संवेदना की देवी अपनी गरिमा बनाए रखे

September 1996

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सौंदर्य की तलाश गलत नहीं है। यही वह तत्व है, जो मनुष्य की कोमल संवेदनाओं को सक्रिय करता है। अधर में लटके हुए ग्रह-नक्षत्रों में चुम्बकीय गुरुत्वाकर्षण क्रियाशील न रहा होता, तो सृष्टि पता नहीं कब परस्पर टकराकर नष्ट-भ्रष्ट हो गयी होती। ठीक वैसा ही चुम्बकत्व नारी सौंदर्य में भी है। इसमें मानव की कल्पनाओं में कोमलता भरी है, विचारों में भाव प्रवणता उपजाई है। मानव सभ्यता के आदि से यह साहित्य एवं सृजनात्मक गतिविधियों का प्रेरणा स्त्रोत रहा है। मानवीय कर्तृत्व में इसी ने सदाशयता भरी है।

इसकी तलाश में यदि हम निष्ठुर बन जाएँ, संवेदनहीन हो जाएँ तो इसका मतलब यही है कि हम राह भटक गए। यदि ऐसा न रहा होता तो इसकी खोज में तत्पर संवेदना की देवी नारी जाने-अनजाने हजारों-लाखों निरीह प्राणियों का रक्त-पान करने वाली पिशाचिनी न बन जाती । यह कथन किसी को कितना ही चौंकाने वाला क्यों न लगे; लेकिन आज की दशा में इसे ‘आश्चर्यजनक किन्तु सत्य ही’ कहा जाएगा। प्राचीनकाल की एक ऐतिहासिक किंवदंती है कि रोम सम्राट जूलियस सीजर की प्रेमिका महारानी क्ल्योपेट्रा अपने सौंदर्य को चिरस्थाई रखने के लिए प्रतिदिन एक गुलाम हब्शी के रक्त से स्नान करती थी। अब न तो रानी क्ल्योपेट्रा है और न उसका चिरस्थायी सौंदर्य। हाँ, उसकी नृशंसता की कथाएँ अवश्य प्रचलित हैं। जो नारी की संवेदना पर एक दर्द भरा प्रश्न चिन्ह अवश्य लगाती हैं।

यह प्रश्न आज की नारी की संवेदनशीलता पर भी हैं जिसके शृंगार प्रसाधनों का निर्दयतापूर्वक वध होता है। जिन प्राणियों को इस हेतु अपार कष्ट सहते हुए प्राण गँवाने पड़ते हैं, वे उन उपयोग करने वालों को सुन्दर कहते होंगे या कुरूप, यह उन्हीं से जाकर पूछा जाये। इन विडम्बनाओं में जो धन खर्च होता है, वह भी असामान्य होता है। यदि उसे सत्प्रयोजनों में लगाया गया होता, तो कुछ सत्परिणाम भी सामने आते। पर इस दुर्बुद्धिजन्य निष्ठुरता को क्या कहा जाय, जो सुन्दर दिखने के लिए अनगिनत प्राणियों के जीवन से खिलवाड़ करती रहती है। सौंदर्य की इस तलाश के कार्यक्रम में अनुसंधान के नाम पर प्रति वर्ष करोड़ों प्राणियों की बलि दी जाती है। इस अत्याचार के विरोध में स्कूल ऑफ रुरास्पेस मेडिसिन के शोध मनोविज्ञानी डॉ. बोनाल्ड बोर्नेस ने आज से एक दशक पहले ही अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने पशुओं पर होने वाले अमानुषिक अत्याचारों का विवरण तैयार किया है। वह किसी भी सहृदय व्यक्ति का दिल पिघला देने वाला है। डॉ. बोनाल्ड बोर्नेस के लेखों व विचारों से प्रभावित होकर पश्चिमी राष्ट्रों की जागरुक जनता के दिल में निरीह मानवेत्तर प्राणियों के दिल में निरीह मानवेत्तर प्राणियों के प्रति सद्भावना जगी है और इन हत्याओं का विरोध किया जाने लगा है।

सौंदर्य प्रसाधनों में चैनल नं. 3 एक विशेष सुगन्ध है। जिसे अनेक देशों में इस्तेमाल किया जाता है। इसे बनाने वाली कम्पनी की संचालिका जेक्स लील ने बताया कि इस सुगन्ध को बनाने के लिए अफ्रीका के जंगलों में पायी जाने वाली सिवेट बिल्ली के प्राण लिए जाते हैं। इस बिल्ली को लोहे के नुकीले पिंजड़े में बन्द कर दिया जाता है। जिसमें उसे लकड़ी से मार-मार कर पागल कर दिया जाता है। ऐसा करने पर उसकी ग्रन्थियों से एक प्रकार का रस स्रवित होने लगता है। इसके बाद बिल्ली की पूँछ और पीछे के पैर बाँध कर उसके पेट में सुगन्धि वाली ग्रन्थि में चीरा लगाया जाता है। बिल्ली को बाँधकर रखा जाता है। यह क्रिया लगातार 10-12 दिन तक की जाती है। प्रायः इतने समय के बाद बिल्ली मर जाती है। तभी उसे छोड़ा जाता है। यह सुगन्ध जिसे चैनल नं. 3 के नाम से जाना जाता है, वजन में सोने से भी 4-5 गुना महँगी कीमत में बिकता है।

शैंपू, आफ्टर शेव लोशन, युडी-कोलन आदि के परीक्षण के लिए खरगोश का उपयोग किया जाता है। खरगोश का उपयोग किया जाता है। खरगोश को एक पिंजड़े में जकड़कर बन्द कर दिया जाता है। नए बनाए शैंपू की 2-4 बूँदें उसी आँखों में डाली जाती हैं। जिससे खुजली, जलन व चिरमिराहट का अनुमान लगाया जाता है। इस प्रयोग में खरगोश अन्धा तक हो जाता है। इसी प्रकार लोशन के प्रयोग के लिए खरगोश की चमड़ी में टेप चिपकाकर उसे झटके से खींचा जाता है। यह क्रिया तब तक दुहराई जाती है, जब तक माँस न दिखाई पड़े। बाद में लोशन या युडीकोलन लगाकर 3-4 दिन तक खरगोश को हिलने-डुलने नहीं दिया जाता। कभी-कभी खरगोश प्रयोग पूरा होने के पूर्व ही मर जाते हैं।

सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में इक्ट्रोजन नामक जो पदार्थ प्रयुक्त होता है, वह गर्भवती घोड़ी के पेशाब से प्राप्त किया जाता है। इसके लिए घोड़ी के जीन्स को ऐसा नियन्त्रित किया जाता है कि एक लम्बे समय तक कष्ट सहते हुए भी गर्भधारण किए रहती है। उसे इस बीच अधिक पेशाब करने वाली विषाक्त औषधियाँ भी दी जाती हैं। अन्त में उसकी जान लेकर ही छोड़ा जाता है। इसी प्रकार अन्य तरह के परफ्यूम, क्रीम आदि बनाने का इतिहास भी अनेक बेरहमियों से भरा है। इसके लिए व्हेल मछली से लेकर बछड़ों, खरगोशों आदि न जाने कितने निरीह प्राणियों को निर्ममता से मारा जाता है।

एक आँकड़े के अनुसार अकेले वर्ष 1994 में अमेरिका में सौंदर्य सामग्री के निर्माण हेतु 2 करोड़ निरीह पशुओं की हत्या की गयी। जर्मनी में यह संख्या 60 लाख तथा इंग्लैंड में 1 करोड़ और रूस में लगभग डेढ़ करोड़ रही।

सुन्दरता की इस खोज में बरती जाने वाली संवेदनहीनता की बात छोड़ भी दें, तो भी इस प्रकार की सामग्री का उपयोग नितान्त विवेकहीन भी है। इसके निर्माण में अनेक तरह की ऐसी रासायनिक सामग्री का प्रयोग किया जाता है, जिसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए विष की तरह मारक है। अमेरिका के ‘कालेज ऑफ एलरजीज’ में किए गए अनुसंधान में पाया गया है कि शृंगार के रूप में प्रयुक्त काजल, नेलपालिश पाउडर, क्रीम एवं अन्य प्रसाधनों से प्रायः सुन्दरता मिलने को जगह नुकसान ही अधिक होता है।

काजल में प्रायः ऐंटीमनी सल्फाइड के स्थान पर लेड सल्फाइड का प्रयोग की अधिक होता है। यह लेड आँखों के सफेद भाग से रक्त में पहुँचकर लाल रक्त कणिका के निर्माण में बाधा पहुँचाता है, जिससे रक्ताल्पता का खतरा होता है। सुहाग के प्रतीक सिन्दूर में भी लेड होता है, जो शरीर के लिए घातक दुष्प्रभाव छोड़ता है। गर्भवती महिलाओं में तो सीसे का प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ सकता है और इससे उसकी असमय मृत्यु भी हो सकती है। नाखून में चमक लाने वाली नेलपालिश में प्रयुक्त होने वाला ‘फिनाँल’ और ‘टोल्यूएन’ से अनेक तरह की बीमारियाँ होती हैं। इससे नाखून का बदरंग होना इसके सिरों पर सूजन एवं त्वचा पर एलर्जी होना सामान्य बात है।

प्रसिद्ध उपभोक्ता पत्रिका ‘दि उत्सान कंज्यूमर’ के अनुसार ‘ब्लैक हिना हेयर डाई’ में हानिकारक रसायन ‘पैराफेनायल डायमीन’ मिलाया जाता है। जिससे बालों का गिरना एवं भूरापन होना आम बात हो गयी है। मलेरिया के कंज्यूमर एसोसिएशन का सर्वेक्षण तो यह बताता है कि हेयर डाई के अत्यधिक प्रयोग से कैंसर तक की सम्भावना रहती है। अध्ययन के तहत ऐसी महिलाओं में ड्राडकिंस लिम्फोमा (एक प्रकार का कैंसर) होने का खतरा 50 प्रतिशत बढ़ जाने की सम्भावना पायी गयी। पी.जी. मेडिकल कालेज चण्डीगढ़ के आप्थेलमोलाजी विभाग के अनुसार हेयर डाई मोतियाबिंद की बीमारी को भी बढ़ावा दे सकता है। आज के अत्याधुनिक शैम्पू, क्रीम आदि प्रसाधनों में प्रयुक्त सोडियम लाइरील सल्फेट, मिथाइल हाइड्रोक्सी बेंजोएट आदि रासायनिक पदार्थों से कैंसर तक हो सकता है। इसी तरह खूबसूरती के लिए लगाई जाने वाली लिपिस्टिक न केवल होठों को काला कर रही है, बल्कि चर्म रोगों को जन्म दे रही है। आँखों के सौंदर्य को उभारने के लिए प्रयुक्त होने वाले लाइनर एवं मरकरा से आँखें सूज रही हैं। इस तरह त्वचा के दोषों को छिपाने वाली सामग्रियाँ ही त्वचा के रोगों की कारण बन रही हैं।

इसे संवेदनहीनता एवं विवेक-हीनता की कहेंगे कि सौंदर्य की खोज के इस उपक्रम में करोड़ों निरीह प्राणियों की निर्मम हत्या और अरबों-खरबों रुपया खर्च करने के बावजूद कतिपय खतरनाक बीमारियाँ ही पल्ले पड़ी हैं। सौंदर्य में वृद्धि होने के स्थान पर उसका सत्यानाश ही बदली है। अब भी समय है। इस भटकन से जितना जल्दी उबर जाय, उतना ही अच्छा। इस खर्चीले और झंझट भरे जंजालों में फँसने की अपेक्षा यह कहीं अच्छा है कि अपने स्वभाव में थोड़ा अन्तर करके कुरूपता को बहुत अंशों में हटाने, सौंदर्य को किसी सीमा तक चमकाने का प्रयत्न किया जाय। यह सम्भव है और स्वाभाविक भी।

यूं तो स्वस्थ, नीरोग शरीर, प्रसन्न मन से उपजी मुक्त खिलखिलाहट-सदाशय व्यवहार किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है, तो भी दिनभर की दौड़-धूप, गृहस्थी के काम-काज से मलिन हुए चेहरे को निखारना ही हो तो, अच्छा है पुनः प्राकृतिक वस्तुओं की ओर लौट पड़ें। इसमें न तो निर्ममता है और न किसी तरह की विवेकहीनता। इस तरह के प्रयोग स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी हैं।

बात बालों की हो तो ब्राह्मी, आँवला, रीठा, शीकाकाई का चूर्ण बराबर भागों में मिलाकर किसी लोहे के बर्तन में भिगोकर रख दें। इसके पानी से बाल धोने पर बालों का झड़ना, सफेद होना थोड़े समय पश्चात् ही रुक जाता है। इतना ही नहीं सिरदर्द जैसी बीमारियाँ भी ठीक होती हैं, मस्तिष्क को भी बल मिलता है।

चेहरे की चमक एवं कोमलता बरकरार रखने के लिए खीरे को छील कर इसके रस में आधा नीबू का रस मिलाते हुए घोल बना लें। इस घोल को गुनगुना कर इसमें 4-5 बूँद गुलाब जल डाल लिया गया। इसे रुई द्वारा चेहरे व गर्दन पर लगाकर 15 मिनट पश्चात् चेहरे को धो डालने से चेहरे की चमक और कोमलता में निखार आता है।

दही बाहरी त्वचा के सौंदर्य के लिए किसी कारगर औषधि से कम महत्वपूर्ण नहीं है। इससे त्वचा की लावण्यता, कमनीयता और कान्ति में वृद्धि होती है। बेसन-दही मिलाकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की कुरूपता बढ़ाने वाले मुंहासों की सफाई होती है, त्वचा में निखार आता है। दही और शहद को चेहरे और गर्दन के आस पास लेप करके त्वचा का ढीलापन दूर किया जा सकता है। इससे त्वचा में कसाव बढ़ती है। पालक के उबले पानी में दो चम्मच दही और जौ का आटा या बेसन मिलाकर लगाने से चेहरे की हर तरह की कमियाँ दूर होती हैं।

चेहरे की कान्ति बढ़ाने के अतिरिक्त यदि स्थायी रूप से किसी प्रभावकारी क्रीम का उपयोग करना चाहें, तो उसके लिए चन्दन और केसर को घिसकर हल्दी के साथ अच्छी तरह से मिला लें। इसे सुखाकर रखा जा सकता है। नियमित अथवा आवश्यकता पड़ने पर पानी में पेस्ट बनाकर मुख पर लगा लें। यह क्रीम अन्य सभी तरह की क्रीम से कहीं अधिक प्रभावकारी सिद्ध होगी।

चेहरे की कान्ति बढ़ाने के अतिरिक्त यदि स्थायी रूप से किसी प्रभावकारी क्रीम का उपयोग करना चाहें, तो उसके लिए चन्दन और केसर को घिसकर हल्दी के साथ अच्छी तरह से मिला लें। इसे सुखाकर रखा जा सकता है। नियमित अथवा आवश्यकता पड़ने पर पानी में पेस्ट बनाकर मुख पर लगा लें। यह क्रीम अन्य सभी तरह की क्रीम से कहीं अधिक प्रभावकारी सिद्ध होगी।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles