जमींदार और बुढ़िया( Kahani)

September 1996

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उस जमींदार ने विधवा बुढ़िया का खेत बलपूर्वक छीन लिया । बुढ़िया ने गाँव के सभी लोगों के पास इस अत्याचार से बचने की पुकार की, पर किसी की हिम्मत जमींदार के सामने मुँह खोलने की न हुई। दुःखी बुढ़िया ने स्वयं ही साहस समेटा और जमींदार के पास यह कहने पहुँची कि खेत नहीं लौटाते तो उसमें से एक टोकरी मिट्टी खोद लेने दें, ताकि उसे कुछ तो मिलने का संतोष हो जाय। जमींदार रजामंद हो गया और बुढ़िया को साथ लेकर खेत पर पहुँचा। उसने रोते-धोते एक बड़ी टोकरी मिट्टी से भर ली और कहा उसे उठवाकर मेरे सिर पर रखवा दें।

टोकरी बहुत भारी हो गई थी। जमींदार अकड़कर कहा-”बुढ़िया इतनी सारी मिट्टी सिर पर रखेगी तो दबकर मर जायेगी। ”बुढ़िया ने उलटकर पूछा-”यदि इतनी-सी मिट्टी से मैं दबकर मर जाऊँगी, तो तू पूरे खेत की मिट्टी लेकर जीवित कैसे रहेगा।-”

जमींदार ने कुछ सोचा, उसका सिर लज्जा से झुक गया और बुढ़िया के खेत लौटा दिया।


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