे बिगड़ती हुई या गिरती हुई सामाजिक स्थिति को सम्हालने की चिन्ता रहती है। कभी अपने कारोबार में नुकसान की फिक्र रहती है। नेताओं को देश और समाज की हजारों चिन्ताएं सारे दिन सताया करती हैं। वकीलों को अपने मुवक्किलों को जिताने की फिक्र सताती रहती है। पूंजीपति अधिकाधिक रुपया इकट्ठा करने तथा उसकी रक्षा की चिन्ता में मानसिक तनाव के शिकार बनते हैं। इससे उनकी आयु कम हो जाती है और स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है।

साहित्यिक, कवि, फिल्म ऐक्टर, उपदेशक, अपने देशों में तरक्की और अपने प्रचार में, अपना सम्मान और प्रतिष्ठा बनाये रखने में चिन्तित रहते हैं। यही उनकी अतृप्ति का मुख्य कारण है।

इसी प्रकार अत्यधिक खुशी से, आंख, नाक, कान, अथवा गुप्तेन्द्रिय के जोश या उत्तेजना में फंसने से ब्लड प्रेशर बढ़ता है। जोर की बदबू या खुशबू से दबाव बढ़ता है। उत्तेजक दृश्य अच्छे या बुरे प्रेशर बढ़ाते हैं। सड़क पर किसी दुर्घटना को देखने के लिए आदमी इकट्ठे हो जाते हैं, इस रोमांचकारी दृश्य से भी ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है।

अतः मन को सदा चिन्ता से मुक्त रखना चाहिए। हमेशा शान्त और सन्तुलित रखने की आदत डालें। हमेशा स्थिर बुद्धि रखा करें।

याद रखें कि हमारी बहुत सी चिन्ताएं व्यर्थ और बेबुनियाद होती हैं। आप जिन बातों से परेशान हैं, वास्तव में उनमें से बहुत-सी होने वाली नहीं हैं। मन को ऐसा स्थिर और दृढ़ बनायें कि रोमांचकारी स्थितियों से भी वह न घबराये।

ठन्डे रहा करें। चिन्ताओं से डरने के बजाय समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुलझायें और दूसरों से भी सलाह लें। अपना आत्म विश्वास विकसित करते रहिये, क्योंकि आत्मविश्वासी कभी परास्त नहीं होता। आत्मविश्वास बनाये रखने से चिन्ताएं दूर होती हैं।

आपकी चिन्ता का कारण बाहर नहीं है। संसार की कोई वस्तु, कोई विकट परिस्थिति, कोई व्यक्ति आपको परेशान नहीं कर सकता। चिन्ता की स्थिति खुद आपके मन में जमी हुई है। वह असुरक्षा, भय और शंका भी भावना है। इस मिथ्या डर को सदा के लिए निकाल दीजिए। ईश्वर आपका रक्षक है। वह सदा आपकी सहायता करने और आत्मिक बल देने वाला है।

चिन्ता दूर करने के लिए कुछ अनुभवपूर्ण उपाय — मैं प्रायः अकेला रहता हूं, तो अपने पुस्तकालय में चला जाता हूं जिसमें नाना प्रकार की नई पुरानी पुस्तकें, समाचारपत्र और मासिक पत्र रखे हुए हैं। प्रत्येक पुस्तक एक जीवित व्यक्ति का प्रतीक है। उसमें एक व्यक्ति सदा मेरी सहायता और प्रेरणा के लिए बैठा रहता है, मुझे सदा सलाह मशविरा देने को प्रस्तुत रहता है। बस, पुस्तक ली या मासिक पत्र खोला और दो-चार क्षण के लिए उसी में पूर्णतः तन्मय हो जाता हूं। एक नए व्यक्ति से मिलने का सुख मुझे प्राप्त हो जाता है। चिन्ता का मायाजाल टूट जाता है। कार्य और विचारों में परिवर्तन आने के कारण थकान दूर होती है।

कभी उपन्यास है, तो कभी कहानी, कभी नाटक तो कभी आत्मचरित्र मुझे नए-नए सन्देश देते हैं। नए रूप में आगे बढ़ते हैं। आप भी इस नुस्खे को काम में लायें। वर्तमान संकटों से बचने का उपाय आपको इन पुस्तकों में मिल सकता है।

प्रत्येक चिन्ता अपने अन्दर एक समस्या समेटे रहती है। उसे सुलझाइये। उसका विश्लेषण कीजिये। प्रत्येक समस्या को पृथक-पृथक करने से आप बड़ी-बड़ी समस्याओं को आसानी से हल कर सकते हैं। चिन्ता का घटाटोप एक एक सुलझाने से दूर होता है। अपनी गुत्थियों को सुलझाते रहिये। जब एक काम, तथ्य, विचार हाथ में लें, तब दूसरे की चिन्ता बिल्कुल छोड़ दें।

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