केन्द्र के समाचार-महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ, विश्वव्यापी हलचलें

December 1997

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विगत डेढ़-दो माह में मिशन की विश्वव्यापी हलचलों ने जो मोड़ लिया है, जिस त्वरित गति से सारी नवीनतम उपलब्धियाँ हस्तगत होती चली जा रही हैं, उससे यही आभास होता है कि गुरुसत्ता अपने दिव्य अनुदानों को अनवरत बरसा रही है। संधिकाल की घड़ी निकट आ पहुँची है, परिवर्तन सुनिश्चित है, बस हम सभी को थोड़ा धैर्य बनाये रख सक्रियता का अनुपात बढ़ाते चलना है। शेष कार्य स्वतः होता चला जायेगा। इस पृष्ठ पर जिन सूचनाओं को दिया जा रहा है, वह प्रायः सभी प्रज्ञा अभियान ‘पाक्षिक’ में पढ़ते रहे हैं। कार्यकर्ताओं को वह मुखपत्र चूँकि सब तक नहीं पहुँच पाता, इन पंक्तियों द्वारा सभी अखण्ड-ज्योति परिजनों को महाकाल के बढ़ते चरण तीव्रतर होते जा रहे इस अभियान की झलक भर दी जा रही हैं।

संस्कार महोत्सवों की भारत भर में धूम-

इस वर्ष एक निराली छटा के साथ आरम्भ हुए विराट संस्कार महोत्सवों ने नये-नये कीर्तिमान हर जगह स्थापित किये हैं। एक साथ चौदह सदस्यीय चार टोलियों के द्वारा आरम्भ हुए इस अभियान की उपलब्धियाँ इतनी असाधारण हैं कि उनकी परिणति परिजन आज से तीन वर्ष के अन्दर महापूर्णाहुति के माध्यम से ही देख व समझ सकेंगे। एक अक्टूबर, 1997 से आरम्भ ये महोत्सव अब पूरे 1998 में एवं 1999 के पूर्वार्द्ध तक तय हो चुके हैं। भारत के पूर्वी छोर पर सिक्किम-आसाम-बंगभूमि व अरुणाचल प्रान्त से लेकर पश्चिम में बाडमेर, जामनगर, भुजकच्छ तथा उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में मदुराई, बंगलौर आदि क्षेत्रों में ये सम्पन्न हो रहे हैं। नेपाल के विगत वर्ष हुए जनकपुरधाम के साथ नेपालगंज-नवलपरासी में ये सम्पन्न हो चुके। इसी दिसम्बर में पीरगंज में भी कार्यक्रम हो चुकेगा। यह उमड़ा हुआ उत्साह जिसमें एक साथ अनेक स्थानों पर संस्कार सम्पन्न हो रहे हैं व अगले दिनों होने जा रहे हैं, उज्ज्वल भविष्य की एक झलक सबको दिखा रहे हैं। भूमि के संस्कार भी इनके साथ जाग रहे हैं। देवशक्तियों का संगतिकरण प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मिशन की उपलब्धियों को मान्यता-

हिन्दुत्व एक जीवन-शैली का नाम है जो सबसे पुरातन है। यह जीवन में कुछ शाश्वत तत्त्वों का समावेश करती है जो हमें न केवल सृष्टि के अविरल चल रहे प्रवाह के साथ जोड़ते हैं, हमें आत्मा की अमरता के साथ आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग भी बताते हैं। इसी विराट हिन्दू धर्म रूपी महासागर में अनेकों पंथ-संप्रदाय आये व समाते चले गये। ऐसा विराट-उदार सामाजिक प्रवृत्ति वाला प्राचीनतम धर्म मात्र हिन्दू धर्म ही है, जो वैदिक काल से चला आया है व अनेकानेक प्रहारों के बावजूद अपना अस्तित्व बनाये हुए है। पिछले दिनों विश्वभर में अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा संस्कारों की विस्तार प्रक्रिया से लेकर पारिवारिक जीवन में आस्तिकता तथा बच्चों में आध्यात्मिक रुझान व देवसंस्कृति के प्रति लगाव बढ़ाने के निमित्त की गयी सेवाओं को अमेरिका की संस्थाओं द्वारा मान्यता दी गयी। नवम्बर 97 की पहली तारीख को ‘यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका’ की कैलीफोर्निया प्रान्त की नगरी लॉस एंजेल्स में प्रायः चालीस हजार से अधिक प्रवासी परिजनों व अमेरिकी नागरिकों की उपस्थिति में सम्पन्न दशहरा- दीपावली मेले में शान्तिकुञ्ज के प्रतिनिधि को ‘हिन्दू ऑफ दि ईयर 97’ पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया। इसमें एक लाख रुपये की पुरस्कार राशि के साथ क्रिस्टल का एक मनोहारी प्लेक भी है तथा पूरे अमेरिका में कार्य कर रहे हमारे प्रवासी भाइयों का प्यार सम्मान भी मिला हुआ है, जिसका कोई मूल्याँकन नहीं किया जा सकता। यह उपलब्धि आने वाले वर्षों में मिशन व इसके संस्थापक पूज्यवर को मिलने वाले अनेक गुना बड़े सम्मानों, उपलब्धियों की दिशा में एक मील का पत्थर तो है ही, संगठन की मात्र विगत सात वर्ष की अवधि में विश्वविस्तार की दिशा में किये गये प्रयासों को दी गयी एक मान्यता भी है। यह सम्मान हर उस स्वयंसेवी कार्यकर्ता का है, जिसने न्यूनाधिक रूप से जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है।

अमेरिकी चिकित्सकों के बीच व्याख्यान

7 नवम्बर 97 को हर्बल हीलिंग संजीवनी विद्या एवं ध्यान पर प्राय’ 6 घण्टे तक व्याख्यान चला। इससे एक नया प्रवेश-द्वार खुला है। न्यूजर्सी के ‘क्राइस्ट अस्पताल’ में हुई इस वर्कशाप में प्रायः डेढ़ हजार अमेरिकन मूल के नागरिकों, चिकित्सकों ने अपनी भागीदारी को इच्छा व्यक्त की थी, किन्तु स्थान का सीमाबन्धन मात्र डेढ़ सौ के लिये ही था अतः आयोजकों को कड़ाई से एक प्रश्नावली द्वारा छँटाई कर प्रवेशपत्र दिये गये। निःशुल्क आयोजित इस वर्कशाप की प्रणेता अस्पताल की प्रमुख एवं डाँटा ब्लास्टर कैम्पेन में भारत की अगुआ रहीं डॉ. ललिता मेसन, जो पैंतीस वर्षों से वहाँ ख्याति प्राप्त चिकित्सक भी थीं। उनके द्वारा आयोजित इस वर्कशाप को अखण्ड-ज्योति पत्रिका के संपादक ने तीन खण्डों में- (1) मेडीटेशन टूवड्स रिवर्लस ऑफ स्ट्रेस, (2) आर्ट ऑफ लिविंग तथा (3) हर्बल हीलिंग। बिना किसी विराम के धाराप्रवाह अंग्रेजी में लगातार छह घंटे तक मल्टीमीडिया प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर ग्राफिक्स व कलर ट्राँसपेरेंसी तथा प्रज्ञायोग-ध्यान-प्राणायाम-आसन आदि के प्रत्यक्ष डिमाँस्ट्रेशन द्वारा प्रस्तुति दी। तनाव के बारे में अधिकाधिक जानने को उत्सुक यह युवा प्रौढ़ दोनों ही वर्गों का सम्मिश्रित चिकित्सक समुदाय पूज्यवर की विचारधारा से अनुप्राणित हो हतप्रभ सुनता रहा। बीच में सबको प्रज्ञापेय जब दिलाया गया, तो न केवल उन्होंने स्फूर्ति का अनुभव किया, यह भी देखा कि कैसे समय निकलता चला गया व औरों को सिखाने के लिए सीखने आये ये सभी ध्यानस्थ होते चले गये। पहली बार पश्चिम को आयुर्वेद की मूल गौरव-गरिमा से परिचित कराया गया। प्रायः सौ प्रकार की जड़ी-बूटियाँ व उनका साहित्य सबको बाँटा गया। अब ऐसी वर्कशॉप्स की माँग पूरे अमेरिका व कनाडा से बीस-पच्चीस की संख्या में मार्च में वसंत के बाद के लिए अभी से आ रही है। न्यूजर्सी में अगले वर्ष 24, 25, 26, जुलाई, 1998 की तिथियों में होने जा रहे विराट वाजपेयी स्तर के ज्ञानयज्ञ व संस्कार-महोत्सव के प्रयाज के क्रम में यह कार्यक्रम आयोजित था। उपलब्धियाँ असाधारण स्तर की रही हैं।

भारत मूल के दो चिकित्सका- अध्यात्मविदों का ऐतिहासिक मिलन-

विगत बारह दिवसीय अमेरिका प्रवास की ही एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है- ‘एजलेस बॉडी-टाइमलेस माइण्ड’ ‘सेवन स्प्रिचुअल लॉज ऑफ सक्सेज’ जैसी किताबों द्वारा विश्वविख्याति पाने वाले दिल्ली से एम.डी. की डिग्री प्राप्त एवं वर्तमान में ‘सान डियागो’ अमेरिका में कार्यरत डॉ. दीपक चोपड़ा से शान्तिकुञ्ज के प्रतिनिधि- इन पंक्तियों के लेखक की डेढ़ घंटे तक चली चर्चा। डॉ. दीपक चोपड़ा ने प्रायः पच्चीस से अधिक पुस्तकें अध्यात्म व चिकित्सा विज्ञान की पृष्ठभूमि पर लिखी हैं, सभी ‘बेस्टसेलर’ रही हैं एवं उनका विश्वभर की तीस भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। उसको सुनने वाला एक विशिष्ट तबका अमेरिका में है। स्वयं डॉ. दीपक की जिज्ञासा थी युगऋषि के विचारों को प्रत्यक्ष जानने-समझने की। दोनों की डेढ़ घण्टे तक चली वार्ता में कई विषयों को प्रत्यक्ष जानने- समझने की। दोनों की डेढ़ घण्टे तक चली वार्ता में कई विषयों पर महत्वपूर्ण विचार-विमर्श हुआ, जिसमें धुरी थी “वैदिक संस्कृति-देव संस्कृति को कैसे विश्वभर में फैलाया जायेगा” दो एक ही पृष्ठभूमि के व्यक्तियों का यह मिलन अगले दिनों महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ लेकर आयेगा, ऐसा प्रतीत होता है।

आडियो विजुअल क्रान्ति अब महत्वपूर्ण मोड़ पर-

पिछले दिनों हालीवुड में शान्तिकुञ्ज के गायक-वादक बन्धुओं द्वारा दो सी.डी. (काम्पेक्ट डिस्क), आडियो कैसेट्स व आडियो बुक बनायी गयीं, जिनका विमोचन एक नवम्बर के कार्यक्रम में हुआ। अपने आप में निराली ‘भावसुमन’ व ‘युग की पुकार’ नाम से रिलीज की गयी ये उिस्क व आडियो बुक पूरे पश्चिम में तेजी से लोकप्रिय होती चली जा रही है।’ ‘आल वर्ल्ड गायत्री परिवार लॉस एंजेल्स कैलीफोर्निया’ की यह प्रस्तुति महापूर्णाहुति की पूर्व तैयारी में प्रसारित होने वाले ऐसे अनेकों प्रचार, माध्यमों में सबसे पहली है। अब यह शान्तिकुञ्ज से भी उपलब्ध है। इंग्लिश में हिन्दुत्व व भारतीय संस्कृति के शाश्वत सनातन तत्वों पर भी एक रिकार्डिंग पिछले दिनों हुई है। दो सी.डी. व आडियो बुक के रूप में यह दिसम्बर अंत तक आ जायेगी। इसके अतिरिक्त कम्प्यूटर पर चलने वाली मल्टीमीडिया द्वारा संस्कृति का वैविध्यपूर्ण स्वरूप दिखाने वाली ‘सी.डी. कॉम’ भी शान्तिकुञ्ज के युवा कार्यकर्ताओं द्वारा तैयार की जा चुकी है। विदेश के लिए ये रिलीज कर दी गयी है। भारत में ये वसंत पर विमोचन कर दी जायेगी। शान्तिकुञ्ज के इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी पिछले दिनों परमपूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीया माताजी के संदेशों को उनकी वाणी में, उनके प्रतिनिधियों की वाणी में तथा उनके विचारों को आडियो बुक रूप में प्रायः तीस आडियो कैसेट्स तथा बारह वीडियो कैसेट्स के माध्यम से जन-जन के लिए सुलभ कर दिया है। उससे पूज्यवर के विचार घर-घर तक पहुँच सकेंगे।

महामहिम दलाई लामा शान्तिकुञ्ज में-

पिछले दिनों धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में सम्पन्न संस्कार महोत्सव में गये दल के आमन्त्रण पर महामहिम दलाई लामा शान्तिकुञ्ज डेढ़ घण्टे के लिये आये। बीस नवम्बर को वे अपने देहरादून कैम्प से अपने बीस अनुयाइयों के साथ युगतीर्थ आये, पूरे आश्रम का अवलोकन किया व विष्णु के नवें अवतार बौद्धावतार के उत्तरार्द्ध प्रज्ञावतार के क्रियाकलापों को विस्तार से जाना। हिन्दू धर्म, मानवधर्म के रूप में समस्त विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करता है एवं हिन्दू तथा बौद्ध मिलकर सारे विश्व को एक नयी दिशा दे सकते हैं, यह विचार उन्होंने अपने मंचीय वक्तव्य में प्रकट किये। वर्तमान में बौद्धधर्म बहुसंख्य राष्ट्रों में प्रचलित है एवं उसके निर्विवाद प्रतिनिधि रहे हैं श्री दलाई लामा। वे हिमालय की प्रतिमा का दर्शन कर व यह जानकर कि सारे विश्व के प्रज्ञा परिजन नित्य देवात्मा हिमालय की चेतना का ध्यान करते हैं- बड़े प्रसन्न हुए व अपना पूरा सहयोग इस अभियान में देने का आश्वासन उन्होंने दिया।

संस्कृति वर्ग का सम्मेलन एक अभिनव छाप छोड़ गया-

13, 14, 15, 16, नवम्बर को कार्तिक पूर्णिमा की बेला में शान्तिकुञ्ज में सम्पन्न यह सम्मेलन अभिनव रूप में ऐसी स्थापनाएँ कर गया है कि अब संस्कृति-कला प्रकोष्ठ’ के रूप में नयी विधा केन्द्र में खोल दी गयी है। संस्कृति के वैविध्यपूर्ण स्वरूप, साहित्य में साँस्कृतिक प्रदूषण, इलेक्ट्रानिक मीडिया साँस्कृतिक विस्तार, आहार-विहार वेशभूषा तथा पर्व-त्योहार जैसे पाँच विषयों पर प्रथम दिवस (13/1/97) एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया, जिसमें शान्तिकुँज के व मूर्धन्य कार्यकर्ताओं ने अपने विचार रखे एवं परिजनों के विचारों को सुना। दूसरे दिन नारी शक्ति की इक्कीसवीं सदी में भूमिका पर वर्क शॉप थी, जिसे शान्तिकुञ्ज की बहिनों ने प्रस्तुति दी व संध्या को ब्रह्मवादिनी बहिनों द्वारा ही दीपयज्ञ भी कराया गया। 12/11/97 को देश की विविधता से भी संस्कृति का प्रदर्शन एक विराट जुलूस के रूप में हरिद्वार नगरी में हुआ, जिसमें देश के कोने-कोने से आये कलाकारों का प्रस्तुतिकरण भी था तथा विभिन्न प्रकार की झाँकियाँ भी। 7 किलोमीटर लम्बे मार्ग पर निकले इस जुलूस ने न केवल नगरवासियों-कार्तिक पूर्णिमा पर आये लाखों तीर्थ यात्रियों के मनों पर अमिट छाप छोड़ी है। अन्तिम दिन साँस्कृतिक कार्यक्रम दिन भर चले, जिसमें हिमाचल-पंजाब से लेकर पूर्वी बिहार, बंगभूमि, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा से लेकर दक्षिण की संस्कृति का तथा प्रगतिशील अभिनय कला का लोकरंजन से लोकमंगल की विधा के अभिनव, प्रस्तुतिकरण को सभी ने देखा व सराहा। और ऐसे सम्मेलन प्रतिवर्ष होते रहेंगे व इस विधा को और विस्तार दिया जायेगा।

केन्द्र की इन गतिविधियों की यह शृंखला बड़ी लम्बी है। इसे यहीं विराम देकर पाठकगण को भविष्य में जनवरी से अप्रैल, 1998 में हरिद्वार नगरी में होने जा रहे विराट कुम्भ मेले में आने व और समीप से इन सत्प्रवृत्तियों से जुड़ने का आमन्त्रण यह पत्रिका देती है।


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